Alankar Ki Paribhasha, Ang, Bhed, Chhand ke Prakar aur Udahran | अलंकार की परिभाषा, अंग, भेद, कितने प्रकार के होते है और उदाहरण

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अलंकार की परिभाषा Alankar Ki Paribhasha ‘अलंकार’ शब्द अलं + कार से निर्मित हुआ है। अर्थात् अलं (सौंदर्य या शोभा) + कार (वृद्धि करने वाला) – अलंकरोति इति अलंकारं – सौंदर्य की वृद्धि करने वाला। अलंकार का शाब्दिक अर्थ होता है आभूषण। जिस प्रकार स्त्रियों की शोभा आभूषण के द्वारा और भी बढ़ जाती है, उसी प्रकार कविता की शोभा बढ़ाने वाले तत्व को अलंकार कहते हैं। हिन्दी में अलंकारों की...
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Varnik Chhand Ki Paribhasha aur Udahran | वर्णिक छंदकी परिभाषाऔर उदाहरण

वर्णिक छंद Varnik Chhand जिस छंद में वर्णों की संख्या तथा क्रम निश्चित हो, उसे वर्णिक छंद कहते हैं। यहाँ सम वर्णिक छंदों में से कुछ का वर्णन किया जा रहा है। वर्णों की समानता रहने पर भी ये छंद एक दूसरे से रचना में भिन्न होते हैं। जैसे इन्द्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा और उपजाति छंदों में 11 वर्ण होते हैं। इसी तरह वंशस्थ, तोटक और द्रुतविलम्बित छंदों में 12 वर्ण होते हैं,...
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Harigatika Chhand Ki Paribhasha aur Udahran | हरिगीतिका छन्द की परिभाषाऔर उदाहरण

हरिगीतिका छन्द Harigatika Chhand यह सम मात्रिक छन्द है, जिसके चार चरण होते हैं। प्रत्येक चरण में अट्ठाइस मात्राएँ होती हैं। सोलह और बारह मात्राओं पर यति तथा अंत में लघु गुरु का प्रयोग होता है। श्रीकृष्ण के सुन वचन अर्जुन, क्रोध से जलने लगे। सब शोक अपना भूलकर कर, तल युगल मलने लगे। संसार देखे अब हमारे, शत्रु रण में मृत पड़े। करते हुए यह घोषणा वे, हो गये उठकर...
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Gatika Chhand Ki Paribhasha aur Udahran | गीतिका छन्द की परिभाषाऔर उदाहरण

गीतिका छन्द Gatika Chhand गीतिका छंद में चार चरण होते हैं। छब्बीस मात्राओं वाला यह सम मात्रिक छंद है। चौदह और बारह मात्राओं पर विराम होता है और अन्त में लघु गुरु होता है। हे प्रभो आनंददाता, ज्ञान हमको दीजिये। शीघ्र सारे दुर्गणों को, दूर हमसे कीजिये।। लीजिये हमको शरण में, हम सदाचारी बनें। ब्रह्मचारी, धर्मरक्षक, वीर, व्रतधारी बनें।। साधु भक्तों में सुयोगी, संयमी बढ़ने लगे। सभ्यता की सीढ़ियों पै, सूरमा...
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Rola Chhand Ki Paribhasha, Ang, Bhed, Chhand ke Prakar aur Udahran | रोला छन्द की परिभाषा, अंग, भेद, कितने प्रकार के होते है और उदाहरण

रोला छन्द Rola Chhand  रोला सम मात्रिक छन्द है। इसमें चार चरण होते हैं। प्रत्येक चरण चौबीस मात्राओं वाला होता है। ग्यारह और तेरह मात्राओं पर विराम होता है। नीलांबर परिधान, हरित पट पर सुन्दर है। सूर्य चन्द्र युग-मुकुट, मेखला रत्नाकर है। नदियाँ प्रेम प्रवाह, फूल तारे मंडप हैं। बंदी जन खग वृंद, शेष प्राण सिंहासन है। नव उज्जवल जल धार, हार हीरक सी सोहति। बिच-बिच छहरति बूंद, मध्य मुक्ता-मनि पोहति।...
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Chhand Ki Paribhasha, Ang, Bhed, Chhand ke Prakar aur Udahran | छन्द की परिभाषा, अंग, भेद, कितने प्रकार के होते है और उदाहरण

छंद परिचय Chand Parichay परिभाषा – जब काव्य रचना का आधार मात्राओं और वर्णों की गिनती की सुनिश्चितता को बनाया जाता है, तब वहाँ छंद निर्मित होता है। अतः वर्णों की संख्या, मात्राओं की संख्या और काव्य रचना को छंद कहा जायेगा। उदाहरण – (मात्राओं की संख्या, क्रम, यति-गति, तुक विहीन रचना)- ऊधौ दस-बीस मन न भये एक गयौ स्याम संग, कौन ईस आराधै। केसव बिना इंद्री सिथिल, ज्यों सिर के...
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Vatsalaya Rasa Ki Paribhasha, Bhed, Kitne Prakar ke hote hai aur Udahran | वात्सल्य रस की परिभाषा, भेद, कितने प्रकार के होते है और उदाहरण

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वात्सल्य रस Vatsalaya Rasa परिभाषा – सहृदय के हृदय में जब वात्सल्य नामक स्थायी भाव का विभाव, अनुभाव और संचारी भाव के साथ संयोग होता है, तो वहाँ पर वात्सल्य रस की निष्पत्ति होती है। शिशु या बालक की मनोहर, भोली-भाली चेष्टाओं को देखकर मन में उसके प्रति जो स्नेह उमड़ता है, वही वात्सल्य रस का आधार है। स्थायी भाव – स्नेह या वात्सल्य का भाव। आलम्बन विषय – शिशु, संतान...
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Shant Rasa Ki Paribhasha, Bhed, Kitne Prakar ke hote hai aur Udahran | शांत रस की परिभाषा, भेद, कितने प्रकार के होते है और उदाहरण

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शांत रस Shant Rasa परिभाषा – जब सहृदय के हृदय में स्थित निर्वेद नामक स्थायी भाव का विभाव, अनुभाव और संचारी भाव के साथ संयोग होता है, तब शांत रस की निष्पत्ति होती है। मन में उत्पन्न वैराग्य भाव, उदासीनता, ईश्वर के प्रति भक्ति, मोक्ष, आत्मानंद के कारण शांत रस की सृष्टि होती है। स्थायी भाव – शम या शांति, निर्वेद, वैराग्य । आलम्बन विषय – संसार की असारता, ईश्वर, मोक्ष,...
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