Hindi Essay on “Sampradayikta Loktantra ke liye Khatra”, “साम्प्रदायिकता – लोकतन्त्र के लिए खतरा” Complete Hindi Essay, Paragraph, Speech for Class 7, 8, 9, 10, 12 Students.
साम्प्रदायिकता – लोकतन्त्र के लिए खतरा
Sampradayikta Loktantra ke liye Khatra
भूमिका– साम्प्रदायिकता एक संकीर्ण विचारधारा है जिसके चलते एक धार्मिक सम्प्रदाय के लोग दसरे सम्प्रदाय के लोगों को अनदेखा कर देते हैं और राजनीतिक, आर्थिक एवं सामाजिक स्वार्थों की पूर्ति के लिए अपने देश के हित की भी परवाह नहीं करते। साम्प्रदायिकता का अर्थ अपने धर्म के प्रति वफादारी निभाते हुए उसके हित के लिए हर संम्भव प्रयत्न करना और अन्य किसी व्यक्ति से घृणा न करना, मन की पवित्रता, ईश्वर की उपासना, आचरण की शुद्धता और सभी मानवों से प्रेम-प्यार आदि पर बल देना है। कोई भी धर्म या सम्प्रदाय हिंसावाद का समर्थन नहीं करता। यह साम्प्रदायिकता का एक सकारात्मक गुण है परन्तु साम्प्रदायिकता का घृणात्मक पक्ष इसका निषेधात्मक पक्ष है। निषेधात्मक पक्ष में साम्प्रदायिकता का अर्थ न केवल अपने सम्प्रदाय के हितों को विकसित करना है परन्तु दूसरे सम्प्रदाय अथवा धर्म को हानि पहुँचाना भी इस पक्ष में शामिल है।
भारत में अंग्रेज़ो के आने से पूर्व सभी धर्मों एवं सम्प्रदायों के लोग विशेषकर हिन्दू और मुसलमान आपस में मिलजुल कर, अपना सामाजिक और धार्मिक जीवन एक-दूसरे के सहयोगी के रूप में व्यतीत करते थे परन्तु अंग्रेज़ी सरकार ने अपने शासन को सुदृढ़ करने के लिए ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति अपनाई ताकि हिन्दू और मुसलमानों में भेद-भाव पैदा करके उनको परस्पर लड़ाया जाए और वे अपनी नीति में सफल भी हुए। परिणाम स्वरूप 1906 में मुसलमानों के हितों की रक्षा के लिए मुस्लिम लीग की स्थापना हुई और 1940 में उसने मुसलमानों के लिए अलग देश पाकिस्तान की मांग रख दी और एक प्रस्ताव भी पेश कर दिया गया। 1947 में लाखों लोगों की तबाही के पश्चात् मातृभूमि भारत देश को दो टुकड़ों में बांट दिया गया। इस प्रकार भारत में मुस्लिम साम्प्रदायिकता को जन्म देने और विकसित करने में अंग्रेज शासकों का विशेष हाथ था।
स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद तो साम्प्रदायिकता और भी अधिक भयंकर रूप धारण कर गई है। 1984 में हिन्दू-सिख दंगे साम्प्रदायिक भावना से प्रेरित थे। 1992 में यह साम्प्रदायिकता हिन्दू और ईसाई समुदाय के बीच में फैल गई। 1907 में हिन्दू महासभा और 1925 में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की स्थापना हो गई। इस सबके पीछे अंग्रेज सरकार का कुचक्र था, जिन्होंने अपने हितों के लिए भारतीय समाज में ऐसा बीज बोया कि स्वतन्त्र भारत में भी यह बीज अपनी शाखाएँ फैलाने में सफल हुआ है।
साम्प्रदायिकता के कारण स्वतन्त्र भारत में साम्प्रदायिकता की समस्या दिन प्रति दिन गम्भीर बनती जा रही है। इसके प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-
धर्म पर आधारित राजनीतिक दलों का होना– हमारे देश में बहुत से ऐसे दल हैं जो किसी विशेष धर्म पर आधारित हैं। धर्म को राजनीति से अलग रखना चाहिए। धर्म पर आधारित राजनीतिक दल और राष्ट्रीय राजनीतिक दलों का संकीर्ण और साम्प्रदायिक दृष्टिकोण भारतीय राजनीति के लिए उत्तरदायी है।
धार्मिक असहिष्णुता में वृद्धि– कुछ लोगों में धार्मिक कट्टरता इतनी बढ़ गई है कि वे छोटी-छोटी बातों को भी साम्प्रदायिकता के रंग में रंग देते हैं। कछ स्वार्थी नेता लोगों की धार्मिक भावनाओं से खिलवाड करते हैं और उन्हें विश्वास दिलाते हैं कि उनका धर्म संकट में है। ऐसा प्रचार धार्मिक असहिष्णुता के लिए उत्तरदायी है। बढ़ रही धार्मिक असहिष्णुता के कारण ही साम्प्रदायिक दंगों की वृद्धि हो रही है।
साम्प्रदायिकता का भाषायी आधार– भाषायी आधार वाली साम्प्रदायिकता में पडोस में स्थित अन्य भाषा-भाषियों के विरुद्ध अस्वस्थ प्रतिस्पर्धा, विरोध व घृणा की भावना फैलाई जाती है। भाषायी अल्पसंख्यक शब्द इसी से उत्पन्न होता है। क्षेत्रीयता की संकीर्ण भावना और अन्त प्रान्तीय लोगों के प्रति अस्वस्थ दृष्टिकोण अपनाना भी एक प्रकार की साम्प्रदायिकता ही है। उत्तर-दक्षिण, पंजाबी-गैर पंजाबी, मराठी-कन्नड़, गुजराती-मराठी आदि का भेदभाव इसी प्रकार का है।
राजनैतिक साम्प्रदायिकता— चुनावी लाभ प्राप्त करने के लिए जाति, धर्म व भाषा के आधार पर भडकाई जाने वाली आपसी घृणा यह साम्प्रदायिकता ही सबसे ज्यादा खतरनाक है तथा सारे देश में बहुत व्यापक रूप में फैली हुई है जिसके लिए सत्ता पक्ष तथा अनेक राजनैतिक दल ज़िम्मेवार हैं।
साम्प्रदायिक दंगों में ऐसे लोग अक्सर मारे जाते हैं जिनका कोई कसूर भी नहीं होता अथवा जिन्होंने अपने जीवन में किसी भी व्यक्ति के साथ कोई गलत कार्य भी नहीं किया होता। यह सिर्फ इसलिए भी होता है कि वह एक विशेष धर्म या एक विशेष समुदाय से सम्बन्ध रखता है, इसके अतिरिक्त उसका और कोई दोष नहीं होता। 1947 में देश के विभाजन के कारण लाखों बेगुनाहों ने अपनी जानें खो दी। कश्मीर घाटी में रोज ही कितने एकही समुदाय के निर्दोष लोगों को गोलियों का शिकार बनाया जा रहा है और कुछ को बेघर होकर इधर-उधर दूसरे राज्यों में शरण लेनी पड़ रही है। साम्प्रदायिकता देश की एकता और अखण्डता के लिए भी सबसे बड़ा खतरा है। इससे लोगों का दैनिक जीवन भी प्रभावित होता है और देश को अनदेखी आर्थिक हानि भी उठानी पड़ती है।
साम्प्रदायकिता के कारण होने वाली हिंसा को रोकने के लिए सरकार को ऐसे कारगर उपाए करने चाहिए जिससे साम्प्रदायिक हिंसा न भड़के। ऐसे धार्मिक आयोजनों एवं संगठनों पर सरकार की तरफ से प्रतिबन्ध लगाया जाना चाहिए जिन धार्मिक आयोजनों अथवा संगठनों द्वारा दूसरे धर्म के लोगों की भावनाओं को भड़काया जाता है। सरकार को ऐसे आतंकवादी संगठनों पर भी प्रतिबन्ध लगाना चाहिए जो किसी-न-किसी प्रकार से देश में आतंक फैलाकर बेगुनाह लोगों की जानों से खिलवाड़ करते हैं और देश के विकास में विभिन्न बाधाएँ उत्पन्न करते हैं। जाति और विश्वास के आधार पर दिए गए विशेष अधिकारों को तुरन्त समाप्त कर देना चाहिए। हम अपने आपको पंजाबी, गुजराती, बंगाली मानने की अपेक्षा हिन्दुस्तानी मानें यह बात भी सब भारतवासियों के मन में बिठानी होगी। ‘मानस की जात सबै एक पहचानबो‘ हम सभी एक ही ईश्वर की सन्तान है और हम सब एक ही देश भारत के वासी हैं चाहे हम किसी भी धर्म, मज़हब, सम्प्रदाय, जाति, वर्ण से सम्बन्धित क्यों न हो तभी इस देश मे सौहार्द का वातावरण बन सकता है।