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Hindi Essay, Paragraph, Speech on “Swayam Par Vishvas”, “स्वयं पर विश्वास” Complete Essay for Class 9, 10, 12 Students.

स्वयं पर विश्वास

Swayam Par Vishvas

संस्कृत में कहा गया है कि मन ही मनुष्य के बंधन ओर मोक्ष का कारण है-‘मन एवं मनुष्याणां कारण बंधा न मोक्ष्यों’। मन की स्थिति अत्यंत महत्वपूर्ण है। मन ही व्यक्ति को सांसारिक बंधनों से बाँधता है, मन ही उसे इन बंधनों से छुटकारा दिलाता है। मन ही मन उसे अनेक प्रकार की बुराइयों की ओर प्रवृत्त करता है, तो मन ही उसे अज्ञान से ज्ञान की ओर अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाता है। भाव यह है कि मन चाहे तो क्या नहीं कर सकता। इसीलिए एक विचारक ने कहा है-.

जिसने मन को जीत लिया।

बस उसने जीत लिया संसार”

सृष्टि के अन्य चराचरों का केवल मानव के पास ही ‘मन’ की शक्ति है। अन्य प्राणियों के पास नहीं। मन के कारण ही इच्छा-अनिच्छा, संकल्प-विकल्प, अपेक्षा-उपेक्षा आदि भावनाएँ जन्म लेती हैं। मन में मनन करने की क्षमता है इसी कारण मनुष्य को चिंतनशील प्राणी कहा गया है। संकल्पशील रहने पर व्यक्ति कठिन से कठिन अवस्था में भी पराजय स्वीकार नहीं करता, तो इसके टूट जाने पर छोटी विपत्ति में भी निराश होकर बैठ जाता है। इसीलिए कहा है–

दुख-सुख सब कहँ परत है, पौरूष तजहू न मीत।

मन के हारे हार है मन के जीते जीत’।।

अर्थात् दुख और सुख तो सभी पर पड़ते हैं इसीलिए अपना पौरुष मत छोड़ो क्योंकि हार-जीत तो केवल मन के मानने अथवा न मानने पर ही निर्भर होती है।

ऐसे अनेक उदाहरण हमारे समक्ष हैं जिनमें मन की शक्ति केवल व्यक्ति ने असंभव को संभव कर दिखाया, और पराजय को जीत में बदल दिया। अकबर की विशाल सेना के समक्ष भी केवल मन की शक्ति के बल पर महाराणा प्रताप ने उसकी सेना को नाकों चने चबवा दिए; शिवाजी अपने थोड़े से सैनिकों के साथ मन की शक्ति के सहारे ही तो औरंगजेब से लोहा ले सके। मन की शक्ति के बल पर ही कमजोर दिखने वाले गांधी अंग्रेजों को भारत से निकालने में सक्षम हुए। इसी शक्ति के बल द्वितीय विश्व युद्ध में बरबाद जापान पुनः उठ खड़ा हुआ और कुछ ही समय में पुनः उन्नत राष्ट्रों की श्रेणी में आ गया। इसी प्रकार के अनेक उदाहरण दिए जा सकते हैं। संस्कृत में कहा गया है-

मनो यस्य वशे तस्य भवेत्सर्व जगद्वशे

मनु ज्ञास्तु वशे योअसि सर्वजगतों वशे।

अर्थात् जिसने अपने मन को वश में कर लिया किंतु जो मुनष्य मन को न जीतकर स्वयं उसके बहाव में हो जाता है, उसने सारे संसार की अधीनता स्वीकार कर ली।

अंग्रेजों ने अपने मन की शक्ति के बल पर दुनिया के अनेक देशों पर राज किया। इसके विपरीत विशाल देश भारत के अनेक राजा जब मन की शक्ति से हीन हो गए, तो उन्होंने अंग्रेजों के सामने घुटने टेक दिए।

मन को वश में करने के लिए मन की एकाग्रता आवश्यक है। मन को शक्तिसंपन्न बनाने के लिए हीनता की भावना को दूर करना आवश्यक होता है। जब वानर दल सीता की खोज में निकले तथा उन्हें पता चला कि लंका का राजा रावण सीता को हर कर ले गया है, तो उनका पता लगाने के लिए समुद्र को लाँघना आवश्यक था। कुछ वानरों में समुद्र लाँघने की शक्ति होते हुए भी मन की दुर्बलता आड़े आ गई और वे समुद्र लाँघने की हिम्मत न जुटा सके। यहाँ तक कि पवनपत्र हनुमान के मन में भी दुर्बलता आ गई। उन्हें अपनी सफलता पर संदेह होने लगा, तो जामवंत ने उन्हें उनके बल की याद दिलाई जिसका आश्य था उनके मन में उत्साह की भावना भरना। जैसे ही हनुमान ने अपने मन की शक्ति के सहारे अपने बल को पहचाना, वे तैयार हो गए और समुद्र को लाँघ गए।

अत: हमारा कर्तव्य है कि हम अपने मन को कभी दुर्बल न होने दें क्योंकि मन परम शक्तिसंपन्न है, अनंत शक्ति का स्रोत है, प्रेरणादायिनी शक्ति है, उत्साह एवं दढता का नियंता है और सभी कार्यों को संचालित करने वाला है। जय-पराजय, हानि-लाभ, यश-अपयश, सुख-दुख सब हमारे मन के कारण ही हैं। मानसिक बल शारीरिक बल से श्रेष्ठ होता है।

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