Hindi Essay/Paragraph/Speech on “Mata Pita ki Shiksha me Bhumika”, “माता-पिता की शिक्षा में भूमिका” Complete Essay, Speech for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.
माता-पिता की शिक्षा में भूमिका
Mata Pita ki Shiksha me Bhumika
माता-पिता संतान के जन्मदाता ही नहीं, सब कुछ होते हैं। भारतीय परंपरा तो माँ के चरणों में स्वर्ग मानती है ।भारतीय परम्परा मई अभिभावकों की अहम् भूमिका रही है-बच्चे के व्यक्तित्व-निर्माण में। आज भारतीय जीवन में पाश्चात्य सभ्यता के प्रभाव से भौतिकवादी बुधिप्रधान दृष्टिकोण व्याप्त हो रहा है। सामाजिक परिवेश में परिवर्तन आ रहा है। आज माता-पिता की संतान से आकांक्षाएँ भारतीय मूल से परिवर्तित रूप में प्रकट हो रहा है। संतान भी पाश्चात्य प्रभाव से प्रभावित होकर अधिकारों का रोना रो रही हैं, कर्तव्य नाम की चीज तो आज की संतान के शब्दकोश में है ही नहीं। माता-पिता को संतान की शिक्षा-प्राप्ति में अहम भूमिका निभानी होती है। माता-पिता को अपने बच्चों की शिक्षा से संबंधित सभी आवश्यकताओं की पूर्ति करने के साथ-साथ उनको स्वतंत्र-चिंतन, कार्य-पद्धति तथा व्यवहार की छूट देनी होगी।
अपरिपक्व बुधि को परिपक्व होने में अपना संयम-पूर्ण योगदान देना होगा। आज की व्यस्त जिंदगी में अभिभावकों को समय निकालकर भौतिक सुखों के साथ अपनी मौजूदगी का अहसास बच्चों में भरना होगा। अपनी आवश्यकता थोपने के स्थान पर अहसास की भावना भरनी होगी। विचारों में समन्वय करना होगा। प्रसाद जी ने मानो माता-पिता को यही संदेश देते हुए कहा है-
आँसु के भीगे अंचल पर, मन का सब कुछ रखना होगा।
तुमको अपनी स्मित रेखा से, यह संधि पत्र लिखना होगा।।
वास्तव में पाश्चात्य सभ्यता ‘मैं’ की उपासिका है। वह व्यक्ति के मूल्य को अंकित करती है परिवार के नहीं। जबकि भारतीय संस्कृति पूरे विश्व को परिवार समझने की पक्षधर है। दोनों सभ्यताओं में अंतर ही आज की समस्याओं की जड है। माता-पिता ने जीवन की दौड़ में दौड़कर ‘अनुभव’ के जो रत्न प्राप्त किए हैं, आज की संतान उन रत्नों से लाभ नहीं उठाना चाहती। वह स्वयं गलत या सही अनुभव करना चाहती है। इसलिए माता-पिता को अपने अनुभव बताने चाहिए, लादने नहीं।