Hindi Essay, Paragraph, Speech on “Dahej Pratha : Ek Abhishap”, “दहेज प्रथा: एक अभिशाप” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation Classes.
दहेज प्रथा: एक अभिशाप
Dahej Pratha : Ek Abhishap
Best 3 Hindi Essay on “Dahej Pratha ek Abhishap”
निबंध नंबर: 01
समाज में प्रत्येक प्रथा का सूत्रपात किसी अच्छे उद्देश्य को लेकर ही होता है, पंरतु कालातंर मे ये प्रथाएँ एक ऐसी रूढ़ि बन जाती हैं कि उससे मुक्ति पाना सहज नहीं होता। साथ ही उस प्रथा से समाज में बुराईयाँ भी पैदा होने लगती हैं। दहेज प्रथा भी आजकल एक ऐसी रूढ़ि बन गई है। जिसने हर उस मनुष्य का चैन छीन लिया है, जो एक विवाह योग्य कन्या का पिता है। इस कुप्रथा के कारण विवाह जैसा महत्वपूर्ण एवं पवित्र संस्कार ’’वर को खरीदने एवं बेचने की मंडी’’ बन गया है। यक एक ऐसी विषबेल है, जिसने पारिवारिक जीवन को उजाड़ कर रख दिया है। आजकल कोई भी दिन ऐसा नहीं जाता जिस दिन समाचार-पत्रों में दहेज के कारण किसी नवयुवती की मृत्यु या उसके ऊपर अत्याचार के समाचार पढ़ने को न मिलते हों। आजकल यह प्रथा एक अभिशाप बन गई है।
दहेज प्रथा भारतीय समसज पर एक बहुत बड़ा कलंक है। इसने भारतीय समाज को घुन खाई लकड़ी के समान अशक्त कर दिया है। यह एक ऐसे दैत्य का स्वरूप ग्रहण कर चुका है, जो पारिवारिक जीवन को देखते-ही-देखते विषाक्त कर डालता है। इसने हजारों नारियों को घर छोड़ने पर विवश किया है। हजारों नारियाँ इसकी बलिवेदी पर अपने प्राण दे चुकी हैं। समाज सुधारकों के प्रयत्नों के बावजूद दहेज प्रथा ने अत्यंत विकट रूप धारण कर लिया है। इसका विकृत रूप मानव समाज को भीतर से खोखला कर रहा है।
यह कुप्रथा समाज तथा कन्या के माता-पिता के लिए सबसे बड़ा अभिशाप सिद्व हो रही है। एक लड़की के विवाह के लिए सामान्यतः मध्यमवर्गीय व्यक्ति को अपनी सामथ्र्य से अधिक रूपए खर्च करने पड़ रहे हैं। इसलिए विवश होकर उसे या तो ऋण की शरण लेनी पड़ती है या रिश्वत आदि अनुचित साधनों से वह धन की व्यवस्था करता है। ऋण लेकर विवाह करने पर कभी-कभी उसका समस्त जीवन ऋण चुकाने में निकल जाता है। दहेज की समस्या के कारण अपने माता-पिता की दयनीय दशा देखकर कभी-कभी कन्याएँ इतनी निराश और दुखी हो जाती हैं कि अपना विवके खोकर आत्महत्या तक कर लेती हैं। वे सोचती हैं कि अपने माता-पिता की शोचनीय दशा कारण वे ही हैं इसलिए न रहेगा बाँस न बजेगी बाँसुरी की लाकोक्ति को चरितार्थ करती हुई वे अपना जीवन ही समाप्त कर लेती हैं।
दहेज लोभी व्यक्ति केवल विवाह के अवसर पर मिल दहेज को पाकर ही संतुष्ट नहीं होते बल्कि विवाह के बाद भी कन्या प़क्ष से उनकी माँगें बराबर बनी रहती हैं और अपनी इन अनुचित माँगों के पूरा होने की स्थिति में वे नववधू को शारीरिक एवं मानसिक यातनाएँ देते हैं। भूखा-रखना, बात-बात पर कटूक्तियाँ कहना, मारना-पीटना, अंग-भंग कर देना आदि तरीकों से वे नवविवाहिता को अपने माता-पिता से दहेज लाने को विवश करते हैं। यदि इतने पर भी वे और दहेज नहीं ला पाती हैं, तो उन्हें जिंदा जला दिया जाता है या हमेशा के लिए पिता के ही घर में रहने के लिए त्याग दिया जाता है।
अब ज्वलंत प्रश्न यह है कि इस सामाजिक कोढ़ को कैसे समाप्त किया जाए ? इसके लिए व्यापक रूप से प्रयास करने की आवश्यकता है, क्यांेकि ऊपरी तौर पर इस कुप्र्र्र्र्र्रका का कोई भी पक्षधर नहीं हैं, पंरतु अवसर मिलने पर लोग दहेज लेने से नहीं चूकते। इसको दूर करने के लिए सरकार ने दहेज विरोधी कानून बना दिया है। दहेज के संदर्भ में नवविवाहिताओं की मृत्यु संबंधी मामलों में न्यायाधीशों ने नववधुओं के पति, सास-ससुर आदि को मृत्युदण्ड देकर इस कुप्रथा को समाप्त करने की दिशा में प्रशसनीय प्रयास किया है, परंतु यह कुप्रथा सुरक्षा के मुख की भाँति बढ़ती जा रही है। इसके विरोध में व्यापक जनचेतना जाग्रत करने की आवश्यकता है। सरकार के साथ-साथ समाजसेवी संस्थाएँ तथा समाजसेवा में रूचि रखने वाले लोग इस प्रथा के विरूद्व जागृति उत्पन्न करने तथा रोकने के कड़े उपाय भी करें, तो इससे छुटकारा पाया जा सकता है।
इस प्रथा के विरोध में देश के अनेक भागों में महिलाओं के संगठन उठ खड़े हुए हैं। दहेज के कारण जहाँ कहीं भी उत्पीड़न की घटना की सूचना इनको मिलती है, ये उनका प्रतिरोध करने के लिए पहुँच जाते हैं। इनके प्रतिरोध के रूप, समय और स्थान के अनुसार अलग-अलग होते हैं। इस प्रकार इस सामाजिक बुराई को रोकने में इनसे काफी मदद मिली है।
निबंध नंबर: 02
दहेज प्रथा
जरा धनी लोगों की ओर देखिए! बेतहाशा दौलत उन्होंने अपने पास एकत्र कर रखी है। उनमें से कुछ ने उसके लिये अनुचित तरीकों का सहारा भी लिया है। अनैतिक तरीकों से कमाया गया वह धन वे अपनी बेटियों को दहेज के रूप में देते हैं। आज इस आधुनिक समय में भी लोग अपनी बेटियों के दहेज में लाखों रुपये देते हैं। कभी-कभी तो वर अपनी पढ़ाई पर आए सारे खर्चे के साथ-साथ स्कूटर, कार तथा ऐश-आराम की अनेक चीजों की मांग भी करते हैं। इस प्रकार यह प्रथा ऐसी चल पड़ी है कि बेटी के विवाह में कुछ-न-कुछ दहेज अवश्य देना चाहिये, क्योंकि एक नये वातावरण में उसे अपनी स्वयं की एक नयी गृहस्थी बनानी होती है।
हमारे देश में नारी का सम्मान प्राचीन काल से होता चला आ रहा है। एक ओर तो उन्होंने वीरांगनाओं की भूमिका निभाई है, दूसरी ओर सफल प्रबन्धकी भी सिद्ध हुई हैं। ऐसी अनेकानेक सती-साध्वी नारियां भी हुई हैं, जिन्होंने अपने अमर उपदेशों से दूसरों को लाभान्वित किया। उनका उल्लेख हमें प्राचीन ग्रन्थों में मिलता है। नारी की उपस्थिति के बिना कोई भी अनुष्ठान पूर्ण नहीं हो पाता था। भगवान राम ने भी अपने यज्ञ-अनुष्ठान के समय सीता की अनुपस्थिति में उनकी स्वर्ण प्रतिमा अपनी बगल में स्थापित कराई थी।
इस प्रकार हम देखते हैं कि हमारे पुनीत देश में इतिहास के प्रारम्भ काल से ही नारी का सम्मान होता आया है।
किन्तु मध्यकालीन सदियों में परिस्थितियों ने प्रतिकूल रूप ले लिया और दहेज प्रथा, बाल-विवाह, पर्दा प्रथा आदि ने नारी की स्थिति इतनी शोचनीय बना दी जैसी पहले कभी न हुई थी।
लेकिन आधुनिक भारतीय समाज में इस बात ही हर सम्भव कोशिश की जा रही है कि नारी को समाज में उसका खोया हुआ स्थान दिलाया जा सके। हमारे देश में गरीबों की संख्या करोड़ों में है। एक ग्राम प्रधान देश होने के कारण भारत की 80 प्रतिशत आबादी ग्रामीण क्षेत्रों से सम्बन्धित है, अतः गरीब जनता इस प्रथा का निर्वाह भली-भांति नहीं कर सकती। दहेज की मांग से माता-पिता के सिर पर अतिरिक्त बोझ आ पड़ता है, जबकि वैसे ही उन्हें अपनी सन्तानों का पढ़ाई से लेकर विवाह तक का खर्च बर्दाश्त करना पड़ता है और उसके लिए अत्यधिक धन इकट्ठा करने में तरह-तरह की मुसीबतें उठानी पड़ती हैं।
निर्धन लोगों के लिए विपुल धनराशि की व्यवस्था कर पाना बहुत कठिन होता है। वे बेचारे कड़ा परिश्रम करके किसी प्रकार दो समय का रूखा-सूखा खाना जुटा पाते हैं और दिन गुजारते रहते हैं। उन्हें सम्पन्न और धनी वर्ग की प्रथाओं का पालन करना होता है। उनके समक्ष अपनी इच्छा-अनिच्छा का तो प्रश्न ही नहीं होता, बस बनी-बनाई लीक को पीटना भर होता है। अपनी बेटियों के विवाह के इन्तजाम के लिये उन्हें कर्ज लेना पड़ता है और वे आजीवन उसी कर्ज के बोझ के नीचे पिसते रहते हैं। प्राचीन काल में इसी के परिणामस्वरूप बंधुआ मजदूरी की प्रथा का जन्म हुआ था, जिसे अभी हाल ही में वैधानिक रूप से देश से समाप्त किया गया है।
दहेज प्रथा रूपी इस अभिशाप के विरुद्ध स्वामी दयानन्द सरस्वती, राजा राममोहन राय आदि अनेकानेक समाज-सुधारक अपना उद्घोष गुंजाते रहे हैं। इसी का मुकाबला करने के लिये दहेज-हीन विवाहों का आयोजन आर्य समाज द्वारा किया जाता है। सरकार भी इस समस्या की ओर से लापरवाह नहीं है। श्रीमती इन्दिरा गांधी के नेतृत्व में सरकार ने दहेज विरोधी कछ कानन भी पास करने के प्रयास किए थे।
अगर भारत को महिलाओं के स्तर को ऊचा उठाना है तो इस कुत्सित प्रथा को समाप्त करना ही होगा। पहले ही इस प्रथा ने देश में गरीबी बढ़ाने में कोई कसर नहीं उठा रखी है। माता-पिताओं को यह आजादी होनी चाहिये कि वे अपनी बेटियों को वही दें जो वह देना चाहते हैं; मजबूरी या बंधन जैसी कोई चीज नहीं होनी चाहिये। वैसे इतना तो होना ही चाहिये कि विवाहों पर धन खर्च करने की एक कानूनी सीमा निर्धारित कर दी जाए। लेकिन साथ ही यह भी सच है कि समस्या का स्थायी समाधान कानून या विधेयकों द्वारा नहीं हो सकता। जनता द्वारा चलाया गया आन्दोलन ही इस समस्या को सुलझा सकता है, सदैव के लिये समाप्त कर सकता है। वास्तव में, हमारे देश के ग्रामीण समाज के विकास में सबसे बड़ी बाधा यह दहेज समस्या ही है।
अब महिलाओं को पुरुषों के बराबर अधिकार मिल चुके हैं। पुरुषों की भांति अब वे भी जीविका अर्जित करने लगी हैं। अतः आज के समय की यह पुकार है कि दहेज प्रथा को समूल समाप्त कर दिया जाए। किन्तु सम्पन्न भाता-पिताओं को यह अनुमति होनी चाहिये कि यदि वे चाहें तो अपनी बेटियों के विवाह में कुछेक वस्तुंए दे सकते हैं।
अगर लोग दहेज प्रथा को समाप्त करने के लिये तैयार हो जाएं और वर भारी दहेज लेने से इन्कार कर दें तो देश पहले से अधिक सम्पन्न हो जाएगा और महिलाओं का स्तर ऊंचे-से-ऊंचे उठता जाएगा। जब अधिक दहेज की मांग होती है तो वर एक बहुमूल्य वस्तु बन जाता है। यह देश के निष्कलंक मस्तक पर एक कलंक का टीका है।
अतः इस प्रथा का जड़-शाखा से उन्मूलन होना चाहिये। यह आज के समय की ज्वलंत मांग है। जितनी जल्दी उसका श्रीगणेश हो जाए उतना ही अच्छा है।
निबंध नंबर: 03
दहेज–एक अभिशाप
Dahej ek Abhishap
हमारे समाज में अनेक त्रुटियां और कुरीतियां हैं जो समाज को धुन की तरह लग कर अंदर ही अन्दर खोखला कर रही है । दहेज एक ऐसी ही सामाजिक बुराई है, जो समाज के माथे का कलंक है । दहेज लड़की के लिए, लड़की के माता पिता के लिए तो अभिशाप है ही साथ ही यह भारतीय समाज के लिए भी एक दुःखद और घृणित अभिशाप है ।
दहेज शब्द अरबी के शब्द जहेज़ का बदला हुआ रूप है जिसका अर्थ है, विवाह के अवसर पर वर को दिया जाने वाला धन या उपहार । संस्कृत में यौतक शब्द है जिसका अर्थ है वर और वधू को दिया जाने वाला । मनुस्मृति में विवाह के भेदों के अन्तर्गत आर्ष विवाह में दो गौएं देने का उल्लेख है । इससे यह स्पष्ट है कि बहुत पुराने समय में वरपक्ष की ओर से मांग कर या ज़बरदस्ती कुछ नहीं लिया जाता था । माता-पिता पुत्री को विदा करते समय प्रेम के कारण देते थे या उनके मन में यह भावना होती थी कि इन्होंने नई गृहस्थी बसानी कुछ सहायता हम भी कर दें ।
दहेज के रूप में अधिक धन सम्पत्ति देने का रिवाज़ राजाओं और जागीरदारों से आरम्भ हुआ । वे लोग अपने बराबर के या अपने बड़े के यहां ही अपनी लड़की का रिश्ता करते थे ताकि उनका राज्य या जागीर सुरक्षित रहे । उनके लिए लड़का-लड़के का सम्बन्ध उतनी महत्ता नहीं रखता था जितनी महत्ता सैनिक या राजनैतिक सम्बन्धों की होती थी । फलस्वरूप प्रलोभन के लिए अधिक से अधिक सोना, चांदी तथा अन्य वस्तुएं और नौकर-नौकरानियां भी दहेज में दी जाती थी । धीरे-धीरे यह बीमारी समाज के अन्य वर्गों में भी फैलती गई ।
अब तो यह हाल है कि कई बिरादरियों में रिश्ता तय करते समय पहले सौदा होता है कि लड़की वाले इतना दहेज देंगे तब विवाह होगा । लड़का जितना अधिक पढ़ा लिखा या जितनी बड़ी नौकरी पर होता है उसी के अनुसार दहेज का मूल्य भी निश्चित किया जाता है । दहेज के लोभ में कुरुप लड़कियां भी वरपक्ष द्वारा स्वीकार कर ली जाती हैं । बाद में लड़के-लड़की का मन न मिलने पर कई प्रकार की उलझनें उत्पन्न होती हैं ।
दहेज के इस अभिशाप ने मध्यवर्ग की बरी दशा कर दी है । मध्यवर्ग वास्तव में मज़दूर वर्ग ही होता है क्योंकि बिना काम या मेहनत के इसका निर्वाह नहीं चल पाता, परन्तु आकांक्षाएं उच्चवर्ग में पहुंचने की होती हैं। हर मध्यवर्गीय युवक और उसके माता-पिता भी यह चाहते हैं कि उनके पास कोठी, कार, फ्रिज, टैलीविज़न, कीमती गहनें, बढ़िया कपड़े आदि सभी वस्तएं हों। नौकरी या सामान्य काम धंधे से सिर्फ रोटी मिलती है, ये सब कुछ नहीं बन पाता । फलस्वरूप दहेज से सब कुछ पाने का यल किया जाता है । उधर लड़की के मध्यवर्गीय माता-पिता भी अपनी नाक रखने के लिए अपनी सामर्थ्य से बढ़ कर दहेज देने का यत्न करते हैं तो भी वरपक्ष का पेट नहीं भर पाते । फिर एक भयानक चक्र आरम्भ हो जाता है । लड़की की सास या ननदें उसे दिन-रात तानें उलाहने देती हैं और उसका जीना भर कर देती हैं । कई बार पति देव साफ शब्दों में धन की मांग रखते हैं कि मायके से इतना लेकर आओ । लड़की माता पिता के पास आकर रोती है. वे उसे बसती देखना चाहते हैं और किसी न किसी तरह प्रबन्ध करके धन दे देते हैं । लड़के वालों के मुंह लहू लग जाता है । मांग पूरी न होने की दशा में या तो लड़की को छोड़ दिया जाता है या तरह तरह की यातनाएं दी जाती है । समाचार पत्रों में नवविवाहिता युवतियों के स्टोव से जलने के अनेक समाचार आते हैं। ऐसे समाचार भी पढ़ने में आए हैं कि दहेज कम लाने के कारण विष देकर या गला घोंट कर युवतियों की हत्या कर दी गई।
इस अभिशाप के लिए नई और पुरानी दोनों पीढ़ियां दोषी हैं । यदि लड़के के माता-पिता दहेज के लालची हैं तो लडका उनका विरोध क्यों नहीं करता ? यदि लड़की के माता-पिता दहेज देना चाहते हैं तो लडकी को भी स्पष्ट रूप से कह देना चाहिए कि वह दहेज के लालची लड़के से कदापि विवाह नहीं करेगी ।
इसमें कोई सन्देह नहीं कि पिछले दिनों अनेक जगह युवकों और युवतियों ने सामूहिक रूप से दहेज लेने-देने के विरुद्ध प्रतिज्ञाएं की हैं किन्तु भीड़ में की गई वे प्रतिज्ञाएं क्या हृदय से निकली हुई सच्ची भावनाएं थीं ?
इस अभिशाप को मिटाने के लिए सर्वप्रथम युवक और युवतियों को कटिबद्ध होना चाहिए । माता-पिता को भी सोचना चाहिए कि विवाह दो हृदयों का मिलन है, कोई व्यापार नहीं है । सरकार को चाहिये कि कानूनों को कठोरता से लागू करे और उल्लंघन करने वालों के साथ किसी प्रकार की रियायत न की जाए । इसके साथ ही यदि कानूनी तौर पर गहनों का पहनना निषिद्ध कर दिया जाए तो बहुत बड़ी सिर दर्द टल सकती है । समाज के प्रतिष्ठित व्यक्तियों को भी चाहिए कि वे अपने लड़कों और लड़कियों के विवाह बिना किसी दहेज और बिना किसी धमधाम के अत्यन्त सादगी के साथ करके अन्य लोगों के सामने आदर्श प्रस्तुत करें । इसके अतिरिक्त धार्मिक, सामाजिक, राजनीतिक सभी मंचो से धन के लोभ का विरोध होना चाहिए, क्योंकि वही दहेज का मूल कारण है ।
यदि दहेज का यह अभिशाप न मिटा तो न जाने कितने अनमेल विवाह कितने हृदयों का खून करेंगे और कितनी नवयुवतियां भरी जवानी में मृत्यु की भेंट चढ़ा दी जाएंगी या स्वयं आत्म-हत्या करने पर विवश होंगी ! इस अभिशाप को मिटा कर ही समाज का माथा उज्जवल तथा गौरव से ऊंचा होगा।