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Hindi Essay/Paragraph/Speech on “Bharat me Harit Kranti”, “भारत में हरित क्रान्ति” Complete Essay, Speech for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

भारत में हरित क्रान्ति

Bharat me Harit Kranti

प्रस्तावना : क्रान्ति का अर्थ होता है उथल-पुथल होना, परिवर्तन होना या बदलाव आना । विषम जड़ पड़ चुके जीवन में विशेष प्रकार की हलचल लाकर या फिर योजनाबद्ध रूप से कार्य कर केस्थितियों के अनुकूल और आवश्यकता के अनुसार परिवर्तन लाना ही वास्तव में क्रान्ति करना या होना कहा जाता है। विश्व में और भारत में भी समय-समय पर कई तरह की क्रान्तियाँ होती रही हैं; पर यहाँ जिस प्रकार की क्रान्ति की चर्चा हम करने जा रहे हैं, भारत जैसेपिछड़े हुए और विकासोन्मुख देश के सन्दर्भ में वह वास्तव में अपना विशेष मूल्य एवं महत्व रखती हैं। उसका नाम है हरित-क्रान्ति, यानि खेतों को लहलहा कर हरा-भरा कर देने वाली क्रान्ति, खाद्य अनाजों के अभाव वाले देश में उसे आत्मनिर्भर ही नहीं, निर्यात कर सकने योग्य भी बना देने वाली क्रान्ति-हरित क्रान्ति।

हरित क्रान्ति से अभिप्राय : सन् 1947 में भारत का बँटवारा हो जाने के कारण वह अधिकांश भूभाग पाकिस्तान में चला गया जो अनाजों की पैदावार की दृष्टि से विशेष महत्त्वपूर्ण था। स्वतंत्रता प्राप्त कर लेने के बाद अन्य कई प्रकार की विकास योजनाएँ, तो आरम्भ कर दी गईं; पर जीने के लिए अन्न-जल प्राथमिक आवश्यकता हुआ करता है, इस ओर कतई कोई ध्यान नहीं दिया गया। हमारी इस उपेक्षा का एक कारण अमेरिका के जाल में फंसना भी था। अमेरिका में अनाज-सहायता के नाम पर पी० एल० 480 समझौता कर के अपने देश का बचा-खुचा घटिया अनाज भारत सरकार को देना शुरू कर दिया। सरकार खुश हुई कि चलो, बिना हाथ-पैर हिलाए देश की खादय-समस्या हल हो गई। अमेरिका को तो अपना बचा-खुचा अनाज खपाने के लिए भारत एक मण्डी के रूप में मिल ही गया, अन्य कई देश भी अमेरिका के साथ मिलकर, जान-बूझ कर कमी और अभाव पैदा कर अपने यहाँ का बचा-खचा, सड़ा-गला अनाज यहाँ भेजने लगे।

एक बार तो अर्जनटीना ने ‘मिलो’ नाम का बाजरे जैसा ऐसा अनाज भेजा था कि जिसकी पकी रोटी लाख निगलने पर भी गले से उतरने का नाम न लेती थी; पर लोगों की विवशता, उन्हें निगलनी ही पड़ती थी। सो इस प्रकार अनाज के बारे में भारत एकदम विवश, पूरी तरह दीन-हीन बन कर रह गया । तब परिस्थितियों की मार कुछ ऐसी पड़ी की देर से ही सही, भारत सरकार और उसके नेतृत्त्व को समझ आई कि अनाज के बारे में आत्मनिर्भर हुए बिना न तो देशवासियों का काम चल सकता है, न स्वाभिमान की रक्षा ही संभव हो सकती है। फलत: हरित क्रान्ति यानि अनाज उगाने की मुहिम चल पाई।

प्रेरक तत्व : ऊपर हरित क्रान्ति के अभिप्राय शीर्षक के। अन्तर्गत जिन कारक तत्त्वों का उल्लेख किया गया है, वे तो हैं ही, एक अन्य महत्त्वपूर्ण कारण भी घटित हुआ, जिसने भारत की इस दिशा में सोच बदलने को बाध्य कर दिया। अमेरिका की नीति आरम्भ से ही पाकिस्तान के प्रति पक्षपात करने की रही, इसका सबूत भारत को संयक्त राष्ट्रसंघ तथा अन्य मंचों पर अनेक बार मिल चका था; फिर भी भारत समझा नहीं; उस पर विश्वास करता रहा। अनाज के बारे में उसी पर निर्भर रहता रहा। सन् 1965 के इस भारत-पाक युद्ध के अवसर पर हुआ यह कि अनाज से लदे जो जहाज अमेरिका से भारत का आधा या अधिक रास्ता तय कर चुके थे, पाकिस्तान के ‘पक्ष में भारत पर दबाव डालने के लिए अमेरिका ने उन जहाजों को रास्ते में ही रोक दिया, ताकि अनाज-तंगी के कारण भारत युद्ध बन्द करने को विवश होकर अपनी जीती हुई बाजी भी हार जाए, किन्त। नहीं तब के भारत के छोटे कद के महान् इरादों वाले महान प्रधानमंत्री श्री लालबहादुर शास्त्री ने देश को एक नया नारा दिया।जय जवान, जय किसान’। फलस्वरूप युद्ध जीत के कारण जवानों का जय-जयकार तो हुआ ही है, किसानों में भी एक नया उत्साह और स्फूर्ति भर गए। कहा जा सकता है कि यहीं से ही वास्तव में भारत में हरित क्रान्ति होने की नींव पड़ी है ।

क्रान्ति सरकार : उस युद्ध काल में तो एक दिन नागा करना, एक दिन चावल और गेहूं के स्थान पर मक्की-बाजरा आदि खाने का कई । महीनों तक ज़ोर रहा ताकि गेहूं-चावल का अभाव दूर किया जा सके। पर शीघ्र ही खेत-खलिहानों में सरकार की सहायता और किसानों के परिश्रम से नए वैज्ञानिक साधन एवं उपाय अपना कर हरित क्रान्ति के बीज अंकुरित होने लगे । दृढ़ निश्चय और निरन्तर परिश्रम ने शीघ्र ही उस क्रान्ति-प्रयासों का प्रतिफल और प्रतिदान भी प्रदान किया। देश का हर खेत-खलिहान हरा-भरा होकर लहलहा उठा। बंजर भूमि तक को अनवरत परिश्रम कर के हरा-भरा और उपजाऊ बना दिया गया। चारों ओर हरियाली की एक सर्वथा नवीन, अश्रुतपूर्व सुमधुर रागिनी गूंजने लगी यानि कि देश में सचमुच एक अद्भुत घटना के रूप में हरित क्रान्ति हो गई। आज तब से स्थितियाँ बहुत आगे निकल चुकी हैं। जनसंख्या-वृद्धि के साथ-साथ खेत-खलिहानों की उपज भी भरपूर बढोतरी पा चुकी है। इस सीमा तक कि भारत आज कई जरूरतमन्द देशों को निस्पृह भाव से गेहूं का निर्यात भी करने लगा है।

उपसंहार : इस हरित क्रान्ति के लिए हमें पाकिस्तान और अमेरिका की भारत-शत्रुता को निश्चय ही हार्दिक धन्यवाद दे सकते हैं। यदि सन् 1965 के भारत-पाक-युद्ध के अवसर पर अमेरिका ने भारत आ रहे अनाज के जहाज न रोके होते, तो बहुत सम्भव आज भी भारत अमेरिका के जीरे की तरह कृशकाय गेहूँ और अर्जनटीना के मिलो पर ही जी रहा होता । भारत का जमींदार-किसान उसी गरीबी की दलदल में फंसा होता। हरित क्रान्ति ने आकर उनका जीवन तो बदल ही दिया। है, भारत को स्वावलम्बी बना कर उसका मान-सम्मान भी बढ़ा दिया।

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