Hindi Essay, Paragraph, Speech on “Bharat ki Sanskritik Ekta”, ”भारत की साँस्कृतिक एकता” Complete Hindi Anuched for Class 8, 9, 10, Class 12 and Graduation Classes
भारत की साँस्कृतिक एकता
Bharat ki Sanskritik Ekta
अस्कतिक दृष्टि से भारत इस धरती का अत्यन्त प्राचीन देश माना जाता है। रोम मस की प्राचीनतम मानी जाने वाली सस्कृतियों के खण्डहर विशेष भी इस धरा धाम बीरे-धीरे समाप्त होते जा रहे हैं, जब कि भारतीय सभ्यता-संस्कति के भीतर अपनी कुछ आत्यन्तिक विशेषताएँ ऐसी हैं कि समय-समय पर प्रयत्न किये जाते रहने पर भी आज तक इस का कोई बाल भी बाँका नहीं कर सका। इस का साँस्कृतिक पर्यावरण दिन दुगुनी और रात चौगुनी प्रगति एवं विकास करता रहा है और एक सीमा तक आज भी कर रहा है।
समय-समय पर यहाँ मंगोल, हूण, तुर्क, मुगल, पठान और न जाने कौन-कौन, कहाँ -कहाँ के आक्रमणकारी आते रहे। कुछ तो यहाँ से अतुल सम्पत्ति लूट-पाट कर चलते बने, बाकी जो यहीं रह गए भारतीय सभ्यता-संस्कृति ने उन्हें अपने अन्दर समा कर अपनी ही शाश्वत विराटता का एक अंग बना लिया। आज उनकी अलग से पहचान कर पाना भी सम्भव नहीं रह गया। इसी कारण भारत को संस्कृतियों का संगम-स्थल विराट सागर तो कहा ही जाता है, साँस्कृतिक अभेद्य कवच में लिपटा हुआ देश भी माना जाता है। इस का प्रमुख कारण यह है कि न केवल दार्शनिक स्तर पर बल्कि धार्मिक, आध्यात्मिक, सामाजिक आदि प्रत्येक स्तर पर भारत समन्वय-साधना पर विश्वास करने वाला देश रहा और आज भी है।
आर्य या हिन्दू-सभ्यता-संस्कृति यहाँ की मूल एवं प्राचीन सभ्यता-संस्कृति मानी गई है। केवल भारत में ही नहीं, बल्कि सारे विश्व में इसे धरती की प्राचीनतम संस्कृति मुक्त कण्ठ से स्वीकार किया जाता रहा है। बाद में इसी से बौद्ध, जैन, सिक्ख आदि विभिन्न सम्प्रदायों का तो जन्म हुआ ही, अपनी धारणाओं के अनुसार प्रगति एवं विकास कर इन्होंने अपनी अलग संस्कृतियाँ भी विकसित कर ली। इस पर कभी किसी ने कोई ऐतराज न कर यथेष्ट सम्मान एवं मान्यता प्रदान की। बाद में आक्रमणकारी बन आने वाले इस्लाम को भी भारत की पाक धरती ने अपने एक अंग के रूप में अपना और अपना बना लिया। आज संसार में सर्वाधिक इस्लाम संस्कृति के पैरोकार एकदेश के रूप में इस धरती पर ही रहते और अपने विश्वासों के अनुरूप फल-फल रहे हैं। जितनी स्वतंत्रता और छूट उन्हें भारत में प्राप्त है, उतनी शायद किसी इस्लामी देश में भी नहीं है। इसी तरह पारसा संस्कृति, ईसाई संस्कृति आदि छोटी-बड़ी अन्य अनेक संस्कृतियाँ भी यहाँ स्वतंत्र आश्रय पाकर फल-फूल रही हैं। सभी को अपनी मल अवधारणाओं के साथ जीने-रहने का सामाजिक अधिकार पहले से प्राप्त है, जबकि संवैधानिक अधिकार बाद में मिल पाया है।
आरम्भ से ही, एक स्वाभाविक आपसी सूझ-बूझ के आधार पर भिन्न संस्कृतिक को मानने वाले लोग यहाँ मिल-जुल कर रहते आ रहे हैं। लेकिन आज विदेशी शह कर या अन्य कई प्रकार के निहित स्वार्थी तत्त्वों से उकसाए जाकर अनपढ औरक्षित लोग अक्सर धर्म और संस्कृति की रक्षा के नाम पर अराजकता के संकीर्ण पथ पर निकल कर सारे वातावरण को विषैला और अराजक बनाने का प्रयास करने लगते हैं । धर्म और संस्कृति की आड में अलगाववाद की आग को हवा देकर अपनी रोटियाँ सेंकने का प्रयास किया करते हैं। इसे किसी भी तरह से अच्छा नहीं कहा जा सकता। इस देश की भूमि से जडे इसके साथ अपनत्व रखने वाले लोगों को यह बात भली प्रकार समझ लेनी चाहिए कि भारत और इस का समन्यवादी साँस्कृतिक जीवन दृष्टि के बाहर उन की कोई गति नहीं। उन्हें यही, यानि अपने पूर्व पुरुषों की भूमि पर ही जीना-मरना है। अतः इस तरह के अलगाववादी अराजक तत्त्वों से हर स्तर पर सावधान रहना बहुत ही आवश्यक है।
भारत में साँस्कृतिक विविधता और विभिन्नता के समान कई तरह की प्राकृतिक एवं भौगोलिक विविधताएँ-विभिन्नताएँ भी विद्यमान हैं। उन से भीतरी दृष्टि से पूर्णतया एक होते हुए भी बाहरी स्तर पर यह देश अनेकता पूर्ण दिखाई देता है। अक्सर अराजक और अलगाववादी तत्त्व इसी प्रकार की स्थितियों से अनुचित लाभ उठाने का ओछा प्रयास किया करते हैं। अतीत में भी इस प्रकार के कई प्रयास हो चुके हैं, पर संस्कृति की सूक्ष्म डोर ने भीतर से बाँधे रखकर न तब कुछ बिगड़ने दिया और न अब ही बिगड़ने दे सकता है। फिर भी समझदार लोगों को सावधान तो रहना ही पड़ता है। इस बात का प्रमाण एक नहीं अनेक बार मिल चुके हैं, कि जब-जब भारत पर कोई संकट आया, आपात्काल आया, साँस्कृतिक सूत्र में दृढ़ता के साथ बाँध रहकर हमने उसका मुकाबला किया। फलतः हमने कभी टूटना या बिखरना तो क्या था, झुक भी नहीं सके। इसी एकता को बनाए रखने की आज पहले से कहीं अधिक आवश्यकता है।
आज चारों ओर से इस देश के तोड़ने के प्रयास चल रहे हैं । तरह-तरह के दबाव भी विद्यमान हैं। उन सब को वहन करते हुए ही हमें पहले की तरह ही एक रहकर के लगातार आगे बढ़ते जाना है। याद रहे, जिस देश की साँस्कृतिक नींव सुदृढ हुआ करती। है, लाख बज्रपात मिलकर भी उसे अपने धरातल से हिला नहीं सकते। भारतीय संस्कृति ने सभी देशवासियों को ऐसे सुदृढ़ सूत्रों में जकड़कर, अपनत्व और भाईचारे के भाव से भरकर एक बना रखा है कि जिस का अन्यत्र उदाहरण मिल पाना कतई संभव नहीं।