Hindi Essay-Paragraph on “Yuva Asantosh” “युवा-असंतोष” 500 words Complete Essay for Students of Class 10-12 and Competitive Examination.
युवा-असंतोष
Yuva Asantosh
युवा-शक्ति ही राष्ट्र-शक्ति है। जिस देश में यह शक्ति रचनात्मक कार्यों में लग जाए उस देश का कायाकल्प होना निश्चित है। इसके ठीक विपरीत जिस देश में यह शक्ति विध्वंसकारी गतिविधियों में लग जाए, उस देश का पतन अवश्यंभावी है। इसलिए हर राष्ट्र को सचेष्ट रहना चाहिए कि उसकी युवा-शक्ति विध्वंसकारी गतिविधि में न लगकर रचनात्मक कार्य में लगे। युवा-शक्ति को विध्वंसकारी गतिविधियों में लगने का मुख्य कारण है-युवा असंतोष।
भारत की नयी पीढ़ी चाहे वह विद्यालय में हो या सचिवालय में। राजनीति में हो या साहित्य में, दफ्तरों में हो या सड़कों पर सभी में असंतोष है। इसी असंतोष के कारण आज सर्वत्र अराजकता है। विद्यालय, महाविद्यालय एवं विश्वविद्यालय जो कभी अनुशासन सीखने का स्थान माने जाते थे, वहां आज अनुशासनहीनता का तांडव हो रहा हैं। शिक्षक पीटे जा रहे हैं। सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया जा रहा है। परीक्षाओं में कदाचार खुल्लमखुल्ला हो रहा है। आज कोई भी सभ्य आदमी परिवार के साथ छात्रावास के निकट नहीं रहना चाहता। एक समय था, शिक्षक छात्रों का मार्गदर्शन करते थे, आज के समय में छात्र शिक्षकों को अंगुली पर नचाते हैं। इसका कारण है कि आज भ्रष्टाचार अपने विकराल रूप में शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश कर गया है। छात्रों के मार्गदर्शक शिक्षक नहीं राजनीतिक हो गए हैं। विश्वविद्यालयों में छात्रों का प्रवेश, भाई-भतीजावाद, जातिवाद और रिश्वत के आधार पर हो रहा है। इन्हीं कारणों से युवा छात्रों में असंतोष फैल रहा है। छात्र अच्छी पढ़ाई के बाद भी सड़कों पर धूल फांकने को मजबूर हैं। क्योंकि नौकरियां घूस, जात-पात के आधार पर दी जा रही हैं। इससे युवकों में निराशा, हताशा एवं अशांति फैल गई है। युवक आज राष्ट्रहित में न लगकर आतंकवादी गतिविधियों में संलग्न हो गए हैं। इस प्रकार युवा-शक्ति, जो राष्ट्र का निर्माण करती हैं, वहीं दूसरी विनाशकारी गतिविधियों में संलग्न हो गए हैं। इस प्रकार युवा- शक्ति राष्ट्र के लिए अहित कर बन गई है। कल-कारखानों या अन्य संस्थाओं में कार्यरत युवाओं में भारी असंतोष हैं। युवा कर्मचारी खून-पसीना बहाकर भी उचित पारिश्रमिक नहीं प्राप्त कर पाते। कारखानों के मालिक मजदूरों का शोषण करते हैं। उन्हीं मजदूरों के शोषण से आरामतलब जीवन बिताते हैं। इन भेदभाव ने युवा कर्मचारियों में असंतोष व्याप्त हो गया। ये कर्मचारी कारखानों में ताले लगाकर व्यवस्था के प्रति अपना आक्रोश व्यक्त करते हैं। फलतः अधिकांश कारखाने बंद या बंद होने के कगार पर हैं।
सारांशतः बेरोजगारी, महंगाई, गरीबी, जाति-भेद, घूसखोरी ने युवा असंतोष को बढ़ाया है। सत्तासीन नेताओं ने आज मेधा और प्रतिभा के लिए नौकरी के दरवाजे बंद कर दिए हैं। वे अपने चमचों और भाई-भतीजों को ही पिछले दरवाजे से प्रवेश दिया है। भ्रष्ट पदाधिकारी, व्यापारी एवं तस्कर फल-फूल रहे हैं। वहीं ईमानदार को विषम स्थिति में जीना पड़ रहा है। इससे असंतोष होना स्वाभाविक है। इस असंतोष के लिए अच्छी शिक्षण व्यवस्था लागू होनी चाहिए तथा जात-पात, ऊंच-नीच तथा अमीरी-गरीबी से मुक्त एक उन्नत समाज को बनाना होगा। जहां प्रतिभा मेधा का सम्मान हो। तभी युवाओं के असंतोष को दूर किया जा सकता है।