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Hindi Essay-Paragraph on “Dahej Pratha” “दहेज-प्रथा” 600 words Complete Essay for Students of Class 10-12 and Competitive Examination.

दहेज-प्रथा

Dahej Pratha

दहेज-प्रथा भारत की सामाजिक समस्या है। यह एक सामाजिक भयावह कुप्रथा है। इसके कारण हमारा समाज नित प्रति दुःख में डूबता जा रहा है। हमारे समाज में अनेक कुप्रथाएं हैं। वर्तमान में जिस कुप्रथा ने हमारे समाज को अत्यधिक कलंकित किया है वह है आज की दहेज-प्रथा। प्राचीनकाल में दहेज का अभिप्राय कुछ और था। उस समय यह भेंट या सौगात के रूप में वर-पक्ष को बिना मांगे कन्या-पक्ष की ओर से दिया जाता था। आज दहेज की व्याख्या की जाती है-कन्या-पक्ष की ओर से वर-पक्ष को मुंहमांगा दाम देना। इससे स्पष्ट होता है कि विवाह के पूर्व सशर्त आवश्यक देन को आज का दहेज एवं विवाह के बाद स्वेच्छा से विदाई के समय की देन को भेंट कहते हैं।

पूर्वकाल में भेंट-प्रथा थी न कि आज जैसी दहेज-प्रथा। हमारे धार्मिक एवं ऐतिहासिक ग्रंथ इसके साक्षी हैं। पार्वती के विवाह के बाद विदाई के समय उनके पिता, हिमवान् द्वारा अनेक भेंट दी गई थीं।

दासी दास तुरंग रथ नागा। धेनु बसन मनि वस्तु विभागा।

-रामचरित मानस

इसी प्रकार सीताजी की विदाई के समय राजा जनक ने अपरिमित भेंट दी थी

कनक बसन मनि नरि-नरि जाना।

महियी धेनु वस्तु विधि नाना ॥

ये दृष्टांत राजपुत्रियों के विवाह के हैं। तीसरा उदाहरण एक सामान्य परिवार का है। सुना जाता है कि मुहम्मद साहब ने अपनी पुत्री की शादी में भेंटस्वरूप एक जाता दिया था। इस प्रकार राम-सीता विवाह, शंकर-पार्वती विवाह या मुहम्मद साहब की पुत्री के विवाह में सभी पक्षों की ओर से अपनी-अपनी सामर्थ्य के अनुसार स्वेच्छा से भेट दी गई थी, न कि विवाह के पूर्व सशर्त दहेज।

वर्तमान समय में दहेज का रूप अत्यंत विकृत हो गया है। दहेज एक व्यापार का रूप ले चुका है। ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है कि जिस कन्या के पिता के पास धन का अभाव है उसकी पुत्री का विवाह योग्य लड़के से होना नामुमकिन है। क्योकि बर का पिता अपने पुत्र की मनचाही कीमत मांगता है एवं उसके विवाह के लिए अजीबो-गरीब शर्त रखता है। लगता है कि कुंवारी लड़की वस्तु है और उनके बाप सौदागर। वर्तमान समाज में तो हर प्रकार के लड़के का दहेज निश्चित है। उसी तरह जैसे राशन की दुकान में चीनी, गेह आदि के भाव निश्चित रहते हैं। अगर लड़का किरानी है तो एक लाख, डॉक्टर या इंजीनियर है तो चार-पांच लाख, जाई.ए.एस. या उच्च पदासीन है तो दस-पंद्रह लाख। अब विवाह में लड़की के गुण की नहीं, उसके पिता द्वारा दिए जाने वाले दहेज को देखा जाता है। लड़की का बाप खेती-बारी, घर-द्वार बेचकर भी दहेज की मोटी रकम को पूरा करने की कोशिश करता है। भले ही इस कोशिश में उसका घर तबाह हो जाए। कुछ ऐसे भी लाचार पिता होते हैं, जिन्हें दहेज के अभाव में अपनी रूपवती एवं गुणवती कन्या को किसी बूढ़े के गले में डालना पड़ता है। विवाह के बाद भी दहेज-रूपी दानव साथ नहीं छोड़ता है। लोभी और कर्मण्य जामाता बार-बार वधू को अपने मायके से धन लाने के लिए प्रताड़ित करते हैं। वधुएं इससे ऊबकर आग लगाकर या जहर खाकर आत्महत्या कर लेती हैं। इस सामाजिक व्यवस्था में जामाता को दशम् ग्रह माना जाना सही लगता है।

अब प्रश्न उठता है कि दहेज-प्रथा का मूल कारण क्या है? मेरी समझ में अशिक्षा दहेज-प्रथा का मूल कारण है। सभी बच्चे-बच्चियों को पढ़ना होगा। रेडियोदूरदर्शन, समाचार-पत्र एवं स्वयंसेवी संगठनों द्वारा इसके दुष्प्रभावों को समाज में प्रचारित करना होगा। सरकार ने इसके निषेध के लिए 1965 ई. में कानून भी बनाया है। पर यह कानून पर्याप्त नहीं है। अतः हमें जागरूकता को फैलाना होगा। युवक-युवतियों को इस संघर्ष में आगे लाना होगा और जाति-भेद आदि को भुलाकर बिना दहेज विवाह को प्रोत्साहित करना होगा। तभी यह समस्या हल हो पाएगी।

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