Hindi Essay-Paragraph on “Panchayati Raj Vidheyak 1989” “पंचायतीराज विधेयक-1989” 800 words Complete Essay for Students.
पंचायतीराज विधेयक-1989
Panchayati Raj Vidheyak 1989
पंचायतों को न्यायपालिका की छोटी से छोटी इकाई भी कहा जा सकता है। इसमें अपने कार्य-क्षेत्र के अनुसार ग्राम क्षेत्र के चुने हुए लोग पंच के रूप में रहा करते हैं। पंच का अर्थ होता है-पांच लोगों का संघ। अब, पंचों से बनी न्यायपालिका को पंचायत कहा जाता है। उनके द्वारा चलाई गई व्यवस्था और प्रणाली को ‘पंचायतीराज’ कहा जाता है।
पंचायती राज की कल्पना वास्तव में गणतंत्र की ही देन मानी जाती है। प्राचीन भारत की शासन-व्यवस्था में ग्राम पंचायतों और पंचायती राज का अपना निश्चित महत्त्व था। मध्यकाल में भी यह व्यवस्था थी, आधुकि काल के आरंभिक दशकों तक इसका महत्त्व बना रहा, लेकिन अंग्रेजी राज की नीतियों ने प्रत्यक्ष रूप से इस पंचायती व्यवस्था को समाप्त कर दिया। यद्यपि ग्रामीणों की सोच, आपसी व्यवहारों के कारण इसके प्रति निष्ठा का भाव बना रहा। गांधीजी ने कहा था कि विकास का लाभ पहले उसको मिलना चाहिए, जो सबसे कमजोर, सबसे पिछड़े और सबसे गरीब हैं। समाज के विकास की योजना सबसे नीचे से आरंभ होनी चाहिए। अगर हम चाहते हैं कि सबको समान अवसर मिलें, समता बढ़े, शोषण और गरीबी समाप्त हो, तो अनिवार्य है कि विकास का काम निम्न स्तर के व्यक्ति से प्रारंभ हो।
स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद हमारी राष्ट्रीय सरकार का ध्यान इस व्यवस्था की ओरग गया। 1950 में जब भारत को गणतंत्र घोषित किया गया, तो आम आदमी को शासन-व्यवस्था का अंग और भागीदार बनाने के लिए पंचायतीराज की कल्पना सामने आई। 30 जुलाई, 1988 ई. को प्रधानमंत्री राजीव गांधी की अध्यक्षता में सभी राज्यों के मुख्य सचिवों व देश में दो बार पंचायती राज लाने की सिफारिश की। राज्यों के मुख्य सचिवों ने पंचायती राज को पुनः स्थापित करना, जिला स्तर पर योजना बनाना, गांव को छोड़कर पंचायती चुनाव जिला परिषद् तक दलमत आधार पर करना आदि निर्णय लिए गए। निर्धारित अवधि के बाद पंचायत चुनाव अनिवार्य करने के लिए संविधान में संशोधन के लिए विचार किया गया। ग्रामीण विकास के समस्त कार्यक्रमों और परियोजनाओं के निष्पादन का प्रमुख दायित्व पंचायत समितियों द्वारा वहन किया जाना चाहिए। सरकार की जिन परियोजनाओं से ग्रामीणों को लाभ मिलता है। उनकी पात्रता के चयन के लिए सरपंचों की राय को महत्त्व दिया जाना चाहिए। ग्रामीण क्षेत्रों में उच्च प्राथमिक विद्यालयों, अस्पतालों के रख-रखाव का कार्य पंचायती संस्थाओं के सुपुर्द किया जाना चाहिए। यदि हम पंचायतीराज लाने में सफल हो जाते हैं, तो बापू की उस बात को बल मिलेगा, जिसमें उन्होंने कहा था कि “स्वतंत्र भारत का सात लाख ग्राम गणराज्यों का महासंघ रहेगा।”
राजीव गांधी ने पंचायतीराज संस्थाओं के अधिकारों में और अधिक वृद्धि करने के लिए 64वां संविधान संशोधन विधेयक 15 मई, 1989 को पेश किया। इस मौके पर प्रधानमंत्री ने कहा- “इस विधेयक से जनता और शासन के बीच सत्ता के दलाल और बिचौलिए समाप्त हो जाएंगे। श्री गांधी ने कहा कि, “विधेयक में पंचायतों को कर शुल्क या टोल टैक्स लगाने और वसूलने का अधिकार दिया गया तथा सामाजिक न्याय कार्यक्रमों, विकास कार्य, सार्वजनिक वितरण, रोजगार और ग्रामीण विकास योजनाओं को क्रियांवित करने की जिम्मेदारी सौंपी गई। विधेयक में प्रावधान है कि राज्य सरकार द्वारा कारण बताए जाने पर राज्यपाल पंचायत भंग कर सकता है। नागालैंड, मिजोरम, जम्मू-कश्मीर, मेघालय, स्वायत्त जिला परिषद् वाले क्षेत्रों, आदिवासी क्षेत्र, निकोबार द्वीप समूह, पांडिचेरी और दिल्ली में यह कानून लागू नहीं होगा क्योंकि वहां तो पहले ही पारस्परिक पंचायत व्यवस्था मौजूद है अथवा वहां विशेष परिस्थिति है।“
इस विधेयक के द्वारा संविधान में एक नयी ग्यारहवीं अनुसूची जोड़ दी गई, जिसमें 29 विषयों को रखा गया-
कृषि, कृषि-विस्तार, भूमि सुधार और मुद्रा सुरक्षा, लघु सिंचाई, जल प्रबंध और जल विकास, पशु-पालन, दुग्ध-उद्योग, कुक्कुट पालन, मत्स्य-उद्योग, सामाजिक वनोद्योग और फार्म वनोद्योग, लघुवन उत्पादन लघु-उद्योग, खाद्य प्रसंस्करण उद्योग, खादी ग्राम और कुटीर उद्योग, ग्रामीण आवास, पेयजल, ईंधन और चारा, सड़क पुलिया, पुल, नौघाट, जलमार्ग तथा संचार के अन्य साधन, ग्रामीण विद्युतीकरण, गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम, शिक्षा प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालय, तकनीकी शिक्षण व्यवस्था और अनौपचारिक शिक्षा, पुस्तकालय, सांस्कृतिक, बाजार और मेले, स्वास्थ्य और स्वच्छता, अस्पताल, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और औषधालय, बाल विकास, समाज-कल्याण, विकलांगों और मानसिक रूप से अविकसित व्यक्तियों का कल्याण, कमजोर वर्ग का कल्याण तथा सामुदायिक संपति का रख-रखाव आदि। पंचायतीराज विधेयक का उद्देश्य जनता तथा स्वराज पहुंचाने का प्रसार है, यह एक ऐसी क्रांति है जिसका भारत की जनता के लिए विशेष महत्त्व है। पंचायतीराज विधेयक से 100 करोड़ की जनता की आवाज सुनने का अधिकार, 20 लाख नामुइंदों के पास आ जाएगा जो निश्चित रूप से बहुत बड़ा है। तब समस्याओं का निस्तारण पंचायत, गांव, ब्लॉक स्तर पर होने लगेगा।
पंचायतीराज विधेयक देश में पंचायतीराज की स्थापना की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम है। अगर यह राजीवजी के सपनों के मुताबिक सौ फीसदी तय हो जाए, तो भारत में निश्चित रूप से स्वराज कायम हो जाएगा।