Hindi Essay-Paragraph on “Bharatiya Samaj mein Viklango ki Dasha” “भारतीय समाज में विकलांगों की दशा” 800 words Complete Essay for Students.
भारतीय समाज में विकलांगों की दशा
Bharatiya Samaj mein Viklango ki Dasha
यह विभाजन गलत है कि अमुख व्यक्ति बाधित है या सामान्य है। कम से कम इस आधार को मानकर बहुत से लोगों को अधिकारों से वंचित कर देना गलत है। इससे इस प्रकार भी कहा जा सकता है कि कुछ बाधित प्रत्यक्षतः बाधित है और उसे लोग सामान्य दिखाई देते हैं, पर वे सामान्य भी अकसर कहीं न कहीं बाधित ही हैं। प्रतिभावान या विशेष बुद्धिमान थोड़े से ही लोग होते हैं। अधिकांश लोग मन और शरीर से ठीक-ठाक होते हुए भी कहीं न कहीं बाधित से ग्रस्त होते हैं। दूसरी ओर बाधितों में अनेक लोग ऐसे होते हैं कि वे सामान्य लोगों से आगे बाजी मार लेते हैं। इसीलिए बाधित और अबाधित का वर्गीकरण एक वर्ग को अधिकार से वंचित करके दूसरे वर्ग को विशेष अधिकार देना है, जो कानून न्याय, नैतिकता, मानवीयता आदि दृष्टि से अनुचित है।
हमारा जीवन कदम-कदम पर अनेक बाधाओं से भरा पड़ा है। इसीलिए हमें अनेक परीक्षाओं और परीक्षणों से होकर गुजरना पड़ता है। हमें साहस, धैर्य और उत्साह के साथ काम करना होगा। उस स्थिति में समस्याएं हावी नहीं हो सकेंगी। बाधितों के लिए सफलता का दरवाजा खटखटाने रहना अत्यंत आवश्यक है। इस संबंध में हेलन-केलर का यह उद्धरण ठीक है। एक दरवाजा बंद होता है तो दूसरा खुल जाता है। लेकिन प्रायः इतनी देर तक बंद दरवाजे को देखते रहते हैं कि हमें वह दरवाजा दिखाई ही नहीं देता, जो हमारे लिए खुला हुआ है।
हमारे लिए प्रगति के सारे रास्ते बंद नहीं होते और सच्चाई यह है किसी भी रास्ते के सामने खुले नहीं रहते। अगर किसी के सामने कोई रास्ता बंद हो जाता है, उसे दूसरे रास्ते की तलाश करनी चाहिए। यही बात विकलांगों के बारे में भी लागू होती है। जो मूक-बधिर है, वे समाज के बारे में कुछ नहीं कर सकते, ऐसा नहीं है। वे भी उच्चतम शिक्षा प्राप्त कर किसी क्षेत्र में ऊंचे जा सकते हैं। इसी प्रकार कितने ही नेत्रहीन अध्यापक, प्रोफेसर, कलाकार, साहित्यकार बनकर कीर्ति अर्जित कर चुके हैं।
विकलांगता दो प्रकार की होती हैं-
- शारीरिक और
- मानसिक।
विकलांगता के कई स्वर होते हैं-
- पूर्ण विकलांगता,
- अर्द्ध विकलांगता और
- सामान्य विकलांगता।
यह इन कारणों से होती है-
- जन्म से,
- पोलियों से और दुर्घटना से,
- युद्ध आदि के कारण।
जन्मजात विकलांगता का कारण सामान्यतः कुपोषण है। सड़कों पर होने वाली दुर्घटना भी विकलांगों की संख्या बढ़ाती है। समय-समय पर होने वाली हिंसक झड़पों या युद्ध इसकी संख्या में भयावह वृद्धि करते हैं।
इस प्रकार की विकलांगता को दो प्रकार से हल किया जा सकता है-
- जो लोग पहले से विकलांग है, उनका पुनर्वास किया जाए।
- पोषणता, पूर्ण भोजन, सावधानी पूर्व आवागमन, और शांति प्रयासों से इसकी संख्या में कमी लाई जा सकती है।
जन्मजात विकलांगता दूर करने के लिए गर्भवती मां को पोषाहार मिलें। समय-समय पर रोग निरोधक टीके लगाए जाएं। सुदूरवर्ती जगहों पर समाज कल्याण संस्था द्वारा ये कार्य चलाए जाएं।
प्रायः विकलांगों के प्रति घर-परिवार और समाज में अनुकूल वातावरण नहीं मिलता। उनके प्रति उपेक्षा का व्यवहार किया जाता है या दया दिखाई जाती है। मान लिया जाता है कि वे कुछ नहीं कर सकते। अब तक के अनुभवों और रचना संस्थाओं से सिद्ध हो चुका है कि वस्तु स्थिति कुछ और ही है। अवश्य ही अधिकांश लोग ऐसे हैं, जो सार्थक कार्य कर सकते हैं और जीवन में सफल होकर समाज में अपनी भूमिका अच्छी तरह निभा सकते है। इस क्रम में बहुत कम लोग ऐसे बचे रहते हैं, जो कुछ भी नहीं कर सकते और ऐसे लोग भी कुछ थोड़े से हैं। मानसिक रूप से बाधित थे, ही लोग हो सकते हैं, जो मानसिक बाधिता से बहुत अधिक प्रभावित होते हैं। अतः अगर समाज यह चाहता है कि कम से कम लोग उस पर बोझ बनें, तो उनकी सार्थक भूमिका के लिए उन्हें तैयार करना होगा।
प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का विचार था कि विकलांगों को दया की नहीं, सहानुभूति की जरूरत है। उन्हें दान नहीं, बल्कि अन्य मानव साथियों की भांति अधिकार चाहिए। यह समस्या केवल कानूनों से हल नहीं हो सकती। इसके लिए जनता के रवैये में परिवर्तन आवश्यक है। प्राचीन युग में विकलांगों के प्रति दया का दृष्टि कोण था। आज यह मान्यता है कि अधिकांश बाधित व्यक्ति कोई न कोई काम अच्छी तरह कर सकते हैं और अधिक बेहतर ढंग से कर सकते हैं। अतः आवश्यकता इस बात की है कि उन्हें समानता का अधिकार दिया जाए, विकास के अवसर दिए जाएं। इस प्रकार, उनकी क्षमता का उपयोग हो सकेगा और वे अवश्य अपने कौशल दिखाएंगे, जैसा कि पिछले वर्षों में अनेक उदाहरणों से सिद्ध हो चुका
अब विकलांगों की अपेक्षा नहीं की जा सकती। शिक्षण-प्रशिक्षण और अन्य क्षेत्रों में उन्होंने चुनौतियां को एकीकार है। क्षमता और कार्य कुशलता के बल पर अपनी सार्थकता को प्रत्यक्ष कर दिया है। कहा जा सकता है कि समाज के नवनिर्माण में विकलांगों की सार्थक भूमिका हो सकती है। जिसके लिए सरकार कृत संकल्प है और समाज अनेक ऐच्छिक संगठनों के माध्यम से उनको समर्थ बनाने के लिए बराबर प्रयत्नशील है। इन स्थितियों में निकट भविष्य में विकलांगों की स्थिति अवश्य बेहतर होगी और वे सामान्य लोगों के साथ-साथ सक्रियता के कारण समाज को प्रगति पथ पर ले जा सकेंगे।