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Hindi Essay-Paragraph on “Mother Teresa” “मदर टेरेसा” 600 words Complete Essay for Students of Class 10-12 and Competitive Examination.

मदर टेरेसा

Mother Teresa 

संसार में दया, प्रेम एवं सेवा का संदेश फैलाने वाली, अनेक राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित मदर टेरेसा का जन्म अल्वानिया के एक मध्यवर्गीय रोमन कैथोलिक परिवार में 26 अगस्त, 1910 को हुआ था। इनकी मां कपड़े की सिलाई का काम करती थी और पिता भवन-निर्माता थे। मदर टेरेसा का नाम एग्नेस गोजा बोजाक्सयु था। ये अपने भाई-बहन में छोटी थीं। सभी इन्हें प्यार करते थे। पिता की मृत्यु के बाद इनका परिवार आर्थिक कष्टों से जूझने लगा। फिर भी इनकी मां परिवार खर्च से कुछ पैसे बचाकर परोपकर में लगाती थी। नन्हीं एग्नेस पर इसका अनुकूल प्रभाव पड़ा। वे बचपन से ही सामाजिक कार्यों में भाग लेने लगीं।

एग्नेस की प्रारंभिक शिक्षा युगोस्लाविया में ही हुई। 18 वर्ष की उम्र में पहुंचतेपहुंचते उन्होंने सांसारिकता से अलगत पस्विनी बनने का निर्माण किया और मन ही मन अपने कार्य क्षेत्र के लिए कोलकाता/ भारतवर्ष को चुना। इसके लिए यह लोरटो संप्रदाय की सदस्य बन गई, क्योंकि इस संप्रदाय के लोग ही पहले बंगाल में धर्म-प्रचार कर रहे थे। ये मात्र 18 वर्ष की अवस्था में सन् 1928 ई. में परिवार देश सब कुछ छोड़कर कोलकाता चली आई और यहां स्कूल की शिक्षिका बन गई। शिक्षिका के रूप में एग्नेस अपनी छात्राओं के बीच काफी लोकप्रिय थी। स्कूल से सटा मोती झील का एक मुहल्ला था। इस मुहल्ले में अति निर्धन, लाचार एवं अछूत माने जाने वाली जातियां रहती थीं। कुल मिलाकर यह शहर का अत्यंग गंदा मुहल्ला था। एग्नेस से इसकी दुर्दशा नहीं देखी गई। अब वे नियमित रूप से भोजन तथा दवाइयां लेकर गंदी बस्ती में जाने लगी। इस काम में छात्राएं भी हाथ बंटाती थीं। इतने से भी वे संतुष्ट न थीं। अंततः उसने लोटेटो समुदाय का वस्त्र त्यागकर सफेद नीले किनारे वाली मोटी साड़ी पहनकर हाथ में बाइबिल लेकर सारा जीवन इन अनाथों के नाम समर्पित कर दिया। सबसे आश्चर्य कि इनके पास उस समय मात्र पांच रुपये थे। फिर भी इन्होंने हिम्मत नहीं हारी। परिश्रम, लगन और ईश्वर की आस्था के सहारे विश्व की प्रथम सेविका मदर टेरेसा बन गई। इन्होंने मुख्यतः अनाथों में व्याप्त रोग, अशिक्षा, परित्यक्त शिशुओं की देखभाल और मृतप्राय निराश्रितों की देखभाल इन चार शत्रुओं से लोहा लिया। सन् 1950 ई. में मिशनरीज ऑफ चैरिटी की स्थापना की। जहां से पूरे विश्व में इस संप्रदाय की गतिविधियां संचालित होती है। इनके द्वारा कुष्ठ रोगी के चिकित्सार्थ कोलकाता के निकट टीटागढ़ में स्थापित प्रेम निवास तो कुष्ठ रोगियों में प्रेम का संचार करता है। मानवता के प्रति इनके द्वारा किए गए कार्यों को गिना नहीं जा सकता।

मदर टेरेसा को कई पुरस्कार प्राप्त हुए, जो धन प्राप्त होता उससे एक नया आश्रम खोल लिया जाता था। सन् 1962 ई. में ‘पद्मश्री’ 1972 ई. में जवाहरलाल नेहरू ‘सद्भावना पुरस्कार’, 1973 में इंग्लैंड द्वारा ‘हेम्पुलख पुरस्कार’ और 1974 में अमेरिका द्वारा ‘मास्टर ऑफ मैजिस्ट्रा पुरस्कार’ उल्लेखनीय है। 1979 में सबसे बड़ा नोबेल का शांति पुरस्कार प्राप्त हुआ। सन् 1980 में भारत सरकार ने उन्हें ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया।

मदर टेरेसा को दिए गए पुरस्कार मदर को नहीं स्वयं को प्रतिष्ठित करते हैं। नोबेल पुरस्कार चयन समिति के सदस्य फ्रांसिस सजोतांद ने बताया कि मदर को पुरस्कार दिए जाने की घोषणा कर मैं स्वयं को गौरवान्वित महसूस करता हूं।

मदर टेरेसा के तप और त्याग सभी बलिदानों की सीमा से परे हैं। दया एवं ममता की प्रतिमूर्ति, विश्व को अनाथों की मां मदर टेरेसा 5 सितंबर, 1997 ई. को चल बसी। अपने पीछे अनगिनत कीर्तिमान और उच्च आदर्शों को छोड़ गई।

जिनसे अपव्ययी पीढ़िया आलोकित होती रहेगी। साथ ही कहा है-

परित्यक्त, दीन, रोगी, निरीह शिशुओं की करती देखभाल।

अपनी सेवा-सुश्रुषा से वे बन गई एक अनुपम मिसाल ॥

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