Hindi Essay on “Yuvavarg aur Bekari”, “युवावर्ग और बेकारी” Complete Hindi Essay, Paragraph, Speech for Class 7, 8, 9, 10, 12 Students.
युवावर्ग और बेकारी
Yuvavarg aur Bekari
भूखी स्त्री अपने पुत्र को छोड़ देती है । भूखी नागिन अपने अंडों को खा जाती है । भूखा व्यक्ति क्या क्या पाप नहीं करता, दयाहीन मनुष्य निर्धन ही तो होता है । यही दशा आज के वर्तमान युग में विद्यमान है । चारों और चोरियाँ और डकैतियाँ लूटमार/कहीं बैंक के खजाने की लटने की घटनाएं, कहीं गाड़ियाँ को लटने के समाचार टैलीवीज़न में देखने और समाचार पत्रों में पढ़ने को मिलते हैं । आज युवा वर्ग की सबसे बड़ी चिन्ता अपने परिवार के लिए दो वक्त की रोटी जुटाना है, यह वह चाहे सदाचार से जुटाए या अनाचार से । आजकल अनपढ तो किसी न किसी प्रकार से अपनी आजीविका कमा लेते हैं परन्तु पढ़े लिखे अपनी आजीविका कमाने में असमर्थ हैं।
बेकारी के प्रमुख निम्नलिखित कारण हैं :
(i) उचित शिक्षा का अभाव–देश में युवावर्ग की बेकारी का मुख्य कारण उचित शिक्षा का अभाव है । कितने दुःख की बात है कि विद्यार्थी अपनी पढ़ाई पर अपने माँ बाप का इतना पैसा खर्च करवाते हैं परन्तु फिर भी उनकी शिक्षा के अनुरूप उनको कोई नौकरी नहीं मिलती । इस वर्तमान शिक्षा प्रणाली का सारा दोष लार्ड मैकाले को जाता है जिसने इस देश में नौकर और गुलाम पैदा करने के लिए ही मानों यह व्यवस्था कायम की थी । वर्तमान शिक्षा प्रणाली में व्यवसायिक और औद्योगिक शिक्षा का बिल्कुल ही अभाव है । हर साल पढे लिखे लाखों लोग नौकरी के लिए तैयार हो जाते हैं जब कि हमारे देश में खाली पड़ी नौकरियां सैंकड़ों व्यक्तियों के लिए भी नहीं होती हैं ।
(ii) विभिन्न प्रशिक्षणों की बहुलता–आज के युग में जब शिक्षा के द्वार सभी के लिए खुले हुए हैं बिना उचित योग्यता के आज युवावर्ग वैज्ञानिक, इन्जीनियर, अध्यापक या कमप्यूटर का शिक्षक बनने के लिए प्रयत्नशील है । इतना ही नहीं, वह ऊंचे से ऊंचा प्रशिक्षण प्राप्त करके तकनीकी विशेषज्ञ की नौकरी तलाश करता है क्योंकि आर्थिक तंगी के कारण वह कोई फैक्टरी नहीं चला सकता ।
(ii) उद्योग–धन्धों को भुलाना–पहले लोग सारा काम अपने हाथों से करते थे। कहीं सूत काता जाता था, कहीं कपड़े बुने जाते थे जिससे लोग घरेलू उद्योग धन्धों द्वारा अपनी आजीविका कमाते थे । परन्तु मशीनों का युग आते ही बड़े बड़े कारखाने लगाए गए जिससे सौ व्यक्तियों का काम एक ही मशीन कर देती है । इससे बेकारी को बढ़ावा मिला तथा छोटे उद्योग बन्द होने शुरु हो गए।
(iv) बढ़ती हुई जनसंख्या–हमारे देश में जनसंख्या में दिन प्रति दिन अत्याधिक वृद्धि हो रही है । वर्ष भर में जितने व्यक्तियों को काम पर लगाया जाता है, उससे कई गुणा अधिक बेकारी की संख्या को बढा देते हैं । सन् 1951 में भारत की 36 करोड़ जनसंख्या 1981 में 68 करोड तक पहुंच गई और अब 27 मई 2000 तक भारत की जनसंख्या एक अरब हो गई है । जैसे घर में खाने वाले अधिक हो और कमाने वाला एक ही हो तो उस घर का हाल कैसा होगा, यही हाल आज भारतवर्ष का है।
(v) झूठा स्वाभिमान–आज के युवावर्ग में मिथ्या स्वाभिमान पाया जाता है । वह भूखा मरना तो पसन्द करता है परन्तु कोई छोटा सा कारोबार करके अपना जीवन बिताना पसन्द नहीं करता । वह केवल दफ्तर का बाबू बनना ज्यादा पसन्द करता है ।
(vi) सामाजिक तथा धार्मिक व्यवस्था–हमारी सामाजिक और धार्मिक व्यवस्था बेकारी बढ़ाने में अपना पूरा योगदान प्रदान करती है । साधु संन्यासियों को दान देना पुण्य का कार्य समझा जाता है जिससे कई हृष्ट-पुष्ट व्यक्तियों ने इसे अपना व्यवसाय बना लिया है । इससे बेकारी में निरन्तर वृद्धि होती रहती है । हमारा सामाजिक ढाँचा ही कुछ ऐसा बन गया है कि व्यवस्था के अनुसार विशेष वर्ग के लोगों के लिए विशेष कार्य हैं. जिन्हें करना विशेष वर्ग का व्यक्ति अपना परम कर्तव्य समझता है । यदि तो उसे अपने वर्ग के समान कार्य मिल जाता है तो वह कार्य करेगा नहीं तो वह बेकार बैठा रहेगा । यह सामाजिक व्यवस्था भी बेकारी को बढ़ाने में सहायक सिद्ध हो रही है ।
(vii) बेकारी से हानि–बेरोज़गारी के कारण नवयुवकों में असन्तोष की भावना पाई जाती है जिससे समाज में अव्यवस्था और अराजकता की स्थिति उत्पन्न हो गई है । यदि इस समस्या का हल शीघ्र न निकाला गया तो यह स्थिति विकराल रूप धारण कर सकती है जिस पर काबू पाना मुश्किल हो जाएगा ।
इस समस्या से निपटने के लिए हमें निम्नलिखित उपाय करने चाहिएं :
- शिक्षा प्रणाली में सुधार सबसे पहले हमें अपनी शिक्षा प्रणाली में सुधार करने होंगे । शिक्षा केवल किताबी न होकर व्यावहारिक होनी चाहिए । एसे प्रशिक्षण केन्द्र खोले जाएँ जहाँ विद्यार्थी बारहवीं की पढ़ाई पूरी करके साथ में पढ़ भी सकें और साथ ही व्यावसायिक प्रशिक्षण भी प्राप्त कर सके ताकि बाद में उनको व्यवसाय के लिए परेशानी न उठानी पड़े ।
- उद्योग-धन्धों का विकास छोटे-छोटे उद्योग धन्धों जैसे सूत कातना, कपड़े बुनना, शहद तैयार करना. इत्यादि का विकास किया जाना चाहिए ताकि अधिक से अधिक लोगों को रोज़गार मिल सके ।
- जनसंख्या वृद्धि पर रोक–बेकारी की समस्या को कम करने के लिए देश में बढ़ती जनसंख्या पर रोक लगानी होगी । हमें आत्म संयम से रहना होगा, परिवार नियोजन की योजनाओं को और अधिक कारगर ढंग से लागू करना चाहिए । विवाह की आयु का नियम सारे देश में एक समान होना चाहिए । अभी भी ऐसे कुछ गांव हैं जहां पर लड़कियों की शादी छोटी उम्र में ही कर दी जाती
- आलस्य को दूर करना आज भारत देश में लोग आलसी होते जा रहे हैं । प्रत्येक व्यक्ति मेहनत द्वारा रोटी कमाकर खाने की बजाए पक्की पकाई रोटी खाना चाहता है । सभी सरल कार्य करके रातों रात अमीर बनने के सपने देखते हैं । इसलिए हमें अपने इस आलस्य को दूर करना होगा और कोई न कोई काम धन्धा अपना कर अपना गुज़ारा करना होगा ।
- ग्राम विकास तथा कृषि सुधार भारत एक कृषि प्रधान देश है । बेकारी की समस्या जितनी शहरों में है उतनी ही गांवों में भी है । गावों में छोटे छोटे उद्योगों का विकास होना चाहिए ताकि गाँव के लोगों को नौकरी के लिए शहर न आना पड़े।
भारत सरकार बेकारी की समस्या को हल करने के लिए जागरूक है । इस दिशा में उसने महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं । बैंकों का राष्ट्रीयकरण, परिवार नियोजन, कच्चा माल एक दूसरे स्थान पर ले जाने की सुविधा, कृषि भूमि की हदबन्दी, नए नए उद्योगों की स्थापना, प्रशिक्षण केन्द्रों की स्थापना.प्रधानमन्त्री रोजगार योजना आदि अनेकानेक कार्य ऐसे हैं, जो बेरोज़गारी दूर करने में एक सीमा तक सहायक सिद्ध हए हैं । यदि समुचित कदम उठाए जाएँ तो इस समस्या का समाधान किया जा सकता है और युवा वर्ग को सही अर्थों में समाज तथा राष्ट्र के कार्यों में लगाया जा सकता है ।