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Hindi Essay on “Bharat mein Bekari ki Samasya”, “भारत में बेकारी की समस्या” Complete Hindi Essay, Paragraph, Speech for Class 7, 8, 9, 10, 12 Students.

भारत में बेकारी की समस्या

Bharat mein Bekari ki Samasya

 

आज हमारे देश के सम्मुख बहुत सी समस्याएं हैं जिनमें से बेकारी एक प्रमुख समस्या है । यह समस्या स्वतन्त्र भारत को अंग्रेज़ों से विरासत के रूप में मिली थी । अंग्रेज़ी शासन ने इंगलैंड के लाभ को ध्यान में रखते हुए यहां कल-कारखानों की स्थापना में कोई रुचि नहीं ली और बाबूगिरी सिखाने वाली शिक्षापद्धति चलाई थी । फलस्वरूप उस समय भी बेकारी का प्रश्न विद्यमान था । उस पर विभाजन ने लाखों लोग उजड़ी हुई दशा में यहां पहुंचा दिए तथा उन्हें भी फिर से स्थापित करना पड़ा । हमारी सरकार ने अनेकों प्रयत्न किए किन्तु “मर्ज़ बढता गया ज्यों-ज्यों दवा की।

इस समस्या के दो रूप हैं, एक अशिक्षित व्यक्तियों की बेकारी और दूसरे शिक्षित व्यक्तियों की बेकारी । वस्तता इस समस्या के अनेक कारण हैं जैसे जनसंख्या की अधिकता, बड़े बड़े उद्योगों का विकास, कुटीर उद्योगों का विकास न होना तथा युवकों का दस्तकारियों में रुचि न लेना आदि।

पश्चिम के अर्थशास्त्री माल्थस ने बहुत पहले कहा था कि वस्तुओं की वृद्धि 1,2,3,4 के क्रम से होती है और जनसंख्या में वृद्धि 2.4, 8, 16 के क्रम से । इस प्रकार दोनों का अनुपात ठीक नहीं रहता । भारत में स्वतन्त्रता के बाद जनसंख्या में बहुत वृद्धि हुई है । हर पंच वार्षिक योजना में जितने व्यक्तियों को काम देने की व्यवस्था की गई, जनसंख्या उससे कहीं अधिक बढ़ गई और फलस्वरूप बेकारी भी बढ़ गई । कीटाणुनाशक औषधियों के कारण मलेरिया आदि पर भी विजय पा ली है और अन्य औषधियों के आविष्कारों ने भी मृत्यु संख्या को घटाया है । जनसंख्या को नियंत्रित करने के लिए परिवार नियोजन के कार्यक्रम चल रहे हैं किन्तु अभी तक जनसंख्या में होने वाली वृद्धि पर उचित नियन्त्रण नहीं हो पाया । अत: बेकारी का एक कारण यह भी है ।

बड़े-बड़े उद्योग धन्धों ने कुछ लोगों को रोज़गार दिया है किन्तु दूसरी ओर बहुत से लोगों को बेकार बना दिया है । जो लोग स्वतन्त्र रूप से काम करते थे मशीन ने उनसे वह काम छीन लिया। मशीन पर नियुक्त एक व्यक्ति हाथ से काम करने वाले दस व्यक्तियों की जगह ले लेता है, फलतः नौ व्यक्ति बेकार हो जाते हैं। इसका यह अर्थ नहीं कि कारखाने न लगाए जाएं किन्तु संतुलन होना चाहिए। साथ ही कुटीर उद्योगों का भी विकास होना चाहिए ।

जापान की उन्नति का कारण वहाँ फैले हुए लघु उद्योग हैं। हमारे देश में लघु उद्योगों की ओर उतना ध्यान नहीं दिया गया । आवश्यकता इस बात की है कि लघु उद्योगों का पूर्ण विकास करके मानवशक्ति का सदुपयोग किया जाए।

कल कारखानों के विकास ने और नगरों के विकास ने अशिक्षित व्यक्तियों में बेकारी बढाई है । वे अपने गांवों आदि से उखड़ कर शहरों में काम ढंढने पहंचे हैं जहां पहले ही काम नहीं है । इसके अतिरिक्त हमारे स्कूलों और कालिजों में प्रायः शिक्षा का पुराना ढांचा ही चल रहा है । अधिकतर युवक बाबगिरी करने के योग्य ही होते हैं। सरकार की ओर से टैक्निकल शिक्षा की संस्थाएं भी खोली गई हैं किन्तु अभी हमारे युवकों का विशेष ध्यान उस ओर नहीं है । टेक्निकल शिक्षा प्राप्त करने वाले अधिकांश छात्र गांवों से सम्बन्ध रखते हैं। शहरी युवक हाथ और कपड़े काले करने वाले कामों की ओर जाने से झिझकते हैं, वे तो अफसरी के सपने लेते हैं। अब इस ओर भी सरकार ने ध्यान दिया है कि कालिजों आदि में ऐसे कोर्स भी होने चाहिएं जो किसी काम धंधे की ओर मनुष्य को ले जा सकें ।

बेकारी का एक अन्य कारण यह भी है कि कुछ संस्थाएं काम पर लगे हुए लोगों को ही कुछ थोड़े पैसे और देकर उनसे ‘ओवर टाईम’ लगवा लेती हैं। इससे कारोबार में लगे व्यक्तियों की आय में तो कुछ वृद्धि हो जाती है परन्तु बेकार लोगों को काम नहीं मिल पाता । प्राईवेट कारखानों या संस्थाओं वाले इस तरह ओवर टाईम’ देकर स्वयं अधिक लाभ उठा जाते हैं ।

बेकारी अन्य अनेक समस्याओं की जननी है । बेकार व्यक्ति भी जीना तो चाहता है । काम न मिलने की दशा में वह अपराधों की ओर झुकता है । जेबकतरा, चोर या अवैध शराब विक्रेता आदि बन कर समाज के लिए सिरदर्द बन जाता है । यदि उसके संस्कार उसे इस ओर न जाने दें तो वह नशीले पदार्थों का सेवन करने लगता है, आत्महत्या कर लेता है या किसी अनुचित राजनीतिक दल के हाथों बिक कर असंतोष फैलाता है ।

जब तक जनसंख्या की वृद्धि को रोका नहीं जाता और जब तक हर काम को समान नहीं समझा जाता, तब तक इस समस्या का पूर्ण हल नहीं हो सकता ।

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