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Hindi Essay on “Urja Ke Strot aur Samasya” , ”ऊर्जा के स्त्रोत और समस्या ” Complete Hindi Essay for Class 9, Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

ऊर्जा के स्त्रोत और समस्या 

Urja Ke Strot aur Samasya 

ऊर्जा-एक प्रकार की ज्वलनशील शक्ति, जिसका संकट निकट भविष्य में आज का मानव स्पष्ट देख एंव अनुभव कर रहा है। ऊर्जा का वास्तविक अर्थ आग या ज्वलनशील पदार्थ तो है ही, वह संचालिका शक्ति भी है कि जिसके बल से आज हमारे कल-कारखाने चल रहे हैं, रेलें तथा अन्य वाहन दौड़ रहे हैं, वायुयान उड़ रहे हैं, घरों आदि में उजाला हो रहा है औरयहां तक कि मानव-समाज अपना खाना-पीना पकाकर खा-पी रहा है। ऊर्जा के बारे में बहुत पहले तक मानव-समाज केवल वनों पर ही आश्रित था। वनों से प्र्राप्त लकड़ी ही ऊर्जा का मूल एंव मुख्य स्त्रोत थी। फिर उसने भूगर्भ में छिपी कोयले की खानों का पता लगाया। उसके बाद रेत और मिट् टी को निचोडक़र यानी धरती-तल से कैरोसित पेट्रोलियम पदार्थ और विभिन्न प्रकार की प्रज्वलनशील गैसें आदि प्राप्त कीं। इस प्रकार एक के बाद एक ऊर्जा के स्त्रोत मानव के हाथ लगते गए। वह उनकी सहायत से जीवन-विकास के लिए भिन्न प्रकार के समायोजनों में संलज्न होता गया। लेकिन कब तक ऐसे चल सकता था यह चल सकेगा। आज का यह एक ज्वलंत प्रश्न मानव-सभ्यता को पीडि़त बनाए हुए है।

आज मानव-जीवन ने कुछ इस प्रकार के विस्तार और विकास कर लिया है कि ऊर्जा के अभाव में वह एक कदम भी चल नहीं सकता। उसके सहारे चलने वाले उद्योग-धंधों एंव कार्यों का तो निरंतर विकास होता जा रहा है, पर स्त्रोत एंव साधन घटकर सीमित होते जा रहे हैं। ऊर्जा के परंपरागत स्त्रोत वन निरंतर कटते जा रहे हैं और नए लग नहीं पा रहे। परिणामस्वरूप प्रकृति का ही नहीं सारे मानव-जीवन का संतुलन बिगडक़र भयावह प्रदूषण का खतरा बढ़ता रहा है। एक अनुमान के अनुसार अगले कुछ वर्षों में ऊर्जा के वर्तमान सभी भंडार समाप्त हो सकते हैं। यदि ऐसा हो गया , तो क्या दशा होगी, आज शायद इसी सही कल्पना नहीं की जा सकती। फिर भी वैज्ञानिक अनुमान लगाकर भावी अभाव को भरने के लिए अन्य स्त्रोत खोलने में व्यस्त् हैं।

भूगर्भ से प्राप्त होने वाले कोयले के भंडार भी मांग के अनुरूप उत्पादन नहीं दे पा रहे और क्रमश: चुकते जा रहे हैं। इसी प्रकार वर्तमान में उपलब्ध तेल और पेट्रोलियम देने वाले कुंए भी आखिर कब तक मानव की निरंतर बढ़ रही आवश्यकतांए पूर्ण करने में सहायक बने रह सकेंगे? इसी कारण आज का वैज्ञानिक मानव चिंतित है कि जिस दिन ये सारे स्त्रोत चुक जाएंगे जो अब बहुत अधिक वर्षो तक चलने वाले नहीं तब मानव और उसकी प्रगतियों का क्या होगा? ऊर्जा से चलने वाले साधनों-उपकरणों का क्या होगा? क्या वे वैज्ञानिक युग के खंडहर एंव अतीत की कहानी मात्र ही बनकर रह जाएंगे? इस प्रकार के प्रश्नों ने भविष्य के प्रति सभी को चिंतित कर दिया है। यह चिंता उचित एंव आवश्यक भी है।

चिंता होती है, तभी मानव उससे छुटकारे का प्रयास भी करता है। सो ऊर्जा के भावी संकट का सामना करने के लिए आज का वैज्ञानिक मानव अभी से सन्नद्ध होने लगा है। परमाणुचलित भट्टियां,  परमाणु-रिएक्टरों से बिजली प्राप्त करने के प्रयास, सौर ऊर्जा की उपलब्धि के व्यापक बनाने की चेष्टांए और अधिकाधिक पाने के प्रयत्न, अन्यान्य कई उपायों, संसाधनों एंव स्त्रोतों की निरंतर खोज, वर्तमान प्रयोग और उपयोग को नियंत्रित कर बचत करने की बातें और उपाय आदि सभी उस चिंता से मुक्ति पाने की छटपटाहट, या पनबिजली, गोबर गैस जैसी छोटी योजनांए उस सबकी भनपाई कब तक और कैसे कर पांएगी, निश्चय ही गंभीर विचारणीय बात है। वैज्ञानिकों को विशेष रूप से इन बातों की ओर ध्यान देना चाहिए।

कहावत प्रचलित है कि समस्या है तो समाधान भी है। हमारे आज के वैज्ञानिक इस समस्या से जूझने के लिए गंभीरता से विचार और उपाय कर रहे हैं। यह भी आवश्यक है कि और स्त्रोत खोजे जाएं, पर जो उपलब्ध हैं उनका नियंत्रित प्रयाग भी जरूरी है। वैज्ञानिक ऊर्जा की समस्या के समाधान में कहां तक और कितने सफल हो पाएंगे, इस प्रश्न का उचित एंव संपूर्ण उत्तर तो निकट भविष्य ही दे सकता है। हम सबका प्रयास तो यथाशक्ति उपलब्ध  साधनों-स्त्रोतों का संतुलिक प्रयोग करने की ओर ही होना चाहिए। ऐसा करके भी हम सब मानवता का यानी अपना ही बहुत अधिक उपकार कर सकते हैं। आने वाली मानव-पीढिय़ों के लिए भी सुरक्षा के उपाय एंव साधन छोड़ सकते हैं।

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