Hindi Essay on “Manav Adhikar”, “मानवाधिकार” Complete Hindi Essay, Paragraph, Speech for Class 7, 8, 9, 10, 12 Students.
मानवाधिकार
Manav Adhikar
निबंध संख्या :- 01
10 दिसंबर, 1946 को संयुक्त राष्ट्र की साधारण सभा में मानवाधिकारों की विश्व घोषणा की। इसके पक्ष में 45 मत पड़े, विरोध में कोई नहीं था। निम्न आठ राष्ट्रों ने मतदान में भाग नहीं लिया। बायलेस्पियन, सोवियत, समाजवादी गणतंत्र, चेकोस्लोवाकिया, पौलेंड, सऊदी अरब, उक्रेनियन, सोवियत समाजवादी गणतंत्र, संयुक्त सोवियत समाजवादी गणतंत्र, दक्षिण अफ्रीकी संघ और यूगोस्लाविया। देखा जाए तो यह घोषणा कोई कानून नहीं है और उसकी कुछ धाराएं वर्तमान तथा सामान्य रूप से मानी जाने वाली अवधारणाओं के प्रतिकूल हैं। फिर भी उसकी कुछ धाराएं या तो कानून के सामान्य नियम हैं या मानवता की सामान्य धारणाएं हैं। इस घोषणा का अप्रत्यक्ष रूप से कानूनी प्रभाव है और साधारण समान या कुछ कानून के ज्ञाताओं के मत से यह संयुक्त राष्ट्र का कानून है।
संयुक्त राष्ट्र की साधारण सभा के अनुसार सभी मानव स्वतंत्र रूप से पैदा हुए हैं और सम्मान और अधिकारों की दृष्टि से समान है। उनमें बुद्धि और विवेक है और उन्हें आपस में मातृभाव से रहना चाहिए।
बिना किसी भेदभाव जिसे जाति, रंग, लिंग, भाषा, धर्म, राजनीतिक या अन्य धारणा, राष्ट्रीय समाज की उत्पति, धन, जन्म या स्थिति के प्रत्येक व्यक्ति को इस घोषणा के अंतर्गत सभी स्वतंत्रता एवं अधिकारों को प्राप्त करने की पात्रता है।
इसके साथ ही किसी भी व्यक्ति के साथ कोई भी भेदभाव नहीं किया जाएगा, चाहे वह किसी भी राजनीतिक, क्षेत्रीय या अंतर्राष्ट्रीय स्थिति वाले देश का नागरिक हो और चाहे वह स्वतंत्र निगम के अधीन परतंत्र या अन्य किसी भी शासन-प्रणाली के अधीन हो।
इस घोषणा में कुल मिलाकर 30 धाराएं हैं, जिनमें जीवन, स्वतंत्रता, सुरक्षा की गारंटी दी गई है। इसके द्वारा गुलामी, अमानवीय व्यवहार अथवा दंड पर प्रतिबंध लगाया गया है। इसके द्वारा राष्ट्रीयता, विवाह का अधिकार, संपति का अधिकार, वैचारिक स्वतंत्रता, विवेक और धैर्य, मत तथा विचार प्रकट करने का अधिकार व्यावसायिक संगठनों में भाग लेने का अधिकार, सांस्कृतिक गतिविधियों में भाग लेने का अधिकार इत्यादि को मान्यता प्रदान की गई है।
विश्व के छोटे होने के साथ इसके विभिन्न देशों तथा उनमें निवास करने वाले मनुष्यों का संपर्क बढ़ जाने के कारण, अंतर्राष्ट्रीय कानून तथा संस्थाएं मानो मनुष्य की प्रगति, समृद्धि तथा शांतिपूर्ण सह-अस्तित्त्व के लिए दो चरण हैं। राष्ट्रपति राधाकृष्ण ने ठीक ही कहा है- “यदि हम एक विश्व, समाज तथा मानव संघ की स्थापना करना चाहते हैं, तो हमें इस बात की आवश्यकता हैं कि हम एक केंद्रीय सत्ता के पक्ष में हमारी कुछ आजादी को समर्पित कर दें। और हम इस बात का भरसक प्रयत्न करें कि उपनिवेशवाद के नाम पर जो अन्याय हो रहा है तथा जातीय, अलगाववाद, आर्थिक शोषण, धार्मिक असहिष्णुता आदि को दूर करें।” भगवान बुद्ध ने अपने उपदेश में व्यर्थ ही नहीं कहा था- “संघम् शरणं गच्छामि। शांति के शरणस्थल सामाजिक संघ की सदस्यता ग्रहण करो।”
मानव जाति के सामान्य उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए आज संसार में संयुक्त राष्ट्र के अतिरिक्त अन्य कोई संस्था नहीं है। देखा जाए तो यह सर्वगुण-संपन्न संस्था नहीं है, परंतु उसकी अपूर्णता का कारण उसके सदस्य राष्ट्रों की कमजोरियां हैं।
भारतीय संविधान में धारा 19 से 35 तक समानता, स्वतंत्रता. शोषण से मुक्ति, धर्म, संस्कृति तथा शिक्षा का अधिकार तथा व्यक्तिगत संपति के अधिकार प्रदान किए गए हैं। उसके पश्चात् कुछ नीति-निर्देशक सिद्धांत दिए गए हैं, जिनमें जनता के कल्याण संबंधी चर्चा हैं। इनमें कहा गया है कि शासन काम के अधिकार, शिक्षा, बेरोजगारी को दूर करना, वृद्धावस्था, बीमारी तथा अस्पृश्यता में प्रभावी कार्य करेगा।
मानवाधिकार की देख-रेख के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था हैं, जो देश के मानवाधिकार मामलों का अध्ययन करती है। इसके अनुसार 112 देश ऐसे हैं जहां कैदियों को यातना दी जाती है। 61 देशों में राजनीतिक इंटरनेशनल फांसी की सजा के विरुद्ध है। निम्न चार देशों ने फांसी की सजा बंद कर दी है-मिस्राीबसाहु, हांगकांग, जांबिया और ग्रीस। पाकिस्तान में महिला कैदियों के साथ बलात्कार की घटना भी प्रकाश में आती है।
एमेनस्टी इंटरनेशनल ने पंजाब और जम्मू-कश्मीर में आतंकवादियों की हत्या को आलोचना की है तथा उन्हें राजनीतिक कार्यकर्ता माना है। भारत सरकार ने इस विकृत टिप्पणी का विरोध किया है।
एक कवि की दृष्टि देखिए-
मानवाधिकार की बातें करने वाले
कश्मीर में सुरंगें बनाकर
बिछा दिए है बारूद-गंधक
और अपनी मुट्टियों में फासफोरस दवाए।
जहरीले फनकारों से फैला दिए है पूरे देश में
आ-तं-क….
मानवाधिकार की घोषणा का केवल कानूनी प्रभाव है। इसे कानून की संज्ञा नहीं दी जाती है। केवल नैतिक सिद्धांत से जीवन के आदर्श की स्थापना ही की जा सकती है।
मानवाधिकार
Manav Adhikar
निबंध संख्या :- 02
मानव के विकास के लिए मानवाधिकारों का होना नितान्त आवश्यक है। प्रत्येक देश अपने-अपने नागरिकों को अपने संसाधनों एवं योग्यता के आधार पर उनको उनके अधिकार देता है। यह अति प्रसन्नता का विषय है कि अब मानवाधिकार किसी देश तक ही सीमित न होकर अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय और अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों का भी विषय बन गया है।
भारत के प्राचीन शास्त्रों में मानवाधिकारों की एक विस्तृत व्याख्या मिलती है। ऋग्वेद के अनुसार ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ को भारतीय संस्कृति की मूल भावना के रूप में वर्णन किया गया है जिसका अर्थ है— सारा संसार ही एक परिवार के समान है (The whole universe is one family) और उसका कल्याण करना ही हम सभी का मूल उद्देश्य है। वैदिककाल में सभी पुरुषों और स्त्रियों को समान अधिकार प्राप्त थे। प्राचीन भारत में कानून के सामने सभी लोग बराबर होते थे। कौटिल्य ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘अर्थशास्त्र’ में लिखा है कि राजा का मुख्य कर्त्तव्य प्रत्येक व्यक्ति को उन्नति अथवा विकास करना होता था और यह तभी सम्भव हो सकता था जब व्यक्ति को उसके पूरे अधिकार दिए जाएगें। इससे सिद्ध होता है कि मानवाधिकार भारतीय संस्कृति के मुख्य अंग रहे हैं।
यद्यपि मानवाधिकारों का विचार अति प्राचीन है तथापि यह विचार 20वीं शताब्दी में लोगों में उस समय घर कर गया जब संयुक्त राष्ट्र की जनरल असैम्बली ने 10 दिसम्बर 1948 में मानवाधिकारों पर एक प्रस्ताव पास कर दिया। इन जानवाधिकारों को दो श्रेणियों में बांट सकते हैं, सिविल एवं राजनीतिक अधिकार और (ii) आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकार ।
- सिविल तथा राजनीतिक अधिकार–
- स्वतन्त्रता, सुरक्षा और जीने का अधिकार– स्वतन्त्रता, सुरक्षा और जीने का अधिकार मानव की उन्नति और विकास के लिए अतिआवश्यक है। इसलिए इस अधिकार को संसार के सभी मानवों के लिए दिया गया है।
- गुलामी के विरुद्ध अधिकार– गुलामी एक अभिशाप है और मानव को इस अभिशाप से मुक्त करने के लिए गुलामी के विरुद्ध अधिकार दिया गया है और हर तरह की गुलामी पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया है।
- अमानवीय व्यवहार के विरुद्ध अधिकार– प्रत्येक मानव को अमानवीय व्यवहार के विरुद्ध अधिकार दिया गया है। इसके अंतर्गत कोई भी व्यक्ति किसी भी व्यक्ति के साथ पशुता या अमानवीय व्यवहार नहीं करेगा और न ही उसे किसी प्रकार की मानसिक अथवा शारीरिक यातना देगा और न ही उसे ऐसी सज़ा देगा जो कि उसके लिए अपमानजनक हो।
- कानून में समानता का अधिकार– कानून के समक्ष सभी को समानता का अधिकार दिया गया है। इसके अनुसार बिना किसी भेदभाव से सभी व्यक्तियों को सुरक्षा प्रदान की जाएगी।
- अधिकारों का उल्लंघन करने वालों के विरुद्ध सुरक्षा का अधिकार– प्रत्येक व्यक्ति को सक्षम अधिकारी के पास ऐसे लोगों के विरुद्ध शिकायत करने का अधिकार है जो देश के संविधान द्वारा या कानूनी तौर पर मिले अधिकारों का हनन करता है।
- आराम का अधिकार– प्रत्येक व्यक्ति को निश्चित घंटे काम करने के पश्चात् आराम का तथा सेवा के दौरान छुट्टी लेने का भी अधिकार है ताकि वह अपने पारिवारिक एवं सामाजिक दायित्व भी निभा सके।
- न्यायालय से न्याय प्राप्त करने का अधिकार– प्रत्येक व्यक्ति को यदि कोई उसके साथ अनुचित व्यवहार करता है या समाज का कोई वर्ग प्रताडित करता वह व्यक्ति न्याय प्राप्त करने के लिए न्यायालय का दरवाजा खटखटा सकता है और तंग करने वाले व्यक्ति को सज़ा भी दिलवा सकता है।
- पारिवारिक एवं निजी जीवन में हस्तक्षेप के विरुद्ध अधिकार– किसी भी व्यक्ति को किसी भी व्यक्ति के पारिवारिक एवं निजी जीवन में हस्तक्षेप का कोई अधिकार नहीं है। यदि कोई व्यक्ति ऐसा करता है तो उसके विरुद्ध न्यायालय में इस अधिकार की सुरक्षा के लिए न्याय की मांग की जा सकती है।
- एक स्थान से दूसरे स्थान पर विचरण करने का अधिकार– प्रत्येक मानव को यह अधिकार प्राप्त है कि वह अपने देश की सीमाओं में कहीं भी आ जा सकता है और अपना घर बना सकता है। प्रत्येक मनुष्य को यह अधिकार भी दिया गया है कि वह जब चाहे अपने देश को छोडकर किसी भी अन्य देश में जा सकता है और फिर अपने देश वापिस भी आ सकता है।
- अन्य देश में शरण लेने का अधिकार– इसके द्वारा कोई भी नागरिक यदि अपने आपको अपने देश में असुरक्षित अनुभव करता है तो वह अपने देश को छोड़कर किसी अन्य सुरक्षित देश में शरण ले सकता है।
- राष्ट्रीयता का अधिकार प्रत्येक मानव को राष्ट्रीयता का अधिकार– प्राप्त है और बिना किसी उचित कारण के उसको उसकी राष्ट्रीयता से वंचित नहीं किया जाएगा और न ही उसे अपनी राष्ट्रीयता को बदलने से इन्कार किया जाएगा।
- विवाह करके पारिवारिक जीवन जीने का अधिकार– प्रत्येक पुरुष एवं स्त्री को जो कि विवाह के योग्य उम्र को प्राप्त हो चुका हो को किसी जाति, राष्ट्रीयता अथवा धर्म के आधार के बिना आपस में विवाह करने का अधिकार है और वह अपना पारिवारिक जीवन बिता सकता है। स्त्री पुरुष दोनों को एक-दूसरे के साथ रहने अथवा अलग होने के सामान अधिकार प्राप्त हैं।
- विचारों की स्वतन्त्रता और उसे व्यक्त करने का अधिकार– प्रत्येक मानव को अपने विचारों को स्वतन्त्र रूप से व्यक्त करने का अधिकार प्राप्त है।
- धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार– प्रत्येक मानव को धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार प्राप्त है। यह अधिकार मनुष्य को यह भी अधिकार देता है कि वह अपनी इच्छानुसार किसी भी समय अपना धर्म बदल सकता है तथा दसरे धर्म के विश्वासों और पूजा पद्धति को अपना सकता है।
- शान्तिपूर्ण सभा या संगठन का गठन करने का अधिकार– प्रत्येक मानव को शान्तिपूर्ण सभा या संगठन के गठन का पूरा अधिकार है।
- मताधिकार– चुनावों द्वारा लोग अपनी इच्छा को समय-समय पर व्यक्त करते हैं जो कि सार्वभौमिक मताधिकार पर आधारित है। प्रत्येक मानव को बिना किसी जाति, धर्म या वर्ण के भेद-भाव बिना मत देने का अधिकार दिया जाता है।
- प्रशासन में भाग लेने का अधिकार– प्रत्येक मनुष्य को सीधे या चुनाव द्वारा चुने जाने पर देश की सरकार में प्रतिनिधित्व करने का अधिकार प्राप्त है।
- शिक्षा का अधिकार– प्रत्येक मनुष्य को शिक्षा का अधिकार प्राप्त है। माध्यमिक स्तर की शिक्षा सभी के लिए मुफ्त तथा आवश्यक होगी। तकनीकी तथा व्यवसायिक शिक्षा सभी को प्राप्त हो सकने वाली हो तथा सभी की पहुँच में होनी चाहिए ताकि कोई भी व्यक्ति इससे वंचित न रह सके।
- आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक अधिकार–
- सम्पत्ति का अधिकार प्रत्येक व्यक्ति को अकेले में या एक संगठन के रूप में सम्पत्ति रखने का अधिकार प्राप्त है। यह भी कहा जाता है कि बिना किसी उचित कारण के किसी को भी उसकी सम्पत्ति के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता।
- समान काम के लिए समान वेतन का अधिकार प्रत्येक व्यक्ति को बिना किसी भेद-भाव के समान काम के लिए समान वेतन मिलेगा।
- सांस्कृतिक जीवन में भाग लेने का अधिकार प्रत्येक व्यक्ति को यह अधिकार दिया गया है कि वह अपने समुदाय के सांस्कृतिक जीवन में भाग ले सके।
भारत का संविधान बनाने वालों ने मानवाधिकारों की ओर विशेष ध्यान दिया है और इन्हें अपने देश के संविधान में शामिल भी किया है। इन अधिकारों के अतिरिक्त और भी अधिकारों को भारत के संविधान में शामिल किया गया है और साथ ही इन अधिकारों की सुरक्षा के लिए भी प्रबन्ध किए हैं। इन मानवाधिकारों की उपयोगिता को देखते हए 23 सितम्बर 1993 को एक प्रस्ताव पास करके 18 दिसम्बर 1993 को एक कानून द्वारा केन्द्र में तथा राज्य स्तर पर एक मानवाधिकार कमीशन बनाने का फैसला दिया गया जो कि इन मानवाधिकारों की रक्षा का काम करेगा।
उपयुक्त विवेचना के आधार पर हम कह सकते है कि भारत पूरी तरह से मानवाधिकारों की सुरक्षा के लिए वचनबद्ध है। ये मानवाधिकार किसी भी मानव समाज की व्यवस्था के लिए बहुत जरूरी है।