Gala Satya ka Ghotin, Khusamad Bachan na Utaro, “गला सत्य का घोटिन, खुसामद बचन न उतारो” Hindi Moral Story, Essay of “Kavi Shripati” for students.
गला सत्य का घोटिन, खुसामद बचन न उतारो
Gala Satya ka Ghotin, Khusamad Bachan na Utaro
कवि श्रीपति निर्धन थे, मगर निर्भीक और आत्मसम्मानी थे। भिक्षा में जो कुछ पाते, उसी से अपना जीवन-निर्वाह करते थे। पत्नी गरीबी से त्रस्त हो चुकी थी। उसने अकबर की प्रशंसा सुनी, तो पति को उनके पास भेजा। उनकी भक्तिपरक रचनाओं से बादशाह संतुष्ट हो गया और उसने उन्हें अपने दरबार में रख लिया। उनकी उत्कृष्ट रचनाओं को सुन बादशाह प्रसन्न हो उन्हें उचित इनाम देता। इससे कुछ मुसलमान कवियों को श्रीपति से ईर्ष्या हुई। उन्होंने सोचा कि यह व्यक्ति हमेशा भगवान् के ही गुण गाता है, स्वयं बादशाह का बखान कभी नहीं करता, इसलिए इसे नीचा दिखाया जाए। एक दिन उन्होंने दरबार में समस्या-पूर्ति के लिए यह पंक्ति दी –
“करो मिल आस अकबर की ।”
अन्य कवियों ने इस पंक्ति को लेकर अकबर की प्रशंसा से पुल बाँध दिए। अब बारी श्रीपति की थी। यह बात उन जैसे भगवद्भक्त के उसूल के खिलाफ थी। उन्होंने निर्भीकता से निम्न कवित्त कहा-
अबके सुलतान फनियान समान हैं, बाँधत पाग अटब्बर की ।
तजि एक को दूसरे को जु भजे, जीभ गिरैवा लब्बर की ॥
सरनागत ‘श्रीपति‘ रामहि की, नहिं त्रास है काहुहि जब्बर की ।
जिनको हरि मा परतीति नहीं, सो करौ मिलि आस अकब्बर की ॥
उनसे द्वेष करने वालों ने सोचा था कि आज तो श्रीपति को बादशाह की चापलूसी करनी पड़ेगी, मगर यह कवित्त सुनते ही उन्हें निराशा हुई, वहीं दूसरी ओर भगवत्प्रेमी दरबारी मन-ही-मन प्रसन्न हो गए।