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Vyarth ki Jiggyasa, “व्यर्थ की जिज्ञासा” Hindi Moral Story, Essay of “Gautam Bhddha” for students of Class 8, 9, 10, 12.

व्यर्थ की जिज्ञासा

Vyarth ki Jiggyasa

एक बार मलुक्यपुत्र गौतम बुद्ध के पास आकर बोला, “भगवन् ! आपने आज तक यह कभी नहीं बताया कि मृत्यु के उपरांत पूर्ण बुद्ध रहते हैं या नहीं?”

इस पर बुद्धदेव बोले, “हे मलुक्यपुत्र! मुझे यह बताओ कि भिक्षु होते समय क्या मैंने तुमसे यह कहा था कि तुम मेरे ही शिष्य बनना ?” मलुक्यपुत्र ने नकारात्मक उत्तर दिया ।

तब बुद्धदेव बोले, “यदि किसी व्यक्ति के शरीर में अचानक एक विषैला बाण आकर लगे और तब वह यह कहे कि जब तक उसे यह मालूम नहीं होता कि बाण मारने वाले की जाति कौन-सी है, वह बाण नहीं निकालेगा और न ही कोई इलाज कराएगा, तब मलुक्यपुत्र! भला बताओ तो, इस स्थिति में उसका क्या होगा?”

“तब तो निश्चय ही उसकी मृत्यु हो जाएगी।” मलुक्यपुत्र जवाब दिया।

तब बुद्धदेव बोले, “तुम ठीक कहते हो, मगर इसके लिए जिम्मेदार बाण मारने वाले से कहीं अधिक वह स्वयं होगा, क्योंकि उसने व्यर्थ का हठ किया था। ठीक इसी प्रकार हे मलुक्यपुत्र! तुम भी व्यर्थ की बातों के प्रति अपनी जिज्ञासा क्यों प्रकट करते हो? जो कुछ मैंने प्रकट किया है, उसे ही जानने और वैसा आचरण करने का प्रयत्न करो, इसी में तुम्हारा कल्याण है। जिसे मैंने अब तक प्रकट नहीं किया, उसे अप्रकट ही रहने दो, क्योंकि उसे जानने की कोई आवश्यकता नहीं है।”

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