Dosti Ke Haath, “दोस्ती के हाथ” Hindi Moral Story, Essay of “Swami Rama Tirtha” for students of Class 8, 9, 10, 12.
दोस्ती के हाथ
Dosti Ke Haath
स्वामी रामतीर्थ जहाज द्वारा जापान से अमेरिका जा रहे थे। जब सैनफ्रांसिस्को बंदरगाह आया, तो सब लोग उतरने लगे, लेकिन स्वामीजी निश्चित भाव से डेक पर टहलने लगे। एक अमरीकी का जब उनकी ओर ध्यान गया, तो उसने पूछा, “महाशय ! आपका सामान कहाँ है?” “मेरे पास कोई सामान नहीं है, जो कुछ है, मेरे शरीर पर ही है।” “क्या आपके पास पैसे भी नहीं हैं?” “नहीं।” स्वामीजी ने उत्तर दिया।
“तब आपका जीवन कैसे चलता है?”
“सबके साथ प्रेमपूर्वक व्यवहार करना ही मेरा जीवन है। जब मुझे प्यास लगती है, तो पानी मिल जाता है। जब भूख लगती है, तो कोई रोटी का टुकड़ा दे ही देता है!”
“क्या अमेरिका में आपका कोई दोस्त है? “
“हाँ! है क्यों नहीं? एक अमरीकी मेरा दोस्त है।” और यह कह उन्होंने उसके कंधे पर हाथ रखकर कहा, “मेरा दोस्त यह है!”
उनके इस आत्मीयतापूर्ण स्पर्श का उस पर जादू का-सा असर पड़ा। उसे ऐसा महसूस हुआ, मानो उनके साथ उसकी पुरानी मित्रता है। वह एक सच्चे दोस्त की भाँति उनका मित्र हो गया। इसके बाद स्वामीजी जब कभी भी सैनफ्रांसिस्को आए, उसने उन्हें अपने यहाँ ही सम्मानपूर्वक रखा और उनका बराबर ख्याल किया।