Dharmik Parv – Deepawali “धार्मिक पर्व – दीपावली” Complete Hindi Essay, Paragraph, Speech for Class 9, 10, 12 Students.
धार्मिक पर्व – दीपावली
मनुष्य को जीवन में पल-पल समस्याओं से जूझना पड़ता है। इन समस्याओं से जूझने में उसे अपनी सारी शक्ति लगा देनी पड़ती है। अतः मनुष्य चाहता है कि उसे कुछ क्षण ऐसे मिलें, जिसमें वह सुख एवं प्रसन्नता का अनुभव करे। मानव जीवन में शान्ति और आनंद की अनुभूति उत्पन्न करने की दृष्टि से त्योहारों का सूत्रपात हुआ।
प्रत्येक समाज के अपने-अपने त्योहार होते हैं। मुसलमानों के ईदुल-फितर और मुहर्रम; ईसाईयों के क्रिसमस और गुड फ्राइडे; सिक्खों के गुरु-पर्व हिन्दुओं के दीपावली, दशहरा, होली, रक्षाबंधन, शिवरात्रि आदि मुख्य त्योहार हैं। प्रत्येक त्योहार का अपना-अपना महत्व है।
दीपावली का त्योहार अत्यन्त महत्वपूर्ण त्योहार है। इस पर्व के साथ अनेक धार्मिक एवं ऐतिहासिक परम्पराएँ जुड़ी हुई हैं। इस दिन भगवान राम चौदह वर्ष के वनवास के पश्चात् अत्याचारी राजा रावण का वध कर अयोध्यापुरी वापिस आये थे।
इस खुशी के अवसर पर अयोध्यावासियों ने घर-घर दीप जलाकर अपनी प्रसन्नता व्यक्त की थी। इस तरह यह त्योहार असत्य के प्रतीक रावण पर सत्य निष्ठ राम की विजय का द्योतक है।
एक पौराणिक कथा के अनुसार इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने इन्द्र की पूजा बंद कराकर जीव-जगत का संवर्धन करने वाले गोवर्धन पर्वत की पूजा का विधान रचा था। इस तरह पर्यावरण से लोगों का तादात्म्य स्थापित किया था। इससे कुपित इन्द्र ने ब्रजवासियों को घोर कष्ट में डाला, तब श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को धारण करके ब्रजवासियों की रक्षा की थी। इसी प्रसन्नता को व्यक्त करने दीपावली का त्योहार मनाया जाता है और दूसरे दिन गोवर्धन पर्वत की सांकेतिक पूजा की जाती है।
इन कारणों के अतिरिक्त दीपावली के त्योहार की एक सामाजिक पृष्ठभूमि भी है। यह त्योहार कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है। इस त्योहार के समय खरीफ की फसल कृषकों के घर में आती है और कषक अपने अध्यवसाय एवं परिश्रम की उपलब्धि पर हृदय की प्रसन्नता व्यक्त करते हैं।
वे घरों को साफ-सुथरा कर सजाते हैं और दीपमालिकाओं द्वारा घरों को प्रकाशित करते हैं। स्वास्थ्य के नियमों की दृष्टि से भी इस त्योहार की महत्वपूर्ण भूमिका है। चार माह की वर्षा ऋतु के कारण घरों में सीलन आ जाती है। मच्छरों और अन्य कीटों का प्रकोप बढ़ जाता है, फलस्वरूप संक्रामक रोगों की आशंका हो जाती है। दीपावली के पूर्व घरों की सफाई-पुताई से अनेक रोगाणु नष्ट हो जाते हैं और संक्रामक रोगों का खतरा कम हो जाता है।
दीपावली के त्योहार का उल्लास दो दिन पूर्व धनतेरस से लेकर दो दिन बाद भाईदोज तक बना रहता है। दीपावली के दिन नगर की शोभा देखते ही बनती है। घर-दुकानों की सजावट अत्यन्त आकर्षक होती है।
रात्रि में लक्ष्मी जी का पूजन होता है। बिजली के लट्टओं, पटाखे और फुलझड़ियों का प्रकाश अत्यंत मनोहारी लगता है। हर घर में पकवान, फलफूल, मिठाई, प्रसाद का उपभोग एवं वितरण किया जाता है। लोग दीपक की ज्योति जलाते हैं। दीपक की ज्योति को प्रणाम कर यह कामना करते हैं –
शुभं करोतु कल्याणाम्, आरोग्यं सुखसम्पदाम्।
दुष्टबुद्धिविनाशाय, दीपज्योतिः नमोऽस्तुते।।
दीप ज्योति शुभ और मंगल करे, आरोग्य और सुख-समृद्धि प्रदान करे। बुद्धि की जड़ता को दूर करने के लिये हे दीपक! तुम्हें प्रणाम।
दीपावली प्रसन्नता और उल्लास का दिन है, किन्तु मानव कमजोरी, बच्चों की असावधानी आदि के कारण दीपावली का दिन अनिष्टकारी भी हो जाता है। पटाखे आनंद का प्रतीक हैं, किन्तु थोड़ी सी असावधानी के कारण इनकी चिनगारियाँ भव्य प्रासादों को भस्मीभूत कर देती हैं। बच्चे जल जाते हैं, विकलांग हो जाते हैं। जुआ खेलने की एक गलत परम्परा भी कुछ लोगों ने इस त्योहार से जोड़ रखी है। जुए से अनेक घर उजड़ जाते हैं, परिश्रम से अर्जित धन जुए की भेंट चढ़ जाता है। फलतः जुए से दीपावली के दिन लक्ष्मी आती नहीं, उल्टे चली जाती है।
दीपावली का त्योहार हमें सत्य के व्रत का पालन करने की प्रेरणा देता है। मिट्टी का छोटा सा दिया हमें सिखाता है कि हम भी सामाजिक अन्धकार को दूर करने में अपना योगदान दें, तभी इस त्योहार की सार्थकता सिद्ध हो सकती है।