Home » Languages » Hindi (Sr. Secondary) » Dharmik Parv – Holi “धार्मिक पर्व – होली ” Complete Hindi Essay, Paragraph, Speech for Class 9, 10, 12 Students.

Dharmik Parv – Holi “धार्मिक पर्व – होली ” Complete Hindi Essay, Paragraph, Speech for Class 9, 10, 12 Students.

धार्मिक पर्व – होली 

प्रस्तावना

विश्व के प्रत्येक देश में त्योहार मनाये जाते हैं। इन त्योहारों के माध्यम से समाज की सांस्कृतिक परम्पराओं का आभास मिलता है। मुसलमानों की दुष्टि से ‘ईद’ का एवं ईसाईयों की दृष्टि से ‘क्रिसमस’ का त्योहार महत्वपूर्ण है। इसी प्रकार हिन्दुओं की दुष्टि से रक्षाबंधन, दीपावली, विजयादशमी, होली आदि के त्योहार अपना विशेष महत्व रखते हैं।

 

होली के त्योहार की महत्ता

होली का त्योहार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस त्योहार के पीछे एक विशेष कथा प्रचलित है। प्राचीन इतिहास के अनुसार राजा हिरण्यकश्यप एक नास्तिक राजा था। उसका पुत्र प्रहलाद ईश्वर का अनन्य भक्त था। हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को बहुत यातनाएँ दीं, किन्तु प्रहलाद ने ईश्वर के प्रति अपनी आस्था नहीं छोड़ी।

हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को यह वरदान प्राप्त था कि अग्नि उसे जला नहीं सकती। हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को भस्म करना चाहा। अग्नि की चिता बनाई गई। होलिका प्रहलाद को अपनी गोद में लेकर अग्नि की चिता में बैठ गई, किन्तु भगवान की कृपा से होलिका जलकर राख हो गई तथा प्रहलाद का बाल भी बांका नहीं हुआ।

इसी परम्परा के अनुरूप प्रतिवर्ष होली के अवसर पर होलिका रखी जाती है और होलिका का दहन किया जाता है। इस तरह होली का त्योहार बुराई पर भलाई की विजय का प्रतीक है।

होली का त्योहार हमारी समृद्धि का परिचायक भी है। इस अवसर पर शीत ऋतु समाप्त हो जाती है। फसल पकने लगती है। कृषक अपने परिश्रम की सफलता पर हर्षोल्लास में निमग्न हो जाते हैं। उनमें नई प्रेरणा एवं स्फूर्ति जाग्रत होती है। होली के त्योहार के माध्यम से किसान अपने इस हर्षोल्लास को व्यक्त करते हैं।

यह पावन त्योहार स्नेह और मिलन का प्रतीक है। होलिका दहन के दूसरे दिन रंग गुलाल आदि से लोग अपने आत्मीय जनों एवं मित्रों का स्वागत करते हैं। इस माध्यम से वे अपने पुराने बैर-भाव को भूल जाते हैं और नये सिरे से आत्मीयता का सूत्रपात होता है।

इस त्योहार में कुछ दोष एवं विकृतियाँ भी समाविष्ट हो गई हैं। रंग और गुलाल के स्थान पर कई लोग, कीचड़, मिट्टी, पेंट आदि का प्रयोग करते हैं और फलतः कभी-कभी यह त्योहार स्नेह और प्रेम के स्थान पर वैमनस्य का रूप धारण कर लेता है।

 

उपसंहार

हमें इस त्योहार की पवित्रता बनाये रखना चाहिये। ईर्ष्या और द्वेष की भावनाओं को नहीं पनपने देना चाहिये। समता, बन्धुत्व, ईश्वर के प्रति प्रगाढ़ निष्ठा आदि सद्भावनाओं का सूत्रपात हो, तभी इस त्योहार की पवित्रता बनी रह सकती है।

About

The main objective of this website is to provide quality study material to all students (from 1st to 12th class of any board) irrespective of their background as our motto is “Education for Everyone”. It is also a very good platform for teachers who want to share their valuable knowledge.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *