Bharatiya Sanskriti-Anekta mein Ekta “भारतीय संस्कृति : अनेकता में एकता” Hindi Essay, Paragraph in 1000 Words for Class 10, 12 and competitive Examination.
भारतीय संस्कृति : अनेकता में एकता
Bharatiya Sanskriti-Anekta mein Ekta
संस्कृति का अभिप्राय आमतौर पर खान-पान, पहनावा, बोलचाल आदि समझा जाता है। जब किसी त्योहार, मेला या शादी ब्याह में लगे देशी वेशभूषा धारण करते हैं तो उसे संस्कृति का प्रतीक माना जाता है।
संस्कृति वह चीज है जो संस्कार करती है। इसकी व्याख्या से स्पष्ट होता है कि मनुष्य को पशु की श्रेणी से ऊपर उठाना ही संस्कार करना है। संस्कृति मनुष्य के लिए ही बनी है।
आचार्य नरेन्द्र देव के अनुसार- “संस्कृति मानव चित्त की खेती है, इस मानवचित्त का निरन्तर संस्कार होता रहना चाहिए।”
भारतीय संस्कृति में अनेकता में एकता निम्न तथ्यों से स्पष्ट होती है। भारत की जलवायु, वनस्पति और खनिज सम्पदा में भिन्नता है, फिर भी प्राकृतिक सीमाओं ने भारत को एकता के सूत्र में बाँध रखा है। हिन्द महासागर के उत्तर और हिमालय पर्वत के दक्षिण में स्थित यह देश हमेशा एक माना गया है, वे सभी भारतीय हैं, जो इस देश में निवास करते हैं।
यहाँ की “प्रकृति नदियों”, पहाड़ों-पहाड़ियों, झरने और लहलहाते खेतों, घने बागों आदि स्थानों से जुड़ा रहा है, हिमालय से लेकर हिन्द महासागर तक हमारा देश संस्कृति दृष्टि से एक ही है-
गंगा च यमुने जैव गोदावरी सरस्वती
नर्मदे सिन्धु कावेरी जलेजिसन् सन्निधि कुरुम्।
इस श्लोक में उत्तर भारत और दक्षिण भारत की नदियों का स्मरण एक साथ किया गया है। इसी प्रकार पर्वत के नाम स्मरण में ही संस्कृति में भी सांस्कृतिक एकता के दर्शन होते हैं।
महेन्दोमालम सत्वः शक्तिमान ऋझ पर्वतः,
विघ्यश्व परिमातुश्व सप्तैते कुल पर्वतः ।
भारत की संस्कृतिक द्योति का सप्तनारियों का स्मरण भी एक साथ दिया जाता है।
अयोध्या, मथुरामाया, काशी कावी, अवन्तिका,
पुरा द्वारावती चैव सप्तैते मोक्ष दायिका।
भारत बहुभाषी देश है यहाँ सैकड़ों बोलियां बोली जाती हैं, हिन्दी हमारी राष्ट्रभाषा है। इन सब भाषाओं का स्त्रोत, प्राकृत, संस्कृत और पाली है। अधिकांश भाषाओं की वर्णमाला और व्याकरण समान है। संस्कृत भाषा ने दक्षिण भारत की भाषाओं और उनके साहित्य को भी प्रभावित किया है।
समूचे देश में वर्ण व्यवस्था, जन्म-मरण और विवाह के संस्कार, अनुष्ठान आदि समान रूप से प्रचलित हैं, जो विदेशी तत्व भारत में आये वे भी भारतीय संस्कृति में समा गए यही कारण है कि खान-पान, रहन-सहन, रीति-रिवाज, विधि-विधान भारत के विभिन्न भागों तथा समुदायों में समान हैं।
भारत उत्सवों और त्योहारों का देश है, यहाँ पर विभिन्न धर्मों के लोग विभिन्न त्योहारों जैसे- रक्षा बन्धन, दीपावली, होली, दशहरा, ईद-उल-जुआ, मोहर्रम, क्रिसमस, दुर्गा पूजा, गणगौर, पोंगल, ओणम आदि त्योहार मनाते हैं। रामनवमी, शिवरात्री, कुछ जयन्ती आदि पर उत्सवों का आयोजन किया जाता है। ये सभी उत्सव एवं त्योहार भारत की विभिन्न संस्कृतियों के परिचायक हैं। इनका देश की जलवायु, संस्कृति तथा इतिहास से अटूट सम्बन्ध है। विभिन्न स्वावलम्बी इनके आयोजन में भाग लेते रहे हैं।
उदाहरण स्वरूप रक्षा बन्धन का त्योहार अर्थात् राखी, के धर्म सम्प्रदाय, भाषा प्रान्त और देश-विदेश की सीमाएं नहीं देखती, बल्कि हमें एक-दूसरे के दुःख-दर्द में शामिल करके परस्पर स्नेह के बन्धन में बाँधती चली जाती हैं। रानी कर्मवती ने बहादुरशाह के आक्रमण से भाई के लिए हुमायूँ को राखी भेजी थी। और राखी के बन्धन से भाई बनाकर उससे सहायता माँगी थी, इससे सिद्ध होता है कि यहाँ के त्योहार विभिन्न जातियों की राष्ट्रीय एकता के प्रतीक हैं।
जिन धर्मों का उदय भारत में हुआ, जैसे-हिन्दू, जैन, बौद्ध, सिक्ख आदि वे प्राचीन मूल आध्यात्मिक तत्वों से ही निकले हैं। अतएव उनके उपदेशों में आन्तरिक समानता है, अन्य धर्मों में, जैसे-इस्लाम, ईसाई तथा पारसी। अपने आपको भारतीय परिस्थितियों के अनुकूल ढाल लिया जिससे वे धर्म भारत में फले-फूले हैं। इन विभिन्न धर्मो के मतावलम्बी देश के समस्त भागों में हैं।
कितनी जातियां यहाँ घुली-मिली, उनकी अलग पहचान नहीं रह गई। गंगा की धारा में जितनी नदियां मिली सभी गंगा हो गईं। भारतीय संस्कृति की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह परायापन नहीं देखती, न मनुष्य की किसी अन्य प्रजाति में न जीव जगत में।
अकबर ने फतेहपुर सीकरी में जोधाबाई का महल और मधुबनी का विवाह मंडप दोनों ही इस देश के भीतरी संस्कार को स्थापित करते हैं, एक में फूल-पत्तियों की सजावट है तो दूसरे में नक्काशी के बेलबूटों की। अकबर ने राम-जानकी के सिक्के ढलवाये थे।
उत्तर भारत में स्थित बद्रीनाथ, पश्चिम भारत में द्वारका, दक्षिण भारत में रामेश्वरम् और पूर्व भारत में पूरे हिन्दू धर्म के महान तीर्थ हैं। इनके अंतर्गत समस्त देश समा जाता है। ये तीर्थ भारत की सांस्कृतिक एकता और अखण्डता के सशक्त प्रमाण हैं, जिन नदियों का उल्लेख दैनिक प्रार्थनाओं में किया जाता है, ये भी भारत की मौलिक एकता की परिचायक हैं।
भारत की प्राचीन मूर्ति कलाएं तथा चित्रकलाएं विश्व विख्यात हैं। हिन्दुओं के मंदिर, विशुद्ध भारतीय शैली के बने हुए। उनमें जाति और धर्म का कोई भेदभाव नहीं है। सभी मंदिरों में मूर्तियों के लिए गर्भगृह हैं। खजूराहों, सोमनाथ, काशी, रामेश्वरम्, कोणार्क आदि के मंदिर उल्लेखनीय कलाकारी के नमूने हैं। मध्यकाल में इस कला का सम्पर्क मुस्लिम कला से हुआ-जिसके परिणामस्वरूप दुर्ग, मकबरा, मस्जिद आदि बने, इन कलाओं के सम्पर्क के परिणामस्वरूप फतेहपुर सीकरी का विश्व प्रसिद्ध बुलन्द दरवाजा तथा संसार के 8 आश्चर्यों में से एक आश्चर्य ताजमहल का निर्माण ही भारत में ही हुआ है।
मुगल कला में भारतीय और ईरानी चित्रकला का समन्वय हुआ। दोनों जातियों के कलाकार साथ-साथ काम करते हैं।
संगीत का तात्पर्य वादन और नर्तन से है, इस्लाम में संगीत को निषिद्ध माना गया है फिर भी मध्यकाल में संगीत का काबिले तारीफ विकास हुआ है। इस पहचान के कारण कुछ नस्ली भेद कुछ विशेष क्षेत्रों में किल्यट हिन्दू, कविवर, मुस्लिम कविता तथा मुस्लिम संगीत, हिन्दू संगीत जैसी भीड़ विकसित नहीं कर पाए।
अकबर के दरबार में 36 उच्च कोटि के गायक थे, जिनमें तानसेन और बैजूबावरा उल्लेखनीय हैं। सूफी संत, गजल और कव्वाली के रूप में खुदा की इबादत करते थे तो भक्त संतों ने भजन और कीर्तन के लिए संगीत का उपयोग किया।
मध्यकाल में जब दूसरी जातियाँ भारत में आकर बसने लगीं, उस समय हिन्दुओं में अनेक जातियां, सम्प्रदाय तथा पंथ थे तथा छूआछूत प्रचलित थी, उस समय के हिन्दू समाज को एक ऐसे समाज का सामना करना पड़ा जिसमें न तो जाति प्रथा थी और न सामाजिक भेदभाव था, इससे हिन्दुओं को आन्तरिक शक्ति को जागृत करने में सहायता प्राप्त हुई।
धीरे-धीरे मुसलमान भी भारत को अपना देश समझने लगे तथा धीरे-धीरे वे हिन्दुओं के निकट आने लगे। इस सम्पर्क का प्रभाव दैनिक क्रियाओं तथा धर्म तक पड़ा। विवाह के समय माँग भरने की प्रथा मुसलमानी महिलाओं में प्रचलित हुई, हिन्दू मुसलमान एक-दूसरे के त्योहारों, उत्सवों में सम्मिलित होने लगे जो आज भी जारी है।
धीरे-धीरे एक-दूसरे ने एक-दूसरे के गुण-दोष दोनों अपना लिए। शायद दोष अधिक, पर कुल ले-देकर साथ बैठकर एक-दूसरे के लिए हास-परिहास में हिन्दू-मुसलमान मिल गए।