Antarjatiya Vivah “अन्तर्जातीय विवाह” Hindi Essay, Paragraph in 700 Words for Class 10, 12 and competitive Examination.
अन्तर्जातीय विवाह
Antarjatiya Vivah
अन्तर्जातीय विवाह को किसी न किसी रूप में प्राचीन काल से ही देखा जा सकता है। गन्धर्व विवाह तथा मुगलों के समय में हिन्दू-मुस्लिम विवाह, राजपूत राजाओं तथा मुस्लिम राजाओं के घरानों में एक प्रथा के रूप में था। वह तो मानता ही पड़ेगा कि विवाह अपने आप में एक सामाजिक संसी है। जनजाति से लेकर आधुनिक समाज के बीच समाज की संस्था तथा स्वरूप भिन्न रहे हैं। परन्तु विवाह का आधार अपरिवर्तित रहा है। अर्न्तजातीय विवह ऐसा विवाह है। जो एक पुरुष तथा एक स्त्री का जोकि विभिन्न जाति समूहों के हैं, जब वह परिवार नामक समिति का गठन करने के लिए एकसूत्र में बंधते हैं तो वह विवाह अर्न्तजातीय विवाह कहलाता है। समाज में मान्यता न मिलने पर तथा एक व्यवस्थित ढांचा न मिलने के बाद भी आज अर्न्तजातीय विवाह पहले की अपेक्षा अधिक हो रहे हैं। तथा इसके विरोध में गहनता भी घट रही है। अर्न्तजातीय विवाह को सामाजिक मान्यता खुल कर नहीं मिलने का सबसे बड़ा कारण जातिवादी संकीर्णता है।
आज आधुनिकीरण और उद्योगीकरण के इस दौर में नए समाज का समाजीकरण हुआ है जो पुराने लोकाचार, प्रथाओं से बाहर आकर नूतन उन्नति की और परिवार के रूप में उभर रहा है। जो नित्य स्थापन चाहता है। नए सांस्कृतिक आभास तथा परसंस्कृति को देखने व परखने की जिज्ञासा तथा भेदभाव रहित जन्म में विश्वास करने वालों का एक तबका उभर कर सामने आ रहा है। जो अर्न्तजातीय विवाह का पक्षधर है। जहाँ जाति-पाति की हीन भावना साँस नहीं ले पाती वहाँ अर्न्तजातीय विवाह के पुष्प पल्ववित तथा पुष्पित होते हैं। इसके लिए स्वच्छ मन का वातावरण तथा प्रेम की खुशबू से उत्पन्न सोचने वाले माली ही इसके उत्तराधिकारी होते हैं।
सफल अर्न्तजातीय विवाह के अनेक उदाहरण मिल जायेंगे किन्तु यदि इसको यदि सामाजिक मान्यता मिल जाये तो समाज की बहुत सी कमजोरियां दूर हों जायेंगी। अर्न्तजातीय विवाह से जातिवाद का भेदभाव दूर हो जाता है। यह बात निश्चित रूप से राष्ट्र हित में है। अर्न्तजातीय विवाह सौहार्द्र और प्रेम का द्योतक है। जीवन की कुण्ठाओं के घेरे से निकाल कर जाति-पाँति में भेदभाव से दूर विशालता की ओर ले जाने वाला वह मार्ग है जिस पर चल कर ही इसमें मिलने वाले सुख और प्रसन्नता का अनुभव किया जा सकता है। यह विवाह दो विपरीत जाति के लोगों को एक दाम्पत्य सुख में पिरो देता है। तथा एक-दूसरे के धर्म व जाति की संस्कृति के आदान प्रदान में सहायक हैं। अर्न्तजातीय विवाह विवाह सुखमय जीवन साथी के चुनाव में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। क्योंकि एक ही जीवन जाति व धर्म के छोटे से दायरे से बाहर आकर व्यापकता से जीवन साथी चुनने से संकीर्ण विचार धाराओं से मुक्ति मिलती है तथा अर्न्तजातीय विवाहों की समस्याओं से जो कठिनाइयां होती हैं उससे वह परे हो जाता है।
कुछ बीमारियाँ अपने रक्त सम्बन्धियों से विवाह करने से होती है। अर्न्तजातीय विवाह करने से अपने सम्बन्धियों तथा गोत्र से होने वाली बीमारियों से बचा जा सकता हैं। सर्वेक्षण द्वारा यह आँका गया कि अर्न्तजातीय विवाह से पर्दा प्रथा की समाप्ति होती है । पर्दा संस्कृति के विरुद्ध समाज में एक नवीन संरचना का निर्माण होना चाहिए। आज भी हमारे भारतीय समाज में विधवा विवाह को सामाजिक स्वीकृति खुले मन से नहीं मिली है। अतः अर्न्तजातीय विवाह से दूसरे धर्मों की जातियों में जहाँ यह स्वीकार किये जाते हैं, होने से विधवा विवाह की स्वीकृति की ओर सूक्ष्म विकास प्रारम्भ हो जायेगा।
अर्न्तजातीय विवाह दो हृदयों को एकसूत्र में बाँधने वाला बन्धन है जहाँ केवल भावों और प्राकृतिक विचारों का पुंज होता है और माया-मोह से दूर लोक-लाज तथा आर्थिक कुण्ठाओं से ग्रसित लोगों के लिए एक पाठ है। बाल-विवाह हमारे देश का घुन है जो ग्रामीण परिवेश में अधिक पाया जाता है। जहाँ परम्पराओं तथा प्रथाओं को धर्म की संज्ञा दी जाती है। इस विचारधारा से बाहर निकलने के लिए नवीनीकरण होना आवश्यक होता है। जिसका मतलब होता है कि समाज में पुरानी चीजा की जगह नए का नियम स्वीकार होगा। अर्न्तजातीय विवाह जीवन साथी को अपने ढंग से चुनने तथा अपनी पसंद का जीवन साथी चुनने में सहायक होता है। निर्णय लेने की क्षमता परिपक्वता से आती है। इस प्रकार बाल-विवाह पर एक प्रकार से अर्न्तजातीय विवाह पर अंकुश लगाना है। एक बात और अर्न्तजातीय विवाह के नाम पर प्रत्येक व्यक्ति अपेक्षाकृत उच्चतर जाति में विवाह करना चाहता है। शूद्र, ब्राह्मण, बनिया, ठाकुर, आदि के साथ सम्बन्ध करके प्रगतिशील बनना चाहता है। परन्तु वह किसी चाण्डाल परिवार में सम्बन्ध कारना नहीं चाहेगा। कहने का सारांश यह कि अर्न्तजातीय विवाह के मार्ग में उच्चवर्ग और निम्नवर्ग की मानसिकता से बाधा उत्पन्न होती है।