Shaheed Diwas – 30 January “शहीद दिवस – 30 जनवरी” Hindi Nibandh, Essay for Class 9, 10 and 12 Students.
शहीद दिवस – 30 जनवरी
Shaheed Diwas – 30 January
महात्मा गाँधी का निधन – दिवस
Mahatma Gandhi’s death day
हमारे देश में प्रतिवर्ष महात्मा गाँधी के निधन के दिवस 30 जनवरी को “शहीद दिवस” के रूप में मनाया जाता है।
महात्मा गाँधी का जीवन परिचय (Biography of Mahatma Gandhi)
“आने वाली पीढ़ियाँ शायद मुश्किल से ही यह विश्वास कर सकेंगी कि महात्मा गाँधी जैसा हाड़-माँस का पुतला कभी इस धरती पर हुआ होगा?” अलबर्ट आइन्स्टीन का उपर्युक्त कथन आज के इस आतंकवादी, बर्बर और जघन्य अमानवीय कृत्यों को देखकर सचमुच बहुत कुछ सोचने पर विवश कर देता है। महात्मा गाँधी मात्र हाड़-माँस के व्यक्ति ही नहीं थे, बल्कि वे सम्पूर्ण एक विचारात्मक आंदोलन थे, सामयिक दर्शन थे और दूरन्देशी युगपुरुष थे। महात्मा बुद्ध के बाद शांति के वे ऐसे मसीहा थे, जिन्होंने सत्य-अहिंसा के व्यापक महत्त्व को समझा और अपने में आत्मसात् कर क्रियान्वित भी किया। जैसा वे कहते-करके भी दिखाते थे। वे समग्र मानवता के कल्याण और सर्वोदय के लिए जीवनभर प्राणपण से जुटे रहे।
महात्मा गाँधी विश्व के युग महापुरुषों में से थे। उन्हें किसी एक भौगोलिक परिधि के सीमित दायरे में अथवा किसी जाति विशेष, सम्प्रदाय या परम्परा के अन्तर्गत रखे जाने का विचार भी लाना असंगत होगा। वे सम्पूर्ण मानव-कल्याण के लिए जन्मे थे और सभी संकीर्णता और बंधनों से परे थे। यदि व्यावहारिक तौर पर भी हम उनकी नीति और कार्य प्रणाली पर गौर करें तो उन्हें हम ऐसे किसी फकीर, साधु या फरिश्ते के रूप में नहीं पाएंगे, जो कमंडल थामे देश-विदेश में परिक्रमा लगाता हुआ विश्व शान्ति की दुहाई दे रहा हो। महात्मा गाँधी ने आम जनता को करीब से देखा और उसकी भावनाओं को समझा-परखा फिर पश्चिमी देशों की औद्योगिक प्रगति, पारस्परिक हथियारों की प्रतिस्पर्द्धा एवं गुटबंदी तथा साम्राज्यवादी हविस को पहचाना, तब कहीं जाकर उन्होंने विश्व शांति का आह्वान किया।
वाई. जी. कृष्णमूर्ति ने उनका मूल्यांकन करते हुए कहा था कि महात्मा गाँधी केवल संत ही नहीं थे, बल्कि वे एक महान् क्रांतिकारी भी थे। यदि उन्हें उग्र क्रांतिकारी कहा जाए, तो अत्युक्ति नहीं होगी।
काठियावाड की रियासत पोरबंदर के दीवान करमचंद गाँधी को 2 अक्टूबर, 1869 के दिन पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। पारिवारिक प्यार से मोनिया के नाम से पुकारे जाने वाले मोहनदास आने वाले कल के विश्व-विख्यात सत्य-अहिंसा-शांति के अग्रदूत होंगे, उस समय यह कौन जानता था ? बचपन में ही भगवद्गीता व धार्मिक वातावरण के साथ ‘श्रवण कुमार की पितृभक्ति’ और ‘सत्यवादी हरिश्चन्द्र’ नामक पुस्तकों का उनके शिशु मन पर गहरा प्रभाव पड़ा था। हालांकि बाल्यावस्था की नासमझी में चोरी, झूठ, धूम्रपान, धोखा, अविश्वास जैसे निंदनीय कार्य करने वाले बालक गाँधी अपने एक बदनाम मित्र के बहकावे में कोठे की सीढ़ियाँ तक चढ़ गये थे। इन घटनाओं को देखकर स्पष्ट होता है कि एक सामान्य व्यक्ति को असामान्य बनने में कैसे कठिन संघर्ष से गुजरना पड़ा होगा। महात्मा गाँधी की आंतरिक इच्छा डॉक्टर बनने की थी, किन्तु पैतृक पेशा दीवानगीरी के लिए उन्हें बैरिस्टर बनने के लिए प्रेरित किया गया। इंग्लैण्ड प्रवास में वे शिक्षा ग्रहण करते हुए माँस- काफी परिवर्तन हुआ था। मदिरा तथा सुन्दरियों के मोहपाश से विलग रहे। बैरिस्टर बनने के बाद महात्मा गाँधी में इंग्लैण्ड से वापस लौटते समय तक महात्मा गाँधी जी भाषण देना नहीं जानते थे, पर विदाई बेला में कुछ बोलना था ही। महात्मा गाँधी के जेहन में एडीसन की घटना आई-एडीसन को ‘हाउस ऑफ कॉमन्स’ में बोलना था। वे खड़े होकर ‘आई कंसीव, ‘आई कंसीव, आई कंसीव’ तीन बार बोले और बैठ गए। अंग्रेजी में कंसीव का अर्थ ‘मेरी धारणा है’ के अतिरिक्त ‘गर्भ धारण करना’ भी होता है। बस फिर तो एक सिरफरे ने एडीसन की इस दशा पर छींटा-कसी कर ही दी- “इन सज्जन ने तीन बार गर्भ तो धारण किया, मगर जना कुछ भी नहीं”। हाउस में जोरदार ठहाके लगे। महात्मा गाँधी ने इसी घटना का उल्लेख कर भाषण शुरू करके अपनी कमजोरी छिपाने का मन तो बना लिया पर खड़े होकर बोलने का साहस न जुटा सके और ‘धन्यवाद’ कहकर बैठ गए, लेकिन आगे चलकर वही महात्मा गाँधी मानव उत्थान के लिए शांति का संदेश देने में कितने निपुण सिद्ध हुए? इतिहास साक्षी है कि शांति और अहिंसात्मक तरीकों को अपना हक और न्याय प्राप्त करने का सबल अस्त्र मानने वाले महात्मा गाँधी ने इन अमोघ अस्त्रों से उस ब्रिटिश साम्राज्यवादी शक्ति को पस्त कर दिया, जिसके साम्राज्य में सूर्य नहीं डूबता था।
आज भी विश्व में अन्याय और शोषण के विरुद्ध गाँधीवादी दृष्टिकोण अपनाया जाता है। राजनीतिक आंदोलन चलाने वाली सत्ताहीन या सत्ताधारी शक्तियाँ अथवा नैतिक संघर्ष पर आमादा पार्टियाँ सभी अहिंसा की पक्षधर हैं। गाँधीवाद की यही प्रासंगिकता है।
महात्मा गाँधी के दक्षिणी अफ्रीका प्रयास पर यदि हम एक विहंगम दृष्टि डालें तो स्पष्ट होगा कि एक साधारण से व्यक्ति के रूप में पहुँचे महात्मा गाँधी ने 22 वर्ष की लम्ब लड़ाई में अपमान-भूख, मानसिक संताप व शारीरिक यातनाएँ झेलते हुए न केवल राजनीतिक, बल्कि नैतिक क्षेत्र में जो उपलब्धियाँ प्राप्त कीं, उसकी मिसाल अन्यत्र मिलना असम्भव है। इसी 22 वर्ष के गहन अनुभवों से भारत की बागडोर अपने हाथ में लेना महात्मा गाँधी की विवशता थी।
रूसी ऋषि टॉलस्टाय की अनुमति और आशीर्वाद से दक्षिणी अफ्रीका के जोहान्सबर्ग से 22 मील दूर 1100 एकड़ धरती पर ‘टॉलस्टाय फार्म’ की स्थापना हुई, जिसके सूत्रधार थे-जर्मनी के वास्तुशिल्पी कालेनवाक साहब। वे टालस्टाय के भक्त और महात्मा गाँधी के अभिन्न मित्र थे, वहीं सहशिक्षा के दौरान एक छात्र-छात्रा के संसर्ग के मामले से तूफान उठ खड़ा हुआ तो महात्मा गाँधी ने प्रायश्चित बतौर स्वयं सात दिन का उपवास रखकर एक नई दिशा प्रदान की। महात्मा गाँधी के कुल अट्ठारह उपवासों में यह प्रथम उपवास था और इसका अच्छा परिणाम निकला। महात्मा गाँधी की आजीवन यही मान्यता रही कि अपनी तपस्या के बल से ही दूसरों का हृदय परिवर्तन किया जा सकता है। महात्मा गाँधी के इस अफ्रीकी सत्याग्रह में कालेनवाक, श्रीमती पोलक एवं कु. श्लेसिन तीन विदेशी मित्रों का भरपूर सहयोग रहा। महात्मा गाँधी की स्पष्ट नीति थी कि वे कभी दूसरे को पराजित करके स्वयं विजयी नहीं बनते थे, बल्कि उसे प्रभावित करके अपना बना लेते थे।
उनके भारत लौटने पर गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर ने कहा था-“भिखारी के लिबास में एक महान् आत्मा लौटकर आई है”। सोने की खानों के देश से महात्मा गाँधी अनुभव की ऐसी पूँजी लेकर ही महान् हुए थे। 1919 से लेकर 1948 में अपनी मृत्यु तक भारत के स्वाधीनता आंदोलन के महान् ऐतिहासिक नाटक में गाँधी की भूमिका मुख्य अभिनेता की रही। उनका जीवन उनके शब्दों से भी बड़ा था। चूँकि उनका आचरण विचारों से महान् था और उनकी जीवन प्रक्रिया तर्क से अधिक सृजनात्मक थी।
कर्मयोगी-महात्मा गाँधी (Karmayogi-Mahatma Gandhi)
महात्मा गाँधी जी जब कोलकाता में थे तो उनकी मुलाकात गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर से कराई गई। आश्चर्य तो यह रहा कि इन दोनों के मिलन के सूत्रधार थे-अंग्रेज चार्ल्स फ्रीअर एण्ड्रज। इनमें एक था फकीर-संन्यासी तो दूसरा चिंतक कवि, पर दोनों में आंतरिक संबंध था। गुरुदेव ने ही महात्मा गाँधी में महात्मा के दर्शन किए और उन्हें सर्वप्रथम “महात्मा” कहकर सम्बोधित किया। महात्मा गाँधी स्वामी विवेकानन्द से भी मिलने को आतुर थे, पर दुर्भाग्य से स्वामी जी अस्वस्थ थे। अतः भेंट सम्भव न हो सकी। उल्लेखनीय है पूना की साबरमती जेल में महात्मा गाँधी के आमरण उपवास को गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ने फलों का रस पिलाकर तोड़ते हुए गीतांजलि का प्रिय प्रार्थना-गीत सुनाया था—
‘जीवन जखन सुकाए जाए, करुणा धाराए एशो‘।
जनवरी, 1928 में महात्मा गाँधी ने ‘अंतर्राष्ट्रीय बन्धुत्व संघ’ के सम्मुख भाषण देते हुए कहा था- “लम्बे अध्ययन और अनुभव के उपरान्त मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि सभी धर्म सच्चे हैं, सब धर्मों में कोई न कोई खराबी है, और सभी धर्म मुझे उतने ही प्रिय हैं, जितना मेरा हिन्दू धर्म।”
सर्वप्रथम 1919 में भारत लौटने पर गाँधी ने भारतीय राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक दशाओं का अध्ययन करने के साथ चम्पारण और खेड़ा के कृषकों और अहमदाबाद के मिल मजदूरों के अधिकारों की प्राप्ति के लिए सत्याग्रह का प्रयोग किया। 1920 से 1947 तक का समय राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम का युग-गाँधी-युग कहा जाता है। प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति पर भारत का घटनाक्रम इतनी तेजी से घूमा कि राष्ट्रीय संग्राम का नेतृत्व महात्मा गाँधी के हाथों में आकर वास्तविक रूप से जन-आंदोलन बन गया।
अंग्रेजों के विश्वासघात ने महात्मा गाँधी को 1921 में असहयोग आंदोलन छोड़ने को विवश कर दिया। इस आंदोलन से देश की समस्त जनता में अपूर्व जागृति उत्पन्न हुई। चौरी-चौरा आदि स्थानों पर हिंसात्मक घटनाओं को देखकर महात्मा गाँधी ने आंदोलन स्थगित कर दिया। 1930 में महात्मा गाँधी ने पुन: सविनय अवज्ञा आंदोलन का व्यापक प्रदर्शन कर दिखाया। अंग्रेजी हुकूमत ने सख्ती से दमन चक्र किया। स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए अग्नि और भड़क उठी। 26 जनवरी, 1930 को हिन्दुस्तान के करोड़ों लोगों ने पूर्ण स्वराज की शपथ ली। अत: 26 जनवरी को ही स्वाधीन भारत का संविधान लागू कर इस दिन को गणतंत्र दिवस की गरिमा प्रदान की गई है।
महात्मा गाँधी जी की भक्त अंग्रेज महिला मेडेलिन स्लेड, जो मीरा बहन के नाम से विख्यात हुई, लिखती हैं—“मैंने जैसे ही साबरमती आश्रम में प्रवेश किया तो एक गेहूँवर्णी प्रकाश पुंज मेरे समक्ष उभरा और मेरे मन-मस्तिष्क पर छा गया…..”
महात्मा गाँधी के प्रति लोगों में ऐसी ही पावन आस्था थी। डांडी यात्रा में 24 दिनों तक लगातार पैदल चलकर समुद्र के पानी को सुखाकर बनाया हुआ थोड़ा-सा नमक उठा लेने की बात, वायसराय को नाटकीय और मूर्खतापूर्ण लगी होगी, पर धोतीधारी इस क्षीणकाय महामानव के इस नाटकीय कार्य से पूरे देश में खलबली मच गई। नमक कानून के उल्लंघन की यह प्रतीकात्मक घटना जनस्फूर्ति के लिए रामबाण सिद्ध हुई।
लंदन की गोलमेज परिषद् में वायसराय के भवन की सीढ़ियाँ चढ़ रहे महात्मा गाँधी को देख विन्स्टन चर्चिल ने घृणाभाव से कहा था-“एक समय का ‘इनरटेम्पल’ का वकील अब राजद्रोही फकीर बनकर अर्धनग्न अवस्था में सम्राट के प्रतिनिधि के साथ समान स्तर पर संधि की मंत्रणा करने के लिए वायसराय के महल की सीढ़ियाँ चढ़ रहा है, यह दृश्य घृणापूर्ण एवं अपमानजनक है।”
लंदन की गोलमेज परिषद् में भाग लेकर लौटते समय महात्मा गाँधी पाँच दिनों के लिए फ्रांसीसी लेखक रोमांरोलां के साथ रहे। दोनों मनीषियों का यही प्रथम और अंतिम मिलन था। रोमांरोलां न तो कभी हिन्दुस्तान आए और न महात्मा गाँधी से मिले थे, फिर भी मुलाकात से कुछ समय पूर्व उन्होंने महात्मा गाँधी की जीवनी लिखी थी। उन्होंने महात्मा गाँधी को टॉलस्टाय तथा टॉलस्टाय से अधिक सच्चा ईसाई बताया था। महात्मा गाँधी जो पहले ‘ईश्वर सत्य है’ कहते थे, अब ‘सत्य ईश्वर है’ कहने लगे थे।
शताब्दियों से पीड़ित और उपेक्षित दलित-शोषित वर्ग की मार्मिक पीड़ा को महात्मा गाँधी ने समझा और उन्हें हरिजन नाम देकर उनके कल्याण के लिए अपना सम्पूर्ण जीवन अर्पित कर दिया। अस्पृश्यता के रोग से अछूते महात्मा गाँधी के मन में न कोई छोटा था न कोई बड़ा, उनके आश्रम में-
“वैष्णव जन तो तेने कहिये, जे पीर पराई जाणे रे।”
तथा
“अल्लाह ईश्वर तेरे नाम, सबको सन्मति दे भगवान।”
जैसे भजन नित्यप्रति गुंजित होते थे। उनका सेवाग्राम तो श्रम की महत्ता का राष्ट्रीय तीर्थ सिद्ध हुआ। उन्होंने किसानों को प्रोत्साहित करते हुए कहा था कि मैं चाहता हूँ हमारे देश का राष्ट्रपति एक किसान हो। उनकी प्रसिद्ध पुस्तक ‘हिन्द स्वराज्य’ में थोरो एवं टॉलस्टाय के विचार प्रतिबिम्बित हुए हैं। ‘इण्डियन ओपीनियन’, ‘यंग इंडिया’ और ‘हरिजन’ नामक पत्रिकाएँ उनके विचारों की संवाहक सुगंधि थीं।
12 अगस्त, 1946 को पं० जवाहरलाल नेहरू को जब अन्तरिम सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया गया तो जिन्ना ने नाराज होकर ‘सीधी कार्यवाही’ की घोषणा कर दी। फलस्वरूप बंगाल में बहुसंख्यक मुसलमानों ने हिन्दुओं पर जो जुल्म और कहर ढाए, ऐसे अमानवीय बर्बर कृत्य पहले कभी देखने में नहीं आए थे। प्रतिक्रियास्वरूप पूरे देश में हिन्दू-मुस्लिमों में कत्ले आम, बलात्कार, राहजनी, लूटपाट का भयानक दौर चल पड़ा। इन अनवरत मारकाट की घटनाओं से महात्मा गाँधी को गहरा सदमा पहुँचा, वे चिड़चिड़े हो उठे।
“देखते नहीं हो, मैं अपनी चिता पर बैठा हूँ।”
तथा
“तुम्हें मालूम होना चाहिए कि तुम एक मुर्दे से बात कर रहे हो।”
जैसे कथन उनकी मार्मिक पीड़ा को व्यक्त करते हैं। नोआखली की घटना से तो उनका हृदय छलनी हो गया।
29 जनवरी, 1948 को महात्मा गाँधी ने अपनी भतीजी-पौत्री मनु से कहा था— “यदि किसी ने मुझ पर गोली चला दी और मैंने उसे अपनी छाती पर झेलते हुए होठों से राम का नाम ले लिया तो मुझे सच्चा महात्मा कहना।” और यह कैसा संयोग था कि 30 जनवरी, 1948 को उस महात्मा को मनोवांछित मृत्यु प्राप्त हो गई।
संवेदित स्वरों में लार्ड माउंटबेटन ने ठीक ही कहा था-“सारा संसार उनके जीवित रहने से सम्पन्न था और उनके निधन से वह दरिद्र हो गया है।”
शहीद दिवस अवसर पर गाने योग्य गीत
गाँधीजी का भजन (Gandhiji’s hymn)
वैष्णव जन तो तेने कहिये, जे पीड़ पराई जाणे रे ।
पर दुखे उपकार करे तोये, मन अभिमान न आणे रे ॥
सकल लोक मां सहनु बन्दे, निन्दा न करे केनी रे।
वाच, काय, मन निश्चल राखे, धन-धन जननी तेरी रे।
समदृष्टि ने तृष्णा त्यागी, पर स्त्री जेने मात रे।
जिह्वा थकी असत्य न बोले, पर धन नव झाले हाथ रे ॥
मोह माया व्यापे नहिं जेने, दृढ़ बैराग्य जेना मन मां रे ।
राम धाम सूं ताली लागी, सकल तीर्थ तेरा तन माँ रे ॥
वण लोभी ने कपट रहित छे, काम क्रोध निर्वाया रे ।
भणे नरसैंयो तेनु दरसन करताँ, कुल एको तेरे तार्यों रे ॥
गाँधी बाबा को प्रमाण
धन्य-धन्य गाँधी बाबा, प्रणाम तुम्हें हम करते हैं।
अफ्रीका में हिन्दुन पर, गोरों ने अत्याचार किया।
बापू ने अपने साहस से जुल्मों से उद्धार किया।
निःस्वार्थ, त्याग व सेवा का, मान सभी जन करते हैं।
चीज विदेशी मत बरतो, बापू ने नारा बुलन्द किया।
देशी माल है धन अपना, सब ने इस पर अमल किया।
घर-घर में चरखे चलने लगे, जिससे निर्धन भी पनपते हैं।
धन्य-धन्य गाँधी बाबा, प्रणाम तुम्हें हम करते हैं।
तेरी ताकत अंग्रेजों ने, झुक करके स्वीकार करी।
सत्य-अहिंसा शक्ति से, दुनियाँ की हर कौम डरी ॥