Home » Languages » Hindi (Sr. Secondary) » Satyam Shivam Sundaram “सत्यम् शिवम् सुन्दरम्” Hindi Essay, Paragraph in 1000 Words for Class 10, 12 and competitive Examination.

Satyam Shivam Sundaram “सत्यम् शिवम् सुन्दरम्” Hindi Essay, Paragraph in 1000 Words for Class 10, 12 and competitive Examination.

सत्यम् शिवम् सुन्दरम्

Satyam Shivam Sundaram

कवीन्द्र-रवीन्द्र के अनुसार सौन्दर्य की मूर्ति ही मंगल की मूर्ति हैं मंगल की मूर्ति ही सौन्दर्य का पूर्ण स्वरूप है। स्यात् कवीन्द्र-रवीन्द्र की उस पंक्ति से ही प्रभावित होकर ‘पन्तजी’ ने लिखा है-

वही प्रजा का सत्य स्वरूप, हृदय में बनता प्रणय अपार ।

लोचनों में लावण्य अनूप लोक-सेवा में शिव अविकार ॥

कतिपय विद्वानों की अवधारणा है कि सत्यम् शिवम् सुन्दरम् का सूत्र हिन्दी में बंगला साहित्य के माध्यम से आया है जबकि कुछ विद्वान् मानते हैं कि यूनानी दार्शनिक अरस्तू के-‘The true, The good, The beautiful.’ का यह सूत्र अनुवाद है और ब्रह्म समाज द्वारा सर्वप्रथम इसका प्रयोग किया गया; किन्तु एक वर्ग और भी है, जिसकी मान्यता है कि भारत के लिए इन शब्दों की कोई नवीनता नहीं हैं। सच तो यह है कि भारतीय दर्शन, भारतीय संस्कृति और धर्म इसी पर आधारित है। ‘सच्चिदानन्द’ शब्द का उत्कृष्टतम् उदाहरण है। यदि हम श्रीमद्भगवदगीता के सत्रहवें अध्याय का अवलोकन करें तो पायेंगे कि अर्जुन को सत्य, प्रिय तथा कल्याणकारी वाणी बोलने का उपदेश भगवान् श्रीकृष्ण द्वारा दिया गया है-

अनद्देगकर वाक्यं, सत्यं प्रियं हिंत च यत् ।

स्वाध्यायाश्यसन चैव वाङमय तप उच्चति ॥”

शिवम् एवं सुन्दरम् का रूप हम किरातार्जुनीयम् में भी देख सकते हैं- जहाँ तक ‘साहित्य’ की बात है इसकी सृष्टि ‘सत्यम् शिवम् सुन्दरम्’ की अवधारण में निहित है। साहित्य में जो रस या आनन्द माना जाता है वह सुन्दरम् का ही प्रतिरूप हैं। और सौन्दर्य सत्यरहित नहीं होता। साहित्य में लोक-कल्याणकारी ‘शिवम्’ निहित है यही कारण है कि हिन्दी के प्राचीन कवियों से लेकर आधुनिक कवियों सभी ने इस ‘शिखर’ को अंगीकार किया है। भारतीय संस्कृति समन्वयात्मक रही है अर्थात् समन्वय और एकता ही हमारी संस्कृति की विशेषता रही है। भारतीय चिन्तन पद्धति के अनुसार ‘त्रिमूर्ति’ में ‘सत्यम् शिवम् सुन्दरम्’ के साकार रूप की परिकल्पना की है। विष्णु- सत्य- शंकर-शिव और ब्रह्मा सुन्दर के प्रतीक हैं। भारतीय दर्शन की मान्यता है जो सम्य शिव है उसे आनन्दमय होना चाहिए और आनन्द सौन्दर्य की प्रभावात्मक अनुमति है।

सौन्दर्य सत्य का परिस्कृत रूप है जो सत्य को ग्राह्म बना देता है, फलतः शिव हो जाता है। शिव ही वास्तविक सत्य है, शिव के अभाव में सत्य की सत्ता स्वयं समाप्त हो जाता हैं। जो सत्य है शिव है-वह आनन्दमय होगा ही और आनन्द सौन्दर्य की विशेष अनुभूति का नाम हैं। यों कहा भी जा सकता है कि सत्यम्, शिवम् एवं सुन्दरम् का समन्वित रूप ही लोक धर्म का श्रेष्ठतम् स्वरूप है। कविवर पंत ने इन तीनों के आनन्द सम्बन्ध को चित्रित किया है। इसी कारण से-

“सौन्दर्य सत्य है, सत्य सौन्दर्य है,” यहीं संसार में तुम जानते हो और यही जानने की तुम्हें आवश्यकता है, कीटस् की ये पंक्तियां सत्य और सुन्दर को एक मानती हैं-

“Beauty is truth, truth is beauty

That all ye. know on earth

And all ye. need to know.”

काव्य या काल में सम्भाव्य सत्य की प्रतिष्ठापना करना ही आदर्श है और यह सत्य, सुन्दर और कल्याण-प्रद हो, यह भी आवश्यक है। आचार्य मम्मट ने ‘साहित्य’ शब्द की व्याख्या करते हुए लिखा है, ‘हित सम्पादयति इति साहित्यम्’ । विद्यापति, सूर, तुलसी, रहीम आदि कवियों ने शिव की अवधारणा के आधार पर काव्यसर्जना की। उत्तरवर्ती साहित्यकारों ने युग विकृतियों के प्रति सजग किया और अपनी रचना में शिव तत्व की प्रतिष्ठा की।

सौन्दर्य की अविच्छिन्न सत्ता होती है। महाकवि माघ का मानना है कि “क्षणे-क्षणे यत्रावतार्पोति तदैव रूप रमणीयता,” यदि कोई वसु सत्य हो शिवत्वपूर्ण हों किन्तु सौन्दर्य रहित हो, तो उसे पूर्ण सत्य स्वीकार नहीं किया जा सकता है, इसी प्रकार कोई काव्य सुन्दर हो, सत्य हो किन्तु कल्याणप्रद न हो शिवत्व न हो तो वह सहीं मयाने में काव्य नहीं स्वीकार किया जाएगा। किसी वस्तु के सौन्दर्य को देखना है तो उसके स्वरूप को अनदेखा नहीं किया जा सकता है। कीट्स ने लिखा है- “मैं सत्य का आकलन बिना उसके सौन्दर्य की स्पष्ट धारणा के उसकी कल्पनात्मक वास्तविकता के कभी नहीं कर सकता।”

सम्पूर्ण कला की उत्कृष्टता उसके सौन्दर्य बोध पर निर्भर करती है और यह सौन्दर्य सत्य के निकट होना चाहिए, प्रेरणा से भरा हुआ होना चाहिए। सौन्दर्य सत्य की खोज में मदद करता है, टैगोर ने लिखा है-“प्रकृति मनुष्य की आत्मा से काव्य रचती है। तब काव्य अस्तित्व के महीन स्तरों से ऊंचा ही ऊंचा उठता जाता है। आत्मा की गतिविधि के इस क्षण में सौन्दर्य हमें गहराई में शाश्वत आत्मा की उस वास्तविकता तक ले जाता है जो हर वस्तु के पीछे दमकती है।”

कुछ आचार्य सत्य को आनन्दस्वरूप अव्यक्त सत्ता मानते हैं। आचार्य शुक्ल ने आत्मा की मुक्तावस्था को ज्ञान दशा माने जाने की भांति हृदय की मुक्तावस्था की रस दशा मानी है। अरस्तू का चिन्तन था कि कवि कर्म पक्ष उसका ही चिन्तन करना नहीं हो जो अतीत की कोख में है। अपितु उसका कर्तव्य यह भी है कि वह सम्भाव्य सत्य का चित्रण करें। कवि या कलाकार असुन्दर को भी अपनी कल्पना एवं अनुभूति के द्वारा सुन्दर रूप में प्रस्तुत करने का यत्न करता है और यही ‘शिव’ होता है। लोकमंगल ही शिव है। कलाकार का कार्य है कुरूपों और अमंगलों को सुन्दर व मंगलमय बना देना। कला सौन्दर्य की पक्षपाती है। कलाकार आत्मा प्रकाशन के लिए बेचैन रहता है। माखनलाल चतुर्वेदी के शब्दों में- ‘लेखन में ऐसी स्फूर्ति होनी चाहिए जो उसके निर्माण को आत्म वेदना की मूर्ति का स्वरूप दे सके, वह लेखक कला का चतुर चित्रकार है जो अपने आत्म-मनन और आत्म-चिन्तन को कलम के घाट उतारने के लिए अपनी रोटियाँ बेचकर रात को लैम्प में अपनी आँखों और उँगलियों द्वारा मस्तिष्क तथा मस्तिष्क के घुमाव और हृदय की धड़कन से प्रभावित रक्त चढ़ा देने के लिए बाजार में तेल खरीदता नजर आता है। इसीलिए शुद्ध कला की उत्पत्ति स्वान्तः सुखाय होती है।

कुछ आलोचकों का मानना है कि सत्य के चक्कर में सुन्दर अपाहिज हो जाता है। किन्तु यह धारणा भ्रमोत्पादक है। वास्तव में सत्य और सुन्दर समन्वित होकर अधिक आनन्ददायक हो जाते है।

कला का उद्देश्य जीवन से है। टॉलस्टाय के अनुसार कला का ‘समभाव के प्रचार द्वारा’ विश्व को एक करने का साधन है। गांधी जी के विचार से “कला से जीवन का महत्त्व है, जीवन में वास्तविक पूर्णता प्राप्त करना ही कला है। कभी कला जीवन को सुमार्ग पर न ला सके तो वह कला क्या हुई।”

कला सृष्टि समाज की आवश्यकतानुसार होती है। ‘कला के लिए है अथवा जीवन के लिए यह प्रश्न निरर्थक है क्योंकि कलाकार सृष्टि में अलग नहीं होता। कला आनन्दस्वरूप होती है और आनन्द समाज सापेक्ष होता है और जो कला समष्टिगत नहीं है, वह कला हो ही नहीं सकती, क्योंकि कला मनुष्य को समाज मानवता की सर्वोच्च भाव भूमि पर ले जाती है। मात्र की उस उच्च भावभूमि पर अधिष्ठित करती है। जहाँ वह स्वयं की सत्ता भूलकर

‘सत्यम् शिवम् सुन्दरम्’ सूत्रवाक्य कला का प्राण है और इसके समन्वय से ही स्वप्न सर्जन हो सकती है।

(1000 शब्दों में)

About

The main objective of this website is to provide quality study material to all students (from 1st to 12th class of any board) irrespective of their background as our motto is “Education for Everyone”. It is also a very good platform for teachers who want to share their valuable knowledge.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *