Sabhyata aur Kavita “सभ्यता और कविता” Hindi Essay, Nibandh 300 Words for Class 10, 12 Students.
सभ्यता और कविता
Sabhyata aur Kavita
जिस युग में वाणिज्य और उद्योग सर्वोच्च सत्ता पर आसीन हों, विज्ञान और प्रोद्योगिकी रहन-सहन व विचारों के ढंग को निर्धारित करते हों, वहाँ कविता को कोई व्यक्ति पर ऐसे प्रीतिकर शौक के रूप में देखेगा जिसे शालीन लोग उस समय लिखते हैं जब उनके पास ‘मनोरंजन का और कोई तरीका’ नहीं होता। थोड़ी गहनता से देखने पर भी हमारी सोच नहीं बदलेगी और सभ्यता के आगे बढ़ते कदमों पर कविता का स्पष्ट प्रतिविम्ब हमें मिलेगा।
मानव सभ्यता का समृद्ध ढाँचा विभिन्न रंगों और छायाओं के बहुत से तन्तुओं से बना हुआ है। मनुष्य के रचनात्मक आवेश ने असंख्य विधाओं, ज्ञान की शाखाओं और क्रिया-कलाप के क्षेत्रों में खुद को प्रमाणित किया है। कवि की भूमिका, भले ही आज हमारी निगाहों में अस्पष्ट हो गई है, मानव इतिहास में गहरी सार्थकता रखती रही है।
कविता का काम हमारी संवेदनशीलता को परिष्कृत करना और दृष्टि समृद्ध बनाना है। हालाँकि विज्ञान, प्रौद्योगिकी, कृषि और उद्योग के क्षेत्रों में हुई प्रगति ने मनुष्य की भौतिक जरूरतों को पूरा किया है, फिर भी कविता ने उसके भावात्मक और आध्यात्मिक प्रवृत्तियों के सम्बन्ध में उल्लेखनीय भूमिका निभाई है। कविता, जैसा कि हैजलिट् ने कहा है, कल्पना और मनोभावों की भाषा है। यह एक सार्वभौमिक भाषा है जो प्रकृति से ही हृदय को झकझोरने वाली है। इस सार्वभौम भाषा को बोलने वाले कवियों जैसे होमर, शेक्सपियर, गेटे और कालिदास आदि का सभ्यता की वृद्धि में योगदान, मानव इतिहास का शानदार पक्ष है।
एक वस्तु जो सभ्यता को बचा सकती है वह है विश्व की जागरुकता का उद्धार करना। और यह कार्य कविता करती है।
जब सत्ता मानव की सोच का दायरा संकुचित करती है, तब कविता उसके अस्तित्व के समृद्धि एवं व्यापकता का स्मरण दिलाती है। जब सत्ता भ्रष्ट होती है, कविता उसे शुद्ध करती है। मानव अपने प्राथमिक आकर्षणों की माँग के प्रति भावना शून्य होने में समर्थ नहीं हो सकता क्योंकि ये आकर्षण खून में समाये होते हैं और इनका अस्तित्व काल की स्वतन्त्रता में होता है। यह आकलन कि ‘जैसे-जैसे सभ्यता विकसित होती है, कविता पतित होती है’ मनुष्य के असंतुलित दृष्टिकोण पर हमारा एक दुःखद वक्तव्य है।