Pradarshani ki Yatra “प्रदर्शनी की यात्रा” Complete Hindi Essay, Nibandh for Class 8, 9, 10, 12 and Graduation and other classes.
प्रदर्शनी की यात्रा
पिछले अक्तूबर में मैं प्रगति मैदान में ‘भारती अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार मेला’ देखने गया। यह ‘भारतीय व्यापार मेला प्राधिकरण’ द्वारा आयोजित किया गया। विश्व से और भारत से बहुत सारे लोग इस में भाग लेने आए हुए थे। लाखों भारतीय और विश्व के लोगों द्वारा देखा गया।
मेरे कुछ मित्र भी मेरे साथ गए थे। हम मेले में तीन बजे पहुँचे। टिकट की खिड़की पर लम्बी कतारें थीं। प्रवेश द्वार पर हमारी टिकट देखी गईं।
अन्दर हमने विभिन्न प्रदेशों और विश्व के विभिन्न देशों के हॉल देखे। हर हॉल बड़ा आकर्षित लग रहा था। भारत के लगभग हर प्रदेश का अलग हॉल था। हर औद्योगिक हॉल का अपने सामान के लिए अलग हॉल था, जो कि बहुत अच्छी तरह सजाया गया था। हमने वहाँ पर हस्तकला शिल्प, मशीनें और औज़ार, इलैक्ट्रनिक्स का सामान, खिलौने, चमड़े का काम, फर्नीचर के ऊपर लकड़ी का काम, कढ़ाई चित्रकारी, पत्थर और धातु पर देवी-देवताओं की मूर्तियाँ आदि देखे। वहाँ पर हस्तकला वस्त्र, खूबसूरत कढ़ाई वाली साड़ियाँ और बहुत सारे रेशमी कपड़े और बहुत सारी दूसरी वस्तुएँ देखीं। यह सब बिकाऊ थीं। बहुत से लोग इन वस्तुओं को खरीद रहे थे। सेल्स की लड़कियाँ कुछ मशीनों के गुणों और उनके कार्यों के बारे में लोगों को व्याख्या करती हुई दिखाई पड़ रही थीं।
अगले स्टॉल मशीनों के थे। तकरीबन सारी मशीनें नई थीं-अपनी धारा की सबसे नई। ये बहत नाजुक लग रहीं थीं, पर ये बहुत से लोगों का एक समय पर कार्य कर सकती थीं। ये मशीनें भारतीय उत्पाद थीं। हमें अपने भारत और इसके यन्त्रकारों (अभियन्ताओं) पर जिन्होंने इतनी बढ़िया मशीनें बनाई गर्व हो रहा था। तब हमने विभिन्न प्रकार के टेलिफोन कम्प्यूटर और सामान दूसरे बिजली से चलने वाले सिर्फ भारतीय अपितु दूसरे देशों से आए हुए थे। हमें उन्हें देख कर बहुत आनन्द आया। वे सभी रोचक और आधुनिक थे।
काफी चलने के बाद और देखने के बाद हम थक गए और भूख लग गई। हम भोजन वाले स्टॉल पर गए और अपने खाने के लिए सामान लिया। हमने दक्षिण भारतीय खाना लिया और उससे न्याय किया। अंधेरा हो रहा था। इसलिए हमने वापिस जाने का निर्णय किया। हमने व्यापार का पूरा आनन्द लिया जो कि ज्ञानप्रद और रोचक था। हमने कुछ सामान भी खरीदा था। इस में हमें गर्व करने वाले पल भी मिले।