Kalam Ke Mazdoor, “कलम के मज़दूर” Hindi motivational moral story of “Munshi Premchand” for students of Class 8, 9, 10, 12.
कलम के मज़दूर
Kalam Ke Mazdoor
बहुत से लेखकों के विषय में प्रसिद्ध है कि वे कागज़ विशेष पर लिखते हैं, फलां मूड में लिखते हैं, तो फलां किस्म की कलम से लिखते हैं। मगर उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचन्द इस लिखावटी ताम-झाम से सर्वथा दूर थे।
एक बार किसी ने उनसे पूछा- “मुंशी जी, आप कैसे कागज़ और कैसे पेन से लिखते हैं। “
मुंशी जी ने यह सवाल सुनकर पहले तो जोरदार ठहाका लगाया, फिर बोले- “ऐसे कागज़ पर जनाब, जिस पर पहले से कुछ लिखा न हो। यानी कोरा हो और ऐसे पेन से जिसका निब टूटा न हो। “
फिर थोड़ी गंभीरता से बोले-“भाई जान ! ये सब चोचले हम जैसे कलम के मजदूरों के लिए नहीं हैं।” ऐसा सादा जीवन जीते थे मुंशी प्रेमचन्द। उस जमाने में भी निब चला करती थी। होल्डर में लगाकर वह उसी से लिखते थे, बीच-बीच में उसी से अपना दाँत भी कुरेदते जाते थे। जब वह लिखने बैठते तो उनके होठ स्याही से रंग जाते थे।