Hindi Moral Story, Essay “स्वर्ग और नरक” “Swarg aur Narak” of “Sant Hakuin” for students of Class 8, 9, 10, 12.
स्वर्ग और नरक
Swarg aur Narak
एक बार जापान के संत हाकुइन के पास एक सैनिक आया और उसने प्रश्न किया, “महाराज ! स्वर्ग और नरक अस्तित्व में है या केवल उनका हौवा बना दिया गया है?”
हाकुइन ने उसकी ओर आपादमस्तक देखकर पूछा, “तुम्हारा पेशा क्या है?”
“जी, मैं सिपाही हूँ।” उसने उत्तर दिया।
संत ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा, “क्या कहा, तुम सिपाही हो! मगर चेहरे से तो तुम कोई भिखारी मालूम पड़ते हो ! तुम्हें जिसने भर्ती किया है, वह निश्चय ही कोई अहमक होगा ।”
यह सुनते ही वह सैनिक आगबबूला हो गया और उसका हाथ तलवार की ओर गया। यह देख हाकुइन बोले, “अच्छा! तुम साथ में तलवार भी रखते हो! मगर इसकी धार पैनी नहीं मालूम पड़ती, फिर इससे मेरा सिर कैसे उड़ा पाओगे ?”
इन शब्दों ने उसकी क्रोधाग्नि में घी का काम किया। उसने झट से म्यान से तलवार खींच ली। तब संत बोले, “लो, नरक के द्वार खुल गए !” संत के ये शब्द उसके कानों तक पहुँच भी न पाए थे कि उसने महसूस किया कि सामने तलवार देखकर भी यह साधु शांत बैठा हुआ है। उसकी क्रोधाग्नि एकदम शांत हो गई। उनका आत्मसंयम देख उसने तलवार म्यान में रख दी। तब संत बोले, “लो, अब स्वर्ग के द्वार खुल गए!”