Hindi Moral Story, Essay “दिव्य शिक्षा” “Divya Shiksha” for students of Class 8, 9, 10, 12.
दिव्य शिक्षा
Divya Shiksha
मिस्र के संत जू-उल-नून एक बार वुजू करने के लिए एक नहर के पास गए। सामने से एक सुंदर स्त्री आ रही थी। वे वुजू करते-करते उसकी ओर देखने लगे। जब वह पास आई, तो उन्होंने महसूस किया कि वह स्त्री उनसे कुछ कहना चाहती है। आखिर उन्होंने पूछ ही लिया, “क्या तुम कुछ कहना चाहती हो?”
“हाँ! जू-उल-नून!” वह स्त्री बोली, “मैं जब इधर आ रही थी, तब दूर से मैंने आपको कोई दीवाना समझा था, मगर नजदीक आने पर लगा कि आप कोई आलम (विद्वान्) हैं, मगर नजदीक आने पर आप कोई आरिफ (ब्रह्मज्ञानी) लगे, मगर अब निश्चय हो गया है कि आप इन तीनों में से कोई नहीं।”
“तुमने ऐसा निश्चय किस आधार पर किया है, सुंदरी?” जू-उल-नून ने साश्चर्य पूछा। वह स्त्री बोली, “बात सीधी-सी है। अगर दीवाने होते, तो तुम वुजू न करते; आलम होते, तो मुझ-जैसी पराई स्त्री की ओर आँख भी न उठाते; आरिफ होते, तो अल्लाह का ही ध्यान रहता और मुझसे बात तक न की होती।”
यह सुनते ही जू-उल-नून का सिर आत्मग्लानि से झुक गया। उन्हें अब सीख मिल गई थी कि खुदा की इबादत करते समय एकचित्त रहना चाहिए और मन को इधर-उधर भटकने नहीं देना चाहिए।