Hindi Moral Story, Essay “झूठे रिश्ते” “Jhuthe Rishte” of “Saint Francis” for students of Class 8, 9, 10, 12.
झूठे रिश्ते
Jhuthe Rishte
एक बार इटली के संत फ्रांसिस के पास एक सत्संगी युवक आया। संत ने उससे हाल-चाल पूछा, तो उसने स्वयं को अत्यंत सुखी बताया ! वह बोला, “मुझे अपने परिवार के सभी सदस्यों पर बड़ा गर्व है। उनके व्यवहार से मैं संतुष्ट हूँ।”
संत बोले, “तुम्हें अपने परिवार के प्रति ऐसी धारणा नहीं बनानी चाहिए। इस दुनिया में अपना कोई नहीं होता। जहाँ तक माँ-बाप की सेवा और पत्नी-बच्चों के पालन-पोषण का संबंध है, उसे तो कर्तव्य समझकर ही करना चाहिए। उनके प्रति मोह या आसक्ति रखना उचित नहीं ।”
युवक को बात जँची नहीं, बोला, “आपको विश्वास नहीं कि मेरे परिवार के लोग मुझ पर अत्यधिक स्नेह करते हैं। यदि एक दिन घर न जाऊँ, तो उनकी भूख-प्यास उड़ जाती है और नींद हराम हो जाती है और पत्नी तो मेरे बिना जीवित ही नहीं रह सकती।”
संत बोले, “तुम्हें प्राणायाम तो आता ही है। कल सुबह उठने के बजाय प्राणवायु मस्तक में खींचकर निश्चेष्ट पड़े रहना। मैं आकर सब सँभाल लूँगा।”
दूसरे दिन युवक ने वैसा ही किया। उसे निर्जीव जान घर के सब लोग विलाप करने लगे। इतने में फ्रांसिस वहाँ पहुँचे। सब लोग उनके चरणों पर गिर पड़े। वे उनसे बोले, “आप लोग शोक मत करें। मैं मंत्र के बल पर इसे जिलाने का प्रयत्न करूँगा, मगर इसके लिए कटोरी भर पानी किसी को पीना पड़ेगा। उस पानी में ऐसी शक्ति होगी कि पीने वाला तो मर जाएगा, मगर उसके बदले यह युवक जी उठेगा।”
यह सुनते ही सब एक-दूसरे का मुँह देखने लगे। पानी पीने के लिए किसी को आगे न आते देख संत बोले, “तब मैं ही पीता हूँ।” इस पर सब बोल उठे, “महाराज! आप धन्य हैं! सचमुच संत-महात्मा परोपकार के लिए ही जन्म लेते हैं। आपके लिए जीवन-मृत्यु एक समान हैं। यदि आप जिला सकें, तो बड़ी कृपा होगी।”
युवक को संत के कथन की प्रतीति हो गई थी। प्राणायाम समाप्त कर वह उठ बैठा और बोला, “महाराज, आप पानी पीने का कष्ट न करें। सांसारिक-संबंध क्षणिक और मिथ्या होते हैं, यह मैं जान गया हूँ। आपने सचमुच मुझे नया जीवन दिया है-प्रबुद्ध जीवन, जिससे एक नयी बात मुझे मालूम हो गई है।”