Hindi Moral Story, Essay “जिस तन लागे, सो तन जाने” “Jis tan lago, So tan jane” of “Sant Namdev” for students of Class 8, 9, 10, 12.
जिस तन लागे, सो तन जाने
Jis tan lago, So tan jane
“अरे नामू! तेरी धोती में तो खून लगा हुआ है! कहीं चोट तो नहीं लगी?” माँ ने बेटे से पूछा ।
“हाँ, माँ! मैंने अपने पैर पर कुल्हाड़ी से वार किया है।” नामू ने उत्तर दिया। माँ ने धोती सरकायी तो पाया कि बेटे के पैर की चमड़ी छिली हुई है; बोली, “मूर्ख! कहीं कोई अपने ही पैर पर घाव करता है? क्या तुम्हें इससे वेदना नहीं हो रही? अरे, यह घाव पक जाए, तो तेरा पैर काटने की नौबत आ सकती है?”
“तब तो पेड़ पर कुल्हाड़ी का वार करने से उसे भी वेदना होती होगी, माँ! उस दिन तूने मुझसे पलास के पेड़ से छाल मँगाई थी, तब मैंने कुल्हाड़ी से ही छीलकर छाल निकाली थी। मैंने उसी समय सोचा था कि अपने पैर को छीलकर तो देखूँ, तो मालूम हो जाएगा कि पेड़ को कैसा लगा होगा। बस यही देखने के लिए मैंने वार किया है, माँ!” बेटे के ये शब्द सुनते ही माँ रो पड़ी, बोली, “बेटा, निश्चय ही आगे चलकर महान् बनेगा। सच है कि पेड़ और दूसरे जीव-जंतुओं में भी प्राण होते हैं और उन पर वार करने से हमारी जैसी ही वेदना उन्हें भी होती है, बेटा!”
बड़ा होने पर यही नामू संत नामदेव के नाम से विख्यात हुआ ।