Hindi Moral Story, Essay “जिन खोज, तिन पाइयाँ” “Jin Khoi, Tin Paiya” of “Sant Dadu” for students of Class 8, 9, 10, 12.
जिन खोज, तिन पाइयाँ
Jin Khoi, Tin Paiya
एक बार बालक दादू अपने मित्रों के साथ खेल रहा था कि एक साधु वहाँ आया और उसने बालक दादू के मुख पर पान की पीक डाल दी। अबोध बालक की समझ में कुछ नहीं आया। बाद में संसार के प्रति उसे विरक्ति हो गई। वह संसार की अनित्यता और नश्वरता का विचार कर घर त्यागने की बात सोचता, पर उसे अमल में न ला पाता ।
जब दादू अठारह वर्ष के हुए, तो वही बूढ़ा साधु फिर उनके पास आया। उसे देखते ही दादू को लगा कि इसे उन्होंने कहीं देखा है। देखा ही नहीं, इससे भेंट भी हुई है। और उन्हें याद हो आया कि यह तो वही साधु है, जिसने मेरे मुँह में पीक डाली थी। वे तुरंत साधु के चरणों पर गिर पड़े और उनकी चरणधूलि माथे पर चढ़ा ली। इस पर साधु बोला, “मैं तो तुम्हारे पास भिक्षा माँगने क्षण भर के लिए आया था और तुम हो कि मेरे प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त कर रहे हो, लेकिन प्रभु तो तुम्हारी युग-युग से प्रतीक्षा कर रहे हैं और तुम्हारा उधर ध्यान ही नहीं है। वे ही तो तुम्हें भवसागर पार करा सकते हैं। यदि तुम ईश्वरोन्मुख होगे, तो तुम्हारे जन्म-जन्म के बंधन कट जाएँगे।”
“ईश्वर के पास तो मैं जा नहीं सकता। मैं तो आपको ही सर्वस्व मानूँगा। मैं आपकी ही प्रतीक्षा कर रहा था। संसार-सागर में मैं घिर गया आप ही मेरा उद्धार करें और मुझे उबार लें।” दादू बोले। साधु ने उन्हें गले लगा लिया और दीक्षा देकर परम ज्ञान की ज्योति उनके हृदय में फैला दी । ज्ञान मिलते ही वे ‘संत’ हो गए। कहा जाता है कि वह पुत्र कमाल थे। उपर्युक्त घटना की दादू ने निम्न दोहे साधु कबीर के में स्वीकृति दी है-
गैब माहि गुरुदेव मिला, पाया हम परसाद ।
मस्तक मेरे कर धन्या, पाया अगम अगाध ॥