Hindi Moral Story, Essay “आत्मनिर्भरता” “Atmanirbharta” for students of Class 8, 9, 10, 12.
आत्मनिर्भरता
Atmanirbharta
भारत के एक प्रसिद्ध संन्यासी यूरोप का दौरा कर रहे थे। एक दिन वे एक फिटन किराए पर लेकर डचेस द पीमा नामक एक फ्रांसीसी महिला के साथ पैरिस के बाहर एक गाँव में जा रहे थे कि रास्ते में कोचवान ने फिटन एक स्थान पर रोकी। सामने से एक नौकरानी कुछ बच्चों को लिये जा रही थी। कोचवान ने उन बच्चों से, जो किसी ऊँचे घराने के मालूम होते थे, लाड़-दुलार किया और वापस आकर फिटन चलाने लगा ।
अमीर बच्चें से इतनी अधिक घनिष्ठता देख डचेस को बड़ा कुतूहल हुआ और उसने कोचवान से पूछा, “ये बच्चे किसके हैं?”
कोचवान ने उत्साहित स्वर में जवाब दिया, “मेरे ही हैं। आपने. … बैंक का नाम तो सुना ही होगा। वह बैंक मेरी थी। घाटा होने के कारण मैं उसे चलाने में असमर्थ था । मैं नहीं चाहता था कि दूसरों पर भारस्वरूप बनकर जीवन बिताऊँ, इसलिए बैंक को बंद कर मैंने यह पेशा अपनाया है।”
वह आगे बोला, “मैंने गाँव में एक मकान किराए पर लिया है, जहाँ बीवी-बच्चों के साथ रहता हूँ। घर में एक नौकरानी भी है, जो बच्चों की देखभाल करती है। फिटन चलाने से जो आय होती है, उससे घर का गुजारा करता हूँ। कुछ लेनदारों से रकम वसूल करनी है, वह मिलने पर फिर से बैंक चालू करने की इच्छा है।”
स्वामीजी उसकी बातों से बड़े प्रभावित हुए। वे उससे बोले, “यह कोचवान सच्चा वेदांती है, क्योंकि इसने वेदांत के भाव को जीवन में उतारने का प्रयास किया है। इसकी आर्थिक स्थिति अच्छी थी, मगर दैव ने इसका साथ नहीं दिया। फिर भी इसने हिम्मत नहीं हारी, इस कारण इसे निश्चित रूप से सफलता मिलेगी।”