Hindi Moral Story, Essay “अपराधो हि दंडनीयम्” “Apradho hi Dandniyam” of “Arjuna” for students of Class 8, 9, 10, 12.
अपराधो हि दंडनीयम्
Apradho hi Dandniyam
पाँचों पांडवों की पत्नी एक ही (द्रौपदी) होने के कारण उन्होंने आपस में यह नियम बना लिया था कि जब वह उनमें से किसी एक के साथ हो, तो अन्य चार भाइयों में से कोई भी वहाँ न जाए, अन्यथा नियम-भंग करने के कारण उसे बारह वर्ष का वनवास भोगना होगा।
एक बार एक ब्राह्मण अर्जुन के पास आया और बोला कि एक चोर उसकी गौएँ चुराकर ले जा रहा है। तब उसकी सहायता करने की इच्छा से अर्जुन शस्त्रागार की ओर रवाना हुआ, पर शस्त्रागर के मार्ग में युधिष्ठिर का शयनकक्ष था और द्रौपदी भी तब वहीं थी। अर्जुन थोड़ा ठिठका, पर शस्त्र लाना भी आवश्यक था। अतः वह शयनकक्ष से होकर शस्त्रागार गया और वहाँ से शस्त्र लाकर, चोर से गौएँ छुड़ाकर ब्राह्मण को वापस कीं, किन्तु मन-ही-मन उसे पश्चात्ताप हो रहा था कि उसने युधिष्ठिर का एकांतवास भंग किया है। अंत में वह उनके पास गया और उन्हें सारी बातें सुनाकर उसने बारह वर्ष के वनवास के लिए माँगी।
इस पर धर्मराज बोले, “अर्जुन, अपने से बड़ों के एकांत में छोटे द्वारा जाने पर नियम-भंग नहीं माना जाएगा, अपितु वह क्षम्य होगा। उसे अपराध की संज्ञा नहीं दी जा सकती। हाँ, अपने से छोटे का एकांतवास भंग करना दंडनीय माना जाएगा।”
बात अर्जुन को जँची नहीं। बोला, धर्मराज! हमें यही सीख मिली है कि धर्म का पालन करते समय अपनी इच्छा या स्वार्थ के आधार पर अर्थ नहीं लगाना चाहिए। मैं अपने गांडीव की शपथ लेकर कहता हूँ कि मैं सत्य और धर्म से डिगूँगा नहीं। मैंने नियम भंग किया है, इसलिए मुझे दंड मिलना चाहिए। आप मेरे प्रति ममत्व त्यागकर मुझे वनवास की आज्ञा दें।”
धर्मपालन के प्रति अर्जुन की निष्ठा और हठ देख युधिष्ठिर को अनुमति देनी पड़ी।