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Hindi Essay/Speech on “Vinoba Bhave” , ”विनोबा भावे” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

विनोबा भावे

Vinoba Bhave

        महाराष्ट्र प्रान्त का भारतीय स्वाधीनता संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। तत्कालीन स्वतन्त्रता सेनानियों में अधिकाश्ंा महाराष्ट्र के ही थे। शिवाजी, बालगंगाधर तिलक, गोपालकृष्ण गोखले इत्यादि महाराष्ट्र के ही थे। इसी श्रेणी में एक विशुद्ध समाज सेवक पैदा हुआ, जो गीता के निष्काम कर्मयोग के सिद्धान्त पर जीने वाला था और भारत में भूदान आन्दोलन का जनक था, जिसका नाम था आचार्य विनोबा भावे। इनका जन्म 11 सितम्बर 1895 ई0 में महाराष्ट्र प्रान्त के रत्नगिरि जिले में एक गांव में हुआ था। इनके पिता नरहरि भावे तथा माता रखूबाई थीं। इनका बचपन का नाम विनायक नरहरि भावे था। गांधीजी ने इन्हें विनोबा के नाम से पुकारा और तभी से ये विनाबा भावे के नाम से प्रसिद्ध हो गये। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा गांव में और माध्यमिक शिक्षा बड़ौदा में हुई। सन् 1914 ई0 में मैट्रिक की परीक्षा पासकर ये काॅलेज में दाखिल हुए। इनका अन्तर्मन सदा अध्यात्म में डूबा रहता था। फलतः इन्होेंने काॅलेज की सारी डिग्रियां जला दी और सन्त-समागम के लिए वाराणसी आ गये। गीता, उपनिषद्, मनुस्मृति तथा अन्य पुस्तकों का इन्होंने गहन अध्ययन किया था।

        विनोबा गांधीजी के विचारों से बहुत प्रभावित हुए। फलतः इन्होंने आजीवन ब्रह्मचर्य तथा देश सेवा का व्रत लिया। गांधीजी को सहयोग देने के लिए ये साबरमती आश्रम मंे रहने लगे। यहां ये खाना और अतिथियों का सेवा-सत्कार करते। स्वागत देखकर गांधीजी दम्भ रहते थे। इनके सन्त चरित्र से प्रभावित होकर गांधीजी इन्हें प्यार से ’सन्त विनोबा’ भी कहने लगे। इस तरह विनोबा-विनोबा भावे और सन्त विनोबा-इन दो नामों से पुकारे जाने लग। कई बार इन्हें जेल की सजा दी गयी। जेल में ही इन्होंने गीता प्रवचन नामक पुस्तक लिख डाली। गीता प्रवचन विनोबाजी की एक उत्कृष्ट रचना मानी जाती है। इसके अनुवाद हिन्दी, सिन्धी, मलयालम, तमिल, उड़िया, बंगाल इत्यादि भाषाओं मंे हुए। इससे इस पुस्तक की महत्ता प्रतिपादित होती है।

        विनोबा पद के आकांक्षी नहीं थे। इसलिए स्वतन्त्रता-प्राप्ति के बाद भी ये सत्ता से नहीं जुड़ सके। इन्होंने अपना एक स्वतन्त्र आन्दोलन चलाया, जिसे भूदान-आन्दोलन कहा जाता है। इनके विचार थे-’’जल और हवा के समान भूमि पर भी सबका समान अधिकार होना चाहिए।’’ इनका नारा था-सर्वे भूमि गोपाल की। फलतः ये गांवों में घूम-घूमकर गरीबों के लिए जमीन मांगते थे-

                ’सुरम्य शान्ति के लिए जमीन दो, जमीन दो,

                महान् क्रान्ति के लिए जमीन दो, जमीन दो।’

                                                                        (दिनकर)

        आगे चलकर इन्होंने भूटान के साथ श्रमदान, जीवनदान और सम्पतिदान को भी शामिल कर लिया। इन सबके सहारे विनोबाजी समाज से ईष्र्या एवं द्वेष को भगाकर भारत में राम राज्य की स्थापना करना चाहते थे। इससे समाज में एक वैचारिक क्रान्ति आयी। फलस्वरूप, भूमि के चलते होने वाले खूनी संघर्षों मंे कमी आयी। जीवन के अन्तिम दिनों में विनोबाजी पवनार आश्रम में रहने लगे। इनका हृदय इतना विशाल था कि ये सम्पूर्ण विश्व को एक कुटुम्ब की भांति अनुभव करते थे। फलतः इन्होंने जय जगत का नारा दिया। भूदान के इस मसीहा, सन्त हृदय विनोबा भावे ने 15 नवम्बर 1982 ई0 को सदा के लिए आंखें मूंद ली। सन्त विनोबा भावे का सम्पूर्ण जीवन मानवता की सेवा में लगा रहा। सन्त का अविर्भाव तो इसीलिए होता ही है-

                        ’वृक्ष कबहुँ नहिं फल चखै, नदी न संचे नीर।

                        परमारथ के कारणे, साधु न धरा शरीर।।’

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