Hindi Essay/Speech on “Lokmanya Balgangadhar Tilak” , ”लोकमान्य बालगंगाधर तिलक” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.
लोकमान्य बालगंगाधर तिलक
Lokmanya Balgangadhar Tilak
ललाट पर तिलक की भांति भारतीय इतिहास में शोभायमान एवं ’स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है’ का सिंहनाद करने वाले लोकमान्य तिलक बालगंगाधर तिलक का जन्म 13 जुलाई 1856 ई0 को महाराष्ट्र प्रान्तार्गत रत्नगिरि जिले में हुआ था। इनके पिता गंगाधरपंत तथा माता पार्वती बाई थी। 10 वर्ष की अवस्था में ही इन्हें माता का वियोग मिला। लेकिन पिता ने इन्हें इतने लाड-प्यार से पाला कि मातृ वियोग का अनुभव हुआ ही नहीं।
बालगंगाधर तिलक की प्रारम्भिक शिक्षा घर पर ही हुई। पिता संस्कृत के शिक्षक थे, अतः संस्कृत भाषा से इनका लगाव हो गया। संस्कृत के अलावा गणित भी इनका रूचिकर विषय था। सन् 1876 ई0 में वकालत की डिग्री प्राप्त कर इन्होंने काॅलेज की शिक्षा पूरी की। महाविद्यालय की शिक्षा प्राप्त कर वकालत से धन बटोरने की अपेक्षा एक विद्यालय खोलकर देशवासियों को शिक्षित करना इन्हें अधिक पसन्द आया। फलतः इन्होंने अपने कुछ मित्रों के साथ एक विद्यालय की स्थापना कर इसमें भी शिक्षण कार्य किया।
स्कूल में शिक्षण कार्य करते हुए इन्होंने ’मराठा एवं केशरी’ नामक पत्रिकाएं भी निकालीं। इन पत्रिकाओं के माध्यम से पराधीन भारतीयों में स्वतन्त्रता की भावना भरने की कोशिश की गयी एवं अंग्रेजी सत्ता के विरूद्ध आग उगली गयी। अब बालगंगाधर तिलक अंग्रेजों की आंखों की किरकिरी हो गये। फलतः इन्हें छः वर्षों के लिए काला पानी की सजा देकर बार्मा की माण्डले जेल में भेज दिया गया। सारा देश शोकसागर में डूब गया। सच है- ’’सेवा का मार्ग पुष्प-शय्या नहीं है।’’
माण्डले की काल कोठरी से तिलक भयभीत नहीं हुए। बर्मा के एकान्तवास को आध्यात्मिक चिन्तन में लगाकर इन्होंने ’गीता रहस्य’ नामक ग्रन्थ लिखा। ’गीता रहस्य’ बींसवी सदी का सर्वश्रेष्ठ दार्शनिक ग्रन्थ माना गया है। इसमें कर्मयोग की प्रधानता दिखलायी गयी है। यह गीता के तत्वों का ही पुनराख्यान है।
माण्डले कारावास की अवधि समाप्त कर तिलकजीं के स्वदेश आगमन पर सर्वत्र दीपावली मनायी गयी। लाला लाजपतराय के शब्दों में-’’ऐसा विराट् उल्लास-पर्व भारतभूमि पर शायद ही कभी मनाया गया होगा।’’ सारा देश एक हर्षोलोड़ित समुद्र की भांति उनके स्वागत के लिए उमड़ पड़ा। अब तो तिलकजी ने स्वतन्त्रता की लड़ाई की दिशा ही बदल दी। इनका कहना था-’’जिस तरह से रोटी मांगने पर नहीं मिलती, उसी तरह भीख मांगने से स्वतन्त्रता नहीं मिल सकती।’’ स्वतन्त्रता तो दबाव और शक्ति से ही मिलेगी। तिलकजी ने जयघोष किया-’’स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है और हम इसे लेकर रहेंगे।’’ फलतः, इन्होंने कांग्रेस में गरम दल की स्थापना की। ये सर्वत्र घूम-घामकर देश-भक्ति की भावना को जगाने लगे और देश-भक्ति के लिए एकजुट होकर इन्होंने अंग्रेजों के विरूद्ध संघर्ष का आहृान किया।
तिलकजी में देश-प्रेम के साथ-साथ जनसेवा की भी भावना थी। पुणे में प्लेग का प्रकोप होने पर ये शहर छोड़कर भागे नहीं, बल्कि प्लेगग्रसित लोगों की सेवा में अपना तन-मन-धन सर्वत्र लगा दिया। देश में सांस्कृतिक चेतना जागृत करने के लिए इन्होंने गणपति महोत्सव एवं जयन्ती मनाने की परम्परा शुरू की।
सन् 1910 ई0 की पहली अगस्त को जब असहयोग आन्दोलन का प्रारम्भ होने वाला था, उसी दिन बम्बई में हमारे सर्वप्रिय नेता लोकमान्य बालगंगाधर तिलक का स्वर्गवास हो गया। इनकी सादगी, कर्तव्यनिष्ठा, सच्चाई और जनसेवा हम सबके लिए सर्वदा अनुकरणीय बनी रहेगी। इनकी मृत्यु पर श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए गांधीजी ने पुण्य-स्मरण में लिखा था-रामायण के साथ जैसे राम, गीता के साथ जैसे कृष्ण जुड़े हुए हैं, वैसे ही स्वराज के साथ तिलक हमेशा जुड़े रहेंगे।