Hindi Essay, Paragraph, Speech on “Vishwa Shanti aur Bharat”, ”विश्व-शान्ति और भारत” Complete Hindi Anuched for Class 8, 9, 10, Class 12 and Graduation Classes
विश्व-शान्ति और भारत
Vishwa Shanti aur Bharat
निबंध संख्या :- 01
अपने मूल स्वभाव में भारत एक अध्यात्मवादी और शान्ति प्रिय देश रहा है। यह अलग बात है कि आज का भारतीय आधिकाधिक मौलिक साधनों को पाने के लिए आतुर हो और दीवाना बन कर अपनी मूल अध्यात्म चेतना से भटकता जा रहा है. उस से हर दिन दूर होता जा रहा है: पर जहाँ तक शान्तिप्रियता का प्रश्न है, हमारे विचार में अधिकतर वह आज भी बेकार के लड़ाई-झगड़ो में न पड़ कर सहज शान्ति से ही जीवन जीना चाहता है। यही वह मूल कारण है कि अपने आरम्भ काल से ही भारत शान्तिवादी और निरन्तर शान्ति बनाए रखने का आदी रहा है।
इस का यह तात्पर्य नहीं कि भारत ने हर प्रकार के अन्याय-अत्याचार को हमेशा सहा है। अपने अधिकारों पर डाका पड़ते देखकर भी उसकी रक्षा के लिए कुछ नहीं किया है। नहीं, ऐसी बात नहीं, शान्ति का अर्थ अन्याय-अत्याचार चुपचाप सह लेना यहाँ कभी भी नहीं लिया गया। इसी प्रकार शान्ति का अर्थ निष्क्रियता भी कभी नहीं माना या लगाया गया। इस का अर्थ और प्रयोजन जान-बूझ कर ऐसे कार्य न करना रहा है कि जिन से शान्ति-भंग होने का अन्देशा हो। दूसरों के किसी कार्य में बाधा पड़ती और कोई कार्य-हानि होती हो। जब हम कोई ऐसा कार्य ही नहीं करेंगे जो कि किसी को हानि पहुँचाने और उकसाने वाला हो. तो भला शान्ति भंग होगी ही क्यों ? हाँ, जब भी कभी किसी ने अन्याय-अत्याचार का मार्ग अपनाया है. हमारी शान्ति भंग करने का प्रयास किया है, हम पर अकारण-सकारण युद्ध थोपा है; तो हमने उसका मुँह तोड़ उत्तर दिया है। अंहिसा या शान्ति-रक्षा के नाम पर अपने शस्त्रों को जंग लगने या भोथरा कभी भी साबित नहीं दिया है। कभी अपनी राष्ट्रीय सीमाओं का अतिक्रमण कर दूसरों के राज्यों को हथियाने प्रयास भी नहीं किया इतिहास इस बात का गवाह है। हमारी सीमाएँ अतिक्रमित करने वाले को कभी बख्शा नहीं, इतिहास इस बात का भी गवाह है। आज स्वतंत्र भारत की तटस्थता की नीति, विदेश-नीति भी मुलत: उपर्युक्त तथ्यों बातों पर ही आधारित है। अगर भारत विश्व-शान्ति की रक्षा के लिए कुछ दे सकता है, भारत ने विश्व को यदि आज दिया है; तो वह यही सब ही है, हमारे कहने का मात्र यही आशय एवं प्रयोजन है।
भारत की सेनाएँ पहले भी आज भी जब भी कभी अपनी सीमाओं से बाहर गई है या तो आक्रमणकारी को सबक सिखाने के लिए गई हैं या फिर कहीं, किन्ही युद्धग्रस्त देशों में शान्ति स्थापनार्थ ही गई हैं, फिर चाहे उन्हें इस का कितना भी खमियाजा क्यों न भुगतना पड़ा हो। स्वतंत्रता-प्राप्ति के तत्काल युद्धग्रस्त कोरिया में बंदी सैनिकों के आदान-प्रदान के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ के आदेश एवं नेतृत्व में हमारी सेना को वहाँ जाना पड़ा था। तब हमारे सैनिक वहाँ ‘शान्ति सैनिक’ कहलाये थे और अपनी कार्य क्षम के कारण हर प्रकार से यशस्वी बन, वहाँ के दोनों पक्षों और संयुक्त राष्ट्र संघ का विश्वास अर्जित कर के लौटे थे। उसके बाद भी हमारी सैन्य टुकड़ियाँ शान्ति कार्या लिए अनेक देशों में जाती रहीं। आज भी सोमालिया, रवाण्डा आदि में विद्यमान हैं। हालांकि वहाँ के आतंकवादियों के हाथों कई भारतीय सैनिक और डॉक्टर मारे भी जा चुके है फिर भी उन के मन विचलित नहीं हैं। श्रीलंका के राष्ट्रपति के आग्रह पर वहाँ शान्ति-सेना भेजने के बदले भारत अपने एक युवक प्रधानमंत्री तक की जान गवा चुका है, फिर भी विश्व में शांति की रक्षा और शान्ति क्षेत्रों का विस्तार करने की अपनी बुनियादी नीति-रीति पर भारत पूर्णतया प्रतिबद्ध है।
यों भारत की विदेश नीतियों का आधार गुट-निरपेक्षता या तटस्थता है। पर उस तटस्थता का अर्थ निष्क्रियता नहीं है, यह ऊपर के उदाहरणों से स्पष्ट हो जाता है। तटस्थ नीति अपनाते हुए भी भारत इस बात के लिए प्रतिबद्ध है कि विश्व में शान्ति-रक्षा-हित जहाँ भी आवश्यकता होगी, संकेत पाते ही वहाँ वह उपस्थित रहेगा। इस के अतिरिक्त भी अब तक भारत अपने अनुभव एवं व्यवहार के आधार पर शान्ति-रक्षा और स्थापना के लिए विश्व को बहुत कुछ दे चुका है। सत्य, अहिंसा, प्रेम, भाईचारा आदि भारत द्वारा दिखाए गए ऐसे रास्ते हैं, यदि विश्व के सभी देश इन रास्तों पर चलना आरम्भ कर दें तो युद्धों के होने और शान्ति के समाप्त होने की आवश्यकता ही नहीं रह जाएगी। विश्व शान्ति स्थापना की दिशा में भारत ने संसार के लिए एक अन्य मार्ग भी प्रशस्त किया है। वह है बातचीत का मार्ग। यदि कहीं पर शान्ति भंग हो जाने का कोई कारण उपस्थित भी हो जाता है, तो शस्त्र बल से लड़कर नहीं बातचीत की मेज पर बैठ कर चाय की । चुस्कियाँ लेते हुए उस का समाधान खोजा जा सकता है।
आज विश्व निश्चय ही बारूद के ढेर पर खड़ा है। कोई सिरफिरा राष्ट्र नेता कभी भी बारूद के उस ढेर को पलीता लगाने की मूर्खता कर सकता है। सदियों के अनुसंधानों और परिश्रम से बनाई हमारी दुनिया का नाश देखते-ही-देखते हमारी आँखों के सामने ही हो सकता है। उससे बचाव के उपाय वही हो सकते हैं कि जिन पर भारत आरम्भ से ही चलता आ रहा है। वह है अध्यात्म भावना को प्रश्रय देना। सत्य, प्रेम, अहिंसा, भाईचारे, और पारस्परिक सहयोग के मार्ग पर चलना। किसी समस्या के खड़ी हो जाने पर भी बातचीत द्वारा और उसे सुलझाने का प्रयास करना, न कि आतंकवाद फैला और शस्त्र उठा कर। भारत द्वारा अपनाए और सुलझाए गए इन्हीं रास्तों पर चल कर विश्व-शान्ति की रक्षा हो सकती है, अन्य उपाय नहीं।
निबंध संख्या :- 02
विश्व शांति और भारत
आज विश्व के सामने सबसे बड़ी चुनौती है-शांति कैसे हो ? आज विश्व शस्त्रों की होड़ में अंधा होकर अपनी मृत्यु का समान इकट्ठा कर चुका है। द्वितीय महायुद्ध में अमेरिका द्वारा पाए गए परमाणु बम ने जापान के दो नगरों नागासांकी और हिरोशिमा को अग्नि कुंड बना कर रख दिया था। इन दोनों नगरों के निवासियों की उस परमाणु विस्फोट में चिन्द – चिन्द उड़ गई थी। यह भी ऐतिहासिक सत्य है। कि वह बम धरती पर न फट कर आकाश मण्डल में ही फट गया था। यदि धरती पर ही फट गया होता तो न जाने जापान की क्या दुर्दशा होती। आज दुर्भाग्य से उस परमाणु बम से भी सैकड़ों गुणा शक्तिशाली बम बनाये जा चुके हैं। वैज्ञानिक सर्वेक्षण के अनुसार आज सारे विश्व के पास इतनी विस्फोटक शक्ति है कि वह सारी धरती को पन्द्रह बार समूल नष्ट कर सकता है। आश्चर्य का विषय है कि अब भी मनुष्य अपनी मृत्यु समान को और अधिक इकट्ठा करता चला आ रहा है। ‘विनाश काले विपरीत बुद्धि’ वाली कहावत सिद्ध हो रही है।
भारत प्रारम्भ से ही शान्ति प्रिय देश रहा है। उसने कभी कोई ऐसा कार्य नहीं किया, जिससे विश्व भर की शान्ति भंग हो। भारत ने तो आक्रमणकारियों को भी गले से लगाया है। जयशंकर प्रसाद जी ने सुन्दर शब्दों में कहा है-
विजय केवल लोहे की नहीं, धर्म की रही फत परधूम
भिक्षु होकर रहते सम्राट, दया दिखाते घर-धरत्धूम।
यहाँ के राजाओं ने अत्याचार, दमन और संघर्ष का रास्ता छोड़कर भागे और तपस्या का रास्ता अपनाया है। बुद्ध, महावीर से लेकर, गाँधी तक भारत गौरवशाली रहा। हमने आजादी की लड़ाई में भी अहिंसा का मार्ग अपनाया। हमारी सभी प्रार्थनाएं ‘ॐ विश्वानि देव’ से शुरू होकर ‘ॐ शान्ति शान्ति’, पर समाप्त हो जाती है। भारत की धरती पर जन्म सभी धर्मों ने शान्ति से जीने की सीख दी है। बौद्ध और जैन धर्म तो मूलतः अहिंसात्मक हैं। भारत सदा से ‘वसुदैव कुटुम्बकम्’ की भावना को बल देता रहा है। भारतीय सांस्कृति की मूल भावना को वाणी देते हुए जयशंकर प्रसाद कहते हैं-
औरों को हँसते देखो मनु,
हँसो और सुख पाओ ।
अपने सुख को विस्तृत कर लो,
सबको सुखी बनाओ ॥
इसी विश्व मानवतावाद और ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ की भावना के कारण भारत विश्व शांति का प्रबल समर्थक रहा है।
शांति बनाने का सबसे उत्तम और प्रभावशाली उपाय है-स्वयं शान्त बने रहना। किसी को किसी भी उत्तेजक समस्या पर अहिंसात्मक रूख अपनाना। सरदार पटेल का कहना है-‘लोहा कितना भी गर्म हो जाए, परन्तु लोहार का हथौड़ा ठण्डा रहना चाहिए।’ इस दृष्टि से भारत के प्रयास स्तुत्य है। भारत ने कभी भी जानबूझ कर विश्व शांति को भंग करने का प्रयास नहीं किया। उल्टे, जहाँ भी पड़ोसी देशों से टकराव हुआ, भारत ने शांति समझौता की।
जब आधुनिक विश्व में अमेरिका और रूस जैसे देश विरोधी पलड़ों में बंट कर परस्पर कट-मरने को जागृत हो रहा था, तब भारत ने विश्व को ‘गुटनिरपेक्षता” की नई नीति दी। भारत ने स्पष्ट घोषणा की कि हम अमेरिका या रूस के पक्षधर बने हुए विश्व युद्ध की आग में नहीं डालेंगे, बल्कि एक तृतीय विश्व का निर्माण करेंगे, जो इन गुटों से अलग रहकर शांति स्थापित करने का प्रयास होगा। भारत ऐसे देशों का अगुआ बना, जो किसी भी गुट की तरफ नहीं थे। सौभाग्य से वह गुटनिरपेक्ष मण्डल निरन्तर विस्तृत होता जा रहा है। यह भारत की वाणी का प्रभाव है। कि विश्व अपने विनाश को सोच कर सुरक्षा का उपाय सोचने लगा है।
भारत ने निःशास्त्रीकरण की नीति को जोर-शोर से प्रचार किया। भारत का कहना है कि विश्व में आज जितने भी परमाणु हथियार बना लिये गए हैं, उनसे मुक्ति प्राप्त की जाये या तो उन हथियारों को समुद्र में डाल दिया जाए या उन्हें निस्तेज कर दिया जाये। दूसरे, आजकल शास्त्रों की चल रही होड़ को भी रोका जाये। ऐसा नहीं कि भारत सिर्फ निःशस्त्रीकरण के भाषण ही देता है उसने व्यवहार में ऐसा करके भी दिखलाया है। भारत के स्थायी दुश्मन पाकिस्तान ने परमाणु बम बनाने की पूरी तैयारियां कर ली है। तब भी भारत यही सोचता है। कि परमाणु बम का निर्माण स्वदेश में नहीं किया जाये, क्योंकि इसका परिणाम है सर्वनाश। भारत में शान्ति होते हुए भी परमाणु बम के निर्माण को रोका है, अहिंसा का स्वदेश भारत के धर्म पर निर्धारित और व्यवहार के विश्व अहिंसा का अमूल्य संदेश दिया है। यद्यपि इस संदेश पर अनेक प्रश्न चिह्न लगाये जा सकते हैं, फिर भी इसका महत्त्व नगण्य नहीं है।
शांति स्थापित करने के लिए सबसे बड़ा आधार है-शक्ति। जिसके पास शक्ति होती है विश्व उसी की बात मानता है।
अमेरिका चाहे तो अपने धन, साधन या शस्त्रबल पर किसी भी समस्या का शांतिपूर्ण समाधान जुटा सकता है। परन्तु भारत स्वयं धर्म से लड़ा है। उसकी आर्थिक दशा दीन-हीन है। सामाजिक विकृतियों ने उसे जकड़ रखा है। पंजाब, कश्मीर, आसाम, आरक्षण जैसी आन्तरिक समस्याएं उसे घेरे रहती हैं। ऐसी स्थिति में वह कैसे विश्व शांति स्थापित कर सकता है। केवल नक्शे बनाने से महल नहीं बनते। उपाय सुझाने से हल नहीं निकलते, अधिवेशनों से जंग नहीं जीती जा सकती। उसके लिए चाहिए ठोस शक्ति और उसका सही प्रयोग। सच बात तो यह है कि भारत के सभी प्रयास मुंह जुबानी हैं। ऐसे उपाय करने के लिए उसके पास शक्ति का अभाव है।