Hindi Essay, Paragraph, Speech on “Varsha Ritu”, ”वर्षा ऋतु” Complete Hindi Anuched for Class 8, 9, 10, Class 12 and Graduation Classes
वर्षा ऋतु
Varsha Ritu
4 Best Hindi Essay on “Varsha Ritu”
निबंध नंबर :- 01
प्रचण्ड धूप से तपती हुई धरती आग उगलती है। लोग व्याकुल होकर आकाश की ओर देखने लगते हैं। पानी की कमी से सभी परेशान हो जाते हैं। ऐसे ही समय में पुरवाई चलने लगती है। आकाश पर बादल छा जाते हैं। प्यासी भूमि की प्यास बुझाने वर्षा ऋतु का आगमन होता है।
प्रथम वर्षा ही वातावरण को परिवर्तित कर देती है। प्रचण्ड धूप शीतलता में बदल जाती है। पशु-पक्षियों की प्यास बुझने लगती है। सूखे मुरझाये पेड़ पौधों में नव जीवन का संचार हो जाता है। तालाबों में पानी भरने के साथ साथ मेडकों की टर्र-टर्र सुनाई देने लगती है। तुलसी दास जी का वर्षावर्णन उनकी चौपाई – “दादुर धुनि चहुँ ओर सुहाई, वेद पढ़हि जनु बटु समुदायी।” द्वारा मुखरित हो उठता है।
सूखी धरती पर वर्षा की बूंदें पड़ते ही सोंधी सुगन्ध उठने लगती है। सूखे झाड़ झंखाड हो भरे होने लगते हैं।
वर्षा ऋतु का समय चार महीने का होता है। जुलाई से प्रारंभ होकर अक्टूबर मास तक बरसात रहती है। इन चार महीनों में बरसात से इतना पानी मिल जाता है कि वर्ष भर हम उसका उपयोग करते रहते हैं। खेतों में फसल बरसात पर ही निर्भर रहती है। यदि पर्याप्त मात्रा में वर्षा न हो तो हमें भोजन भी नहीं मिले।
वर्षाकाल में वर्षा का पानी हम कई प्रकार से संग्रहित करके रखते हैं। कुछ पानी भूमि में चला जाता है। इस पानी को हम कुओं के द्वारा वर्षभर प्राप्त करते रहते हैं। कुछ पानी तालाबों में इकट्ठा हो जाता है। पशु पक्षी इसका उपयोग करते हैं। खेतों की सिंचाई के लिए भी बड़े तालाबों का पानी उपयोग में आता है। कुछ पानी नदियों में प्रवाहित हो जाता है। नदियों के पानी को बाँध बना कर रोक लिया जाता है। एक नदी पर कई कई स्थानों पर बाँध बनाए जाते हैं। नहरों द्वारा यह पानी खेतों की सिंचाई के लिए दिया जाता है।
यूँ तो सभी ऋतुओं की अपनी अपनी महत्ता है, पर वर्षा ऋतु का महत्व विशेष ही है। जीवन की दो उपयोगी आवश्यकताओं – आहार एवं पानी की पूर्ति वर्षा से ही होती है। यदि समय पर वर्षा न हो या पर्याप्त वर्षा न हो, तो अकाल पड़ जाता है। अन्न पैदा ही नहीं होता। मानव तो मानव पशु पक्षी तक भूखे प्यासे मरने लगते हैं।
वर्षा प्रारंभ होते ही किसान का काम प्रारंभ हो जाता है। वह दिनभर खेतों पर रहकर बैलों की सहायता से खेत जोतने लगता है। उसकी दिन चर्चा व्यस्त हो जाती है। जुलाई से अक्टूबर तक उसे दिन रात खेतों में रहना पड़ता है। जोतना, बोना, नराई करना रखवाली करना, खेत काटना खलिहान बनाना तथा अनाज अलग कर घर ले जाने तक किसान का जीवन व्यस्त रहता है।
वर्षा उचित समय उचित मात्रा में होने से ही हम वर्ष भर आनंद से रह सकते हैं। अनावृष्टि और अतिवृष्टि दोनों ही फसल के लिए हानि कारक हैं। समय पर वर्षा न होने से, अनावृष्टि के कारण बोया हुआ बीज भी भूमि खाजाती है। पौधा ही अंकुरित नहीं होता। किसान को बीज की लागत भी नहीं आती। अतिवृष्टि से खड़ी हुई फसल सड़जाती है। नदियों में बाढ़ आजाती है। नदियों की बाढ़ से किनारों मरजाते हैं। पर के खेत उजड़ जाते हैं। अनेक मनुष्य और पशु बाढ़ में बहकर आशय यह कि वर्षाऋतु देश के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। पर अतिवृष्टि एवं अनावृष्टि दोनों ही हानिकारक हैं। समय पर उचित वर्षा ही देश का कल्याण कर सकती है।
निबंध नंबर :- 02
वर्षा ऋतु
Varsha Ritu
रात के बाद दिन और दुःख के बाद सुख का आना निश्चित है। ठीक इसी प्रकार गर्मी के बाद वर्षा ऋतु का आना भी निश्चित ही है। आषाढ़ का महीना आधा बीत जाने के बाद अचानक किसी दिन बादल का कोई टुकड़ा क्षितिज से उठ कर सारे आकाश पर छा जाता है तो लोगों की जान में जान आ जाती है। यह बादल मानों वर्षा ऋतु के आगमन का मधुर संदेश देता है।
पुराने समय में वर्षा ऋतु का आरम्भ आषाढ़ के प्रथम दिन से माना जाता था, किन्तु समय में परिवर्तन आ जाने के कारण अब सावन और भादों के दो महीने वर्षा ऋतु के माने जाते हैं। गर्मी वर्षा-ऋतु के हाथों पराजित हो कर भाग जाती है। पेड़-पौधों पर और लोगों के मुरझाए चेहरों पर फिर से एक हरियाली और ताज़गी आ जाती है। ‘पानी पानी’ रटने वाली सूखी जुबानों पर खुशियों के गीत नाचने लगते हैं।
बरसात की पहली वर्षा होने पर धरती का हृदय मानों शीतल हो जाता है। मिट्टी में से उठी भीनी-महक मन और मस्तिष्क पर छा जाती है। धरती का मानों कायाकल्प हो जाता है। जिधर भी नज़र उठाएं हरियाली ही हरियाली दिखाई देती है। पेड़ मस्ती में झूमने लगते हैं। धरती की गोद भर जाती है। हरे भरे खेत खुशियां लुटाने लगते हैं। मोर प्रसन्न हो कर झूमने और नाचने लगते हैं. उस समय उनके रंगीन पंखों की शोभा देखने योग्य होती है। एक ओर कभी-कभी कोयल की कूक सुनाई पड़ती है, तो दूसरी ओर तृप्त होकर पपीहा “पी पी” की मधुर टँर लगाता है।
जब निरन्तर वर्षा होती है तो ऐसे लगता है जैसे आकाश से कोई मधुर गीत ही धरती पर उतर रहा हो । पोखर-तालाब सब पानी से भर जाते हैं। छोटी-छोटी नदियां किनारों को तोड़ती तथा शोर मचाती हुई अपने प्रियतम सागर से मिलने के लिए उत्कण्ठित हो कर भागने लगती हैं। गलियों, बाजारों में भी पानी भर जाता है। छोटे बच्चे प्रसन्न होकर पानी में नहाते फिरते हैं, वह कागज़ की नौकाएं पानी में बहाते और खुश होते हैं।
वर्षा ऋतु में आकाश का रूप भी अत्यन्त विभिन्न और दर्शनीय होता है। काले छोटे-बड़े बादल आकाश में घूमते रहते हैं। अभी अभी धूप चमचमा रही होती है कि सुरमई घटा घिर आती है और दिन भी रात की तरह अंधकारमय हो जाता है। कई बार एक ओर वर्षा हो रही होती है और दूसरी ओर धूप चमकती है। आकाश पर दिखाई देता हुआ सतरंगी इन्द्रधनुष ऐसे लगता है जैसे मेघ सुन्दरी ने रंगबिरंगा रेशमी झूला डाल रखा हो । वर्षा थमने पर नहा-धोकर निखरे हुए गगन की नीली छटा भी अत्यन्त मोहक होती है।
पहाड़ों पर बादल घरों के अन्दर घुस कर प्रत्येक वस्तु में नमी भर जाते है। मुम्बई जैसे समुद्रतटवर्ती प्रदेशों की वर्षा ऋतु तो बहुत ही विचित्र होती है। कोई भरोसा नहीं होता कि कब एक छोटी सी बदली जलथल एक कर जाएगी, इसीलिए लोग बरसाती और छाता हर समय अपने साथ रखते हैं।
रात को आकाश में तारे देख कर लोग खुली छत पर सोते हैं किन्तु कुछ देर के बाद ही बादल की गर्जना उनकी नींद भंग कर देती है और बूंदे बिस्तर आदि भिगोने लगती हैं तो झटपट बिस्तर समेट कर कमरों के अन्दर आना पड़ता है। रात में वर्षा न भी हो तो इतनी अधिक ओस पड़ती है कि प्रात: काल बिस्तर भीगा सा ही होता है। कपड़े एक बार भीग जाएं तो सुखने का नाम नहीं लेते ।
हर वस्तु और काम उचित सीमा तक ही अच्छा लगता है। धरती की प्यास बुझाने वाली वर्षा जब थमने का नाम नहीं लेती तो लोग त्राहि-त्राहि कर उठते हैं और वर्षा ऋतु तथा इन्द्र देवता को कोसने लगते हैं। अधिक वर्षा के कारण लोगों को अपने घरबार की और अपनी सुरक्षा की चिन्ता सताने लगती है। कोठे वाला सोये और छप्पर वाला रोये वाली बात हो जाती है। नदियों में बाढ़ें आने लगती हैं। गांव बह जाते हैं, फसलें डूब जाती हैं तथा पशुधन की भी हानि होती है। अधिक वर्षा के कारण अनेक तरह के कीड़े पतंगे निकल आते हैं। मच्छर भी हो जाता है, जो मलेरिया फैलाने का कारण बनता है। नगरों में कीचड़ के कारण चारों और गंदगी फैल जाती है।
ऊपर लिखी गई बुराइयों के कारण वर्षा ऋतु को बुरा नहीं कहा जा सकता। चूसने वाले आम और जामुनों का आनंद इसी ऋतु में आता है। मक्की, ज्वार, बाजरा और चावल इसी ऋतु की फसलें हैं, जो गेहूं की कमी को पूरा करती है। इसी ऋतु में बरसे हुए जल को बाँधों द्वारा सुरक्षित रख कर बिजली का उत्पादन किया जाता है तथा खेतों की सिंचाई की जाती है।
कृष्णजन्मोत्सव, रक्षाबन्धन और तीज के त्यौहार इसी ऋतु में आते हैं। झूले डाले जाते हैं। पुए पकाए जाते हैं। वर्षा ऋतु जीवन देने वाले जल और हरियाली की ऋत है। इसके अभाव में पेड़ पौधों की तथा जीवन की खुशियां रह ही नहीं सकती।
निबंध नंबर :- 03
वर्षा ऋतु
Varsha Ritu
परिचय-भारत में वर्ष के अंदर छः ऋतुएँ होती हैं
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वसंत,
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ग्रीष्म,
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वर्षा,
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शरद,
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हेमंत
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शिशिर।
हम इन छः ऋतुओं को तीन भागों में बाँट सकते हैं-ग्रीष्म, वर्षा, शरद। वर्षा ऋतु मुख्यतः आषाढ़ और श्रावण मास में आती है, लेकिन इसका प्रभाव भाद्रपद और आश्विन तक बना रहता है। वर्षा ऋतु का आगमन ग्रीष्म के बाद होता है। ग्रीष्म की भयंकर गर्मी से धरती गर्म हो जाती है। नदी-नाले, कुएँ, पोखर आदि सभी गर्मी से सूखने लगते हैं। चारों ओर जल का अभाव होने लगता है। पेड़-पौधे गर्मी के मारे सूखने और झुलसने लगते हैं। कहीं भी हरियाली नहीं दिखती है। पशु-पक्षी जल के अभाव में तड़पने लगते हैं। ग्रीष्म ऋतु की लपलपाती लू में हजारों जीव-जंतु मर जाते हैं। समुद्र और धरती का जल वाष्प बनकर आकाश में जमा हो जाता है।
आगमन-ऐसे ही समय में वर्षा ऋतु आती है। उसके आते ही आकाश में काले-काले बादल छा जाते हैं। मेघ घुमड़ने लगते हैं। भारी वर्षा प्रारंभ हो जाती है। वर्षा के जल से धरती की जलती हुई छाती शीतल हो उठती है। मानव ही नहीं जीव-जंतुओं में भी खुशी छा जाती है। झुलसे हुए पेड़-पौधे फिर से नए पत्तों से लदने लगते हैं। धीरे-धीरे धरती पर हरियाली छाने लगती है। वर्षा ऋतु में दिन-रात वर्षा होती है। बादलों की गरज और बिजली की कड़क बड़ी भयानक होती है।
लाभ-जल ही जीवन है। अत: वर्षा ऋतु में धरती को नया जीवन मिलता है। धरती की जलती छाती ठंडी हो जाती है। चारों ओर हरियाली छाने से हृदय उल्लसित हो जाता है। नदी और ताल-तलैया जल से लबालब हो जाते हैं। किसानों के लिए यह बहुत खुशी का समय होता है। इसी समय धान और मकई की मुख्य फसलें बोई जाती हैं। रबी की फसल के लिए जमीन में तरी आती है। भारत की खेती वर्षा ऋतु पर ही निर्भर करती है।
हानियाँ-वर्षा ऋतु में कुछ हानियाँ भी होती हैं। अधिक वर्षा के कारण नदियों में बाढ़ आ जाती है जिससे गाँव और घर बह जाते हैं। लगी हुई फसलें नष्ट हो जाती हैं। अनेक पालतू पशु मर जाते हैं। आवागमन ठप्प हो जाता है। गड्ढों में जमा पानी से अनेक बीमारियाँ पैदा होती हैं।
उपसंहार-इतना होने पर भी वर्षा ऋतु से लाभ ही अधिक है। खेती के लिए यह आवश्यक है। वर्षा नहीं हो तो यह धरती वीरान और रेगिस्तान बन जाए।
निबंध नंबर :- 04
वर्षा ऋतु
Varsha Ritu
हमारे देश भारत में तीन मुख्य ऋतुएँ हैं। शीत (ठंड), ग्रीष्म (गर्मी) और वर्षा ऋतु। गर्मी की ऋतु में तेज गर्मी पड़ने से कुएँ, तालाब तथा नदियों में पानी कम हो जाता है। क्या पशु, क्या पक्षी और क्या लोग, सभी बेसब्री से पानी बरसने और ठंडक पाने की बाट जोहने लगते हैं।
वर्षा होने से सबसे अधिक प्रसन्नता किसानों को होती है। वे नई फसल बोने की तैयारी करने लगते हैं। हमारे देश में वर्षा मानसूनी हवाओं के कारण होती है। जून के प्रथम सप्ताह में मानसून हमारे देश के दक्षिणी तटों में प्रवेश करता है। फिर पंद्रह-बीस दिनों में पूरे देश में छा जाता है।
श्रावण और भाद्रपद के महिनों में सबसे अधिक पानी गिरता है। चारों ओर पानी भर जाता है। बादलों की गड़गड़ाहट और बिजली की तड़क कभी-कभी डरा भी देती है। कभी-कभी लगातार पानी गिरने से घर में ही रहना पड़ता है। बाहरी काम रुक जाते हैं, जिससे बेचैनी होती है।
कृषि प्रधान देश होने के कारण कृषि के लिए हमारे देश में वर्षा ऋतु बहुत महत्वपूर्ण है। सामान्य वर्षा से कृषि में बहुत लाभ होता है। भूमि में पानी का स्तर बढ़ जाता है। तालाब, नदी तथा कुओं में पानी भर जाता है।
फसलें अच्छी आती हैं। जलाशयों का पानी साल भर काम में आता है। यदि वर्षा कम होती है, तो अकाल पड़ जाता है। परंतु यदि वर्षा बहुत अधिक हो, तो भी बाढ़ आने से तथा खेतों में पानी भरा रहने से फसल को नुकसान भी हो जाता है। गंदगी के सड़ने-गलने से अनेक रोगों के फैलने का खतरा भी रहता है। पेट के रोग, पेचिस, मलेरिया जैसे रोग वर्षा ऋतु में ही अधिक फैलते हैं। अधिक वर्षा से कच्चे मकानों के गिरने का डर भी रहता है।
बाढ़ से बचने के लिए सरकार अनेक योजनाएँ बना रही है। जैसे नहरों का निर्माण, सघन वक्षारोपण आदि। बाँध बनाने की अनेक परियोजनाएँ भी चल रही हैं, जिससे कम वर्षा होने पर फसलों की सिंचाई हो सके।
वर्षा ऋतु जहाँ गर्मी और उमस कम करके लोगों को शांति और शीतलता देती है। वृक्षों को नवजीवन और ताजगी प्रदान करती है। चारों ओर प्रकृति में सजीवता और सुन्दरता की वृद्धि करती है: कृषकों के चेहरे पर रौनक बढ़ाती है। वहीं गरीब, बेघरबार लोगों के लिए असुविधा भी उत्पन्न करती है।