Hindi Essay/Paragraph/Speech on “Sumitranand Pant”, “सुमित्रानंदन पंत” Complete Essay, Speech for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.
सुमित्रानंदन पंत
Sumitranand Pant
हिन्दी साहित्य में कविताओं को विविध रंगों में पेश करने वाले सुमित्रानंदन पंत एक महान साहित्यकार हैं। उन्हें हिन्दी काव्य जगत में प्रकृति पुत्र भी कहा जातापंत जी का जन्म अल्मोड़ा जिले के कौसानी गाँव में हुआ था। यह पर्वतीय क्षेत्र उत्तरप्रदेश का बड़ा सुन्दर भाग है।
पंत जी स्वयं अपनी मनोहर एवं रमणीय जन्मभूमि के लिए कहते हैं- मेरी जन्मभूमिकौसानी है, जिसे कर्माचल की एक विशिष्ट सौंदर्यस्थली माना जाता है, जिसकी तुलना गांधी जी ने स्विजरलैंड से की है। इनका ।
उनके पिता पं गंगादत्त उसी गाँव में चाय-बागानों के प्रबंधक थे और स्वतंत्र रूप से लकड़ी का व्यापार करते थे। इनका असली नाम गुसाईदत्त पंत रखा गया था। दुर्भाग्यवश पंत के जन्म के छह घंटे के उपरान्त ही उनकी माता का देहांत हो गया। जन्म से ही वह अपनी मातृ प्रेम से वंछित रहे। उनकी फूफी ने उनका लालन-पालन किया। चार भाई और चार बहनों में पंत सबसे छोटे थे।
प्रारंभिक शिक्षा कौसानी में ही वर्नाक्यूलर स्कूल में हुई। चौथी कक्षा सफल करने के बाद वे अल्मोड़ा चले गए। जहाँ गर्वनमेंट कॉलेज से 9 वीं तक की शिक्षा ग्रहण की। तद्पश्चात् सन् 1919 में उन्होंने प्रयाग में म्योर सेंट्रल कॉलेज में प्रवेश लिया। जहाँ वे अधिक समय तक नहीं पड़ सके। सन् 1921 में असहयोग आंदोलन में गांधी जी के प्रभाव में आकर उन्होंने अपनी पढ़ाई को छोड़ दिया।
जीवन भर अविवाहित रहकर साहित्य की साधना करने वाले पंत आर्थिक विषमताओं से भी जूझते रहे। बड़े भाई की मृत्यु के पश्चात् उन्हें अपनी पैतृक सम्पति को बेचना पड़ा। कर्ज चुकाना ही प्रमुख कारण था।
सन् 1955 में वे ऑल इंडिया रेडियो पर हिन्दी चीफ प्रोड्यूसर बने। साथ ही कई उच्च पदों को सुशोभित किया।
सन् 1977 में वह प्रकृति में विलीन हो गए।
सन् 1962 में उन्हें उनकी कृति चिदंबरा के लिए उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला। कला और बूढ़ा चाँद के लिए साहित्य अकादमी का पुरस्कार मिला और भारत सरकार की ओर से उन्हें पद्मभूषण की उपाधि से भी सम्मानित किया गया था।
– लोकायतन उनका प्रबंध काव्य है।
– वीणा, ग्रंथि, पल्लव, गुंजन, युगांत, युगवाणी, ग्राम्या, स्वर्णकिरण, युगपथ, उत्तरा, अतिमा, वाणी, पल्लविनी, कला और बूढ़ा चाँद, रश्मिबंध, चिदंबरा, गीत अगीत, गीत हंस, गंध वीथी, समाधिता, पौ फटने से पहले, शशि की तरी, शंकर मुक्ताभध्वनि, शंखध्वनि, आस्था, सत्यकाम, संक्रांति उनके मुक्तक काव्य हैं।
-रजतशिखर, ज्योत्सना, शिल्पी, सौवर्ण, उत्तरशती उनके गीति नाट्य हैं। –
-हार उनका उपन्यास है।
-पाँच कहानियाँ उनका कहानी-संग्रह है।
-महादेवी संस्मरण गृथ, छायावाद का पुनर्मूल्यांकन, शिल्प और दर्शन उनके आलोचना ग्रंथ हैं।
पंत जी कै लेखन का स्वाद कुछ इस तरह का है –
याद है क्या न प्रात की बात
खिले थे जब तुम बनके फूल
भ्रमर बन, प्राण लगाने धूल
पास आया मैं, चुपके शूल
चुभाये तुमने मेरे गात
निठुर, यह भी कैसा अभिमान।