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Hindi Essay/Paragraph/Speech on “Shikshak Diwas”, “शिक्षक दिवस” Complete Essay, Speech for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

शिक्षक दिवस

Shikshak Diwas

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Essay No. 01

शिक्षक दिवस, छात्रों द्वारा अपने अध्यापकों के सम्मान में मनाया जाता है। इसलिए भी तो हमारे भारत देश को गुरुओं-शिक्षकों का देश भी कहा जाता है। संस्कार अगर किसी को देखना हो तो वह हमारे भारत वर्ष में आकर देख सकता है।

बदलते परिवेश के साथ ही शिक्षा के मायने भी बदल चुके हैं, आजकल संसार के अन्य देशों की भांति हमारे भारतवर्ष में भी शिक्षा लेना-देना एक व्यवसाय बन गया है। आजकल विद्यार्थी और अध्यापक का संबंध सिर्फ खरीदने और बेचने वालों के संबंध की तरह बन चुका है। निश्चय ही यह एक चिंता  का विषय है।

शिक्षक दिवस मनाने के पीछे कई कारण हैं, प्रमुखतः शिक्षक के महत्व को समझा जाए, शिक्षक भी शिक्षा देने को व्यवसाय न मान एक पवित्र राष्ट्रीय एवं सांस्कृतिक कार्य या फिर अपना कर्त्तव्य समझ इसे अनुष्ठान मानें। इसी का संदेश लेकर हर वर्ष शिक्षक दिवस मनाया जाता है।

शिक्षक दिवस का संबंध देश के राष्ट्रपति बनने से पहले देश के उपराष्ट्रपति भी रहे सर्वपल्ली डॉ. राधाकृष्णन जी के जन्म दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। डॉ. राधाकृष्णन अनेक विषयों के विद्वान होने के साथ साथ एक दार्शनिक भी थे। वे एक कुशल शिक्षक तो थे ही साथ ही एक संतुलित राजनेता भी रहे। यही कारण था कि वे छात्रवर्ग में लोकप्रिय बने और दार्शनिकता ने उनके बहुआयामी व्यक्तित्व को संसार भर के विद्वानों, चिंतकों और मनीषियों के बीच एक उच्च सिंहासन पर विराजमान करवाया।

इसी प्रकार उनकी राजनीतिक दृष्टि और प्रशासनिक प्रतिभा ने उन्हें पहले स्वतंत्र भारत के उपराष्ट्रपति के सर्वोच्च पद पर भी पहुँचाया जिस कारण सिर्फ उनके गौरव में ही बढ़ोत्तरी नहीं हुई बल्कि देश भी उन्हें अपने राष्ट्रपति के रूप में पाकर गौरवन्वित हुआ।

– वे राष्ट्रपति बनें या फिर उपराष्ट्रपति या फिर एक अध्यापक, उनकी लोकप्रियता देश-विदेश की समस्त मानवता-प्रेमी और उच्च मूल्यों को महत्व देने वाली पीढ़ियों में बनी रही, जो आज तक बनी भी है जिसमें कोई संदेह नहीं। ऐसे ही महान व्यक्तित्व की याद में हम श्रद्धांजलि के रूप में प्रति वर्ष शिक्षक दिवस मनाया करते हैं।

जब से हमारे देश में स्व. डॉ. राधाकृष्णन के जीवन के साथ जोड़कर शिक्षक दिवस का आयोजन होने लगा तब से भारतीय शिक्षा जगत् में शिक्षक अपने कर्तव्य जान शिक्षा के प्रति  समर्पित भाव रखने लगे। डॉ. राधाकृष्णन जी के बताए आदर्श के अनुसार सिर्फ शिक्षक की जिम्मेदारी छात्रों को शिक्षा देने तक ही सीमित नहीं बल्कि संस्कार भी देना है। इन्हीं आदर्शों को ध्यान में रखते हुए शिक्षक अपने छात्रों के परीक्षा परिणाम का ध्यान तो रखते ही हैं साथ ही अपने छात्रों के साथ उनके आम व्यवहार ही नहीं बल्कि विद्यालय के बाहर भी उनके आचरण एवं व्यवहार का ध्यान भी रखते हैं।

हर वर्ष 5 सितंबर को शिक्षक दिवस मनाया जाता है। इस दिन हर छोटे बड़े विद्यालयों व शैक्षिक संस्थानों में छात्रों द्वारा अपने-अपने शिक्षकों का सम्मान किया जाता है। साथ ही विभिन्न प्रतियोगिताओं का आयोजन भी किया जाता है प्रमुखता शिक्षण प्रतियोगिता का तो खासतौर से इसदिन आयोजन होता है। जिसमें विभिन्न ग्रुपों में छात्रों को बाँट कर सीनियर छात्र अपने जूनियर छात्रों को एक शिक्षक की भांति पढ़ाते हैं जिसमें देखा जाता है कि कौन सा ग्रुप अच्छी तरह से पढ़ाता तो है ही। साथ ही कौन उन्हें अच्छी तरह संभालता भी है। इससे दो फायदे होते हैं पढ़ने वाले छात्र तो शिक्षा ग्रहण करते ही हैं, साथ ही साथ पढ़ाने वाले छात्र भी इस दिन एक शिक्षक होने का सच्चा अर्थ जान जाते हैं। साथ ही वह यह शिक्षा ग्रहण करते हैं कि एक शिक्षक को शिक्षा देते समय किन किन कठिनाइयों का सामना भी करना पड़ता है।

सार के रूप में हम बस इतना कह सकते हैं कि शिक्षक दिवस केवल शिक्षक वर्ग के प्रति सम्मान प्रकट करने वाला दिन नहीं बल्कि उनके कार्य, यानि शिक्षा की आवश्यकता एवं महत्व को भी जानकर अपने जीवन में उतारने की प्रतिज्ञा लेने वाला दिन है।

 

शिक्षक दिवस

Shikshak Diwas

Essay No. 02

आधुनिक काल में हमारे देश में कई प्रकार के दिवस मनाए जाते हैं। ये दिवस किसी महान कार्य की समृति में अथवा उससे संबंधित कल्याण के लिए मनाए जाते हैं। इसी कड़ी में ‘शिक्षक दिवस’ भी एक है। यह दिवस शिक्षकों के कल्याण के लिए मनाया जाता है।

समाज में गुरु या शिक्षक या अध्यापक की गरिमा प्राचीन काल से ही है। गुरु या शिक्षक होना बहुत बड़ा दायित्व है। प्राचीनकाल में छात्र गुरु के आश्रम में रहकर शिक्षा प्राप्त करते थे। उस समय शिक्षार्थियों से किसी प्रकार का शुल्क नहीं लिया जाता था। राजाओं या सामंतों से जो धन मिलता था उसी में आश्रम का खर्च चलता था। कभी-कभी छात्रों को भिक्षाटन के लिए भी जाना पड़ता था। बाद में चलकर शिक्षकों को शिक्षा प्रदान करने के बदले शुल्क के रूप में अनाज या कुछ धन दिया जाता था।

शिक्षक उतने में ही संतुष्ट होकर अपने कर्तव्य का पालन करते थे। इसलिए समाज में उनका भारी सम्मान था।

पहले गुरुओं या शिक्षकों का सम्मान करने के लिए ‘गुरुपर्व’ मनाया जाता था। उस समय का ‘गुरुपर्व’ आधुनिक काल का ‘शिक्षक दिवस’ है। आधुनिक काल में शिक्षक दिवस प्रतिवर्ष 5 सितंबर को मनाया जाता है। शिक्षक दिवस भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। डॉ. राधाकृष्णन प्रकांड पंडित थे। वे मूलतः अध्यापक थे। उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में अनेक कार्य किए इसलिए उनके जन्मदिवस को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसका उद्देश्य शिक्षकों की वर्तमान दशा में सुधार लाना था। इसके लिए शिक्षक कल्याण कोष की स्थापना की। उसका उद्देश्य था शिक्षकों के कल्याण के लिए धन संग्रह करना। इसके लिए टिकट छपवाकर बेचे जाते थे। जो धन प्राप्त होता है उसे कोष में जमा कर दिया जाता है। शिक्षक दिवस पर विद्यालयों में विद्यार्थी शिक्षक की भूमिका का निर्वाह करते हैं तथा उस दिन शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने वाले शिक्षकों को सम्मानित किया जाता है।

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