Hindi Essay, Paragraph, Speech on “Satyanishtha”, ”सत्यनिष्ठा” Complete Hindi Anuched for Class 8, 9, 10, Class 12 and Graduation Classes
सत्यनिष्ठा
Satyanishtha
सत्यनिष्ठा सबसे बड़ा तप है। इसका पुण्य प्राप्त करने के लिए मानव को केवल यही प्रयत्न करना पड़ता है कि जिस वस्तु को जिस रूप में पढ़े, देखे या सुने, उसे उसी वास्तविक रूप में प्रकट कर दे। इस छोटे से प्रयत्न का ही नाम सत्यनिष्ठा है। इसके विपरीत सब कार्य असत्य भाषण के अन्तर्गत आ जाते हैं। इनसे आत्म-सम्मान को ठेस पहुँचती है।
सत्यवादी का आचरण सदैव शुद्ध रहता है। उसके अन्तःकरण के पाप इस गुण सदव के लिए पुण्य का रूप धारण कर लेते हैं। उसका मन-रूपी चन्द्र निष्कलंक जाता है। उसका कालिमायक्त हृदय गंगाजल के समान उज्ज्वल और पवित्र हो जाता है.
सत्यवादी वीर और निडर होता है। वह कठिन से कठिन मुसीबत में भी विचलित ता। राजा हरिश्चन्द्र ने अपना राज्य त्यागा, अनेक कष्ट सहन किए, पत्नी को बेचा, डोम के दास बने: परन्तु सत्य नहीं छोड़ा। अन्त में उन्हीं की विजय हुई और उनका नाम स्वर्णाक्षरों में लिखा गया।
सत्यवादी की चिन्तन-शक्ति दृढ़ होती है। उसके चरित्र का निर्माण हो जाता है विश्व में उसका विश्वास होता है। उसके प्रियजन प्राण न्यौछावर करने के लिए हर समय तत्पर रहते हैं। वह देव तुल्य पूजा जाता है। उसके त्याग और तपस्या पूर्ण जीवन से भगवान् भी प्रसन्न रहते हैं।
असत्यवादी का विश्व में सम्मान नहीं होता। उसकी आत्मा का हनन हो जाता है। सकी उन्नति का मार्ग सदा के लिए बन्द हो जाता है। उसकी शक्ति दिन प्रति दिन जाण होती जाती है। वह आत्म-सम्मान से हाथ धो बैठता है। लोग उसकी छाया तक से घृणा करने लगते हैं।
हमें सत्यनिष्ठा का अभ्यास जीवन की प्रारम्भिक घड़ियों से ही करना चाहिए। इसी के द्वारा सच्चा सुख, आत्मिक-शान्ति, श्रद्धा-भजन, आत्म-सम्मान और सामाजिक उन्नति पा सकते हैं। सत्य की सदा जय और असत्य की पराजय होती है।