Hindi Essay/Paragraph/Speech on “Samudragupta” , ”समुद्रगुप्त” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.
समुद्रगुप्त
Samudragupta
भारत : भारत को एकसूत्र में बांधने वाला
विजेता के रूप में नेपोलियन से भी महान, समानता में सिकंदर तथा धार्मिक सहिष्णता में अशोक महान के समकक्ष महान साम्राज्य निर्माता, पराक्रमी, यशस्वी और प्रतिभाशाली भारत सम्राट समदगप्त को भारतीय इतिहास में देव-तुल्य स्थान प्राप्त है। भारत को राजनैतिक एकता प्रदान करने, उसे स्थायित्व देने तथा ‘गुप्त काल’ को भारतीय इतिहास का ‘स्वर्णयुग’ बनाने में उसका महत्त्वपूर्ण स्थान है।
समुद्रगुप्त के पिता चंद्रगुप्त प्रथम ‘गुप्त वंश’ के पहले प्रसिद्ध सम्राट थे। समुद्रगुप्त की योग्यता एवं पराक्रम से प्रभावित होकर उन्होंने उसे अपना उत्तराधिकारी बना दिया। लगभग 330 ई. में वह गद्दी पर बैठा। उस समय कई राज्यों ने विद्रोह किए, किंतु उसने सभी को वीरतापूर्वक दबा दिया। इससे उसकी योग्यता स्पष्ट हो गई। अब उसकी महत्त्वाकांक्षा जागी। उसने संपूर्ण देश (भारत) को अपने अधीन करने का निश्चय किया। उसके अभिलेख उसकी विजय पर प्रकाश डालते हैं। सर्वप्रथम उसने गंगा-यमुना के दोआब राज्यों पर विजय प्राप्त की। इस अभियान में उससे हारने वाले प्रमुख राज्य थे- अच्युत, मथुरा, गणपतिनाग आदि। इनके राज्य गुप्त साम्राज्य में मिला लिए गए। उत्तर भारत जीतने के बाद समुद्रगुप्त ने दक्षिण की ओर रूख किया। नागपुर के 18 आटविक राज्यों को जीतने से उसका मनोबल बढ़ा। उसने उत्साहित होकर 5,000 किलोमीटर से भी ज्यादा का रास्ता तय करके मद्रास, कांची, चोल, पाण्डेय, चेर, महाराष्ट्र सहित 12 राज्यों पर विजय पाई। यहां समुद्रगुप्त ने कुशल राजनीति, दूरदर्शिता एवं उदार मानवीय व्यवहार का परिचय देते हुए उन सभी पराजित राजाओं को उनके राज्य ससम्मान सौंप दिए। इन राज्यों ने समुद्रगुप्त की अधीनता स्वीकार कर ली और उसे वार्षिक कर देने लगे।
तीसरे चरण में पूर्वोत्तर के राज्यों ने समुद्रगुप्त से डरकर उसको अपना स्वामी मानकर उसे सम्मानित किया। इन राज्यों में वर्तमान बांग्लादेश, असम, नेपाल, कुमाऊं, गढ़वाल एवं रूहेलखंड शामिल थे।
समुद्रगुप्त की चौथी महान यात्रा में दिल्ली से मालवा तक फैले गणराज्य शामिल थे। मालवा, पाद्धय, मुद्रक, आभीर आदि राज्यों ने भी गप्त को अपना सम्राट मान लिया। इस तरह समुद्रगुप्त का साम्राज्य उत्तर में हिमालय पश्चिम में यमना पर्व में हगली एवं दक्षिण में नर्मदा तक फल गया। शक, कुषाण एवं सिंहल द्वीप के राजा भी समुद्रगुप्त पर आश्रित थ। मलय, आदि भी उसके प्रभुत्व को स्वीकारते थे। श्रीलंका के राजा मधवण का स्वाकारते थे। श्रीलंका के राजा मेघवर्ण ने बोधगया में एक मठ बनवाने के लिए समुद्रगुप्त से आज्ञा मांगी थी।
अपनी विजय के उपलक्ष्य में समुद्रगुप्त ने एक ‘अश्वमेघ यज्ञ’ का भी आयोजन किया था, जिसमे ब्राह्मणों को हजारों गायें व स्वर्णमुद्राएं दान स्वरूप दी गयीं। इस अवसर पर जो विशेष स्वर्ण मुद्राएं जारी की गई, उनमें ‘अश्वमेघ पराक्रम’ उत्कीर्ण था।
समुद्रगुप्त धार्मिक दृष्टि से एक उदार एवं दयालु सम्राट था। वह विष्णु का उपासक था। फिर भी अन्य मतों के अनुयायियों से भी वह उसी तरह का व्यवहार करता था, जैसा अपने धर्म के अनुयायियों से। अश्वमेघ यज्ञ से उसकी वैदिक धर्म के प्रति आस्था का पता चलता है। उसके दरबार में कई बौद्ध विद्वान थे।
गुप्त सम्राटों में समुद्रगुप्त अपनी कलाप्रियता के लिए सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है। वीणावादन में उन्हें इतनी महारथ हासिल थी कि उस युग में उन जैसा वीणावादक कोई और नहीं था। समुद्रगुप्त की स्वर्ण मुद्राएं आज भी उस युग की कला का प्रतिनिधित्व करती हैं। वह एक महान कवि भी था। ‘कविराज’ उसकी उपाधि थी, क्योंकि वह कई ग्रंथों का लेखक था। शास्त्रों का भी उसे अच्छा ज्ञान था।
गुप्त काल महान सम्राटों का युग था, जिन्होंने भारत को एक स्वर्णयुग में बदल डाला धा। समुद्रगुप्त भी इनमें से एक हैं। उसने भारत को आर्थिक दृष्टि से समृद्ध करने, राजनैतिक दृष्टि से सशक्त करने एवं सामाजिक दृष्टि से ऊंचा उठाने में बहुत ज्यादा योगदान दिया। हरिषेण, वसुबंधु एवं असंग जैसे विद्वानों को आश्रय देने वाले समुद्रगुप्त ने युद्ध में भी पराक्रम दिखाए थे। ऐसे कलम और तलवार के धनी सम्राट बहुत कम हुए हैं।
समुद्रगुप्त ने पूरे देश को एकता के सूत्र में बांधा। उसका शासन् केंद्रीय प्रभुता एवं स्थानीय स्वतंत्रता का सबसे सफल उदाहरण था। राज्य की प्रगति और शांति तथा सुरक्षा उसका प्रमुख उद्देश्य था। उसका व्यक्तित्व असाधारण था। इतिहासकार स्मिथ के अनुसार, “समुद्रगुप्त अद्वितीय गणों तथा विभिन्न असाधारण योग्यताओं से पूर्ण व्यक्ति था। वह एक वास्तविक शासक, विज्ञानी, कवि, गायक तथा योद्धा था।” समुद्रगुप्त का शासन्काल लगभग चालीस वर्षों तक रहा। इसके बाद उसके पुत्र चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने सिंहासन् संभाला।