Hindi Essay, Paragraph, Speech on “Sampradayikta”, “सांप्रदायिकता” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation Classes.
सांप्रदायिकता
Sampradayikta
धार्मिक असहिष्णुता का दूसरा नाम है- सांप्रदायिकता। हमारे देश में यद्यपि हिंदू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई आदि विभिन्न धर्मों के मानने वाले निवास करते हैं परंतु फिर भी हमारे देश में जो धर्म-निरपेक्षता के सिद्धांत को मान्यता देता है, सांप्रदायिक एकता बनी हुई है। सामान्यतः लागों का धर्मों तथा विचारों की विभिन्नता के कारण विभिन्न संप्रदायों से संबंधित होना अस्वाभाविक नहीं है। परंतु जब विभिन्न संप्रदायों के लोग केवल अपने संप्रदाय के प्रति ही अंधभक्ति रखते हुए, अन्य संप्रदायों के प्रति घृणा या द्वेष का वातावरण पैदा कर देते हैं तो देश में सांप्रदायिकता की विकराल समस्या पैदा हो जाती है जो कि राष्ट्रीय एकता को छिन्न-भिन्न कर सकती है।
आज सांप्रदायिकता की समस्या सगभग विश्व के सभी देशों में विद्यमान है। यूरोप में रोमन कैथोलिकों तथा प्रोटेस्टेटों के मध्य आमतौर पर आपसी झगड़े चलते रहते हैं। इसी प्रकार विश्व के इस्लामी देशों में भी शिया तथा सुन्नियों के मध्य परस्पर रक्तरंजित संघर्ष की स्थिति बनी रहती है। हमारे देश भारतवर्ष में काफी सीमा तक सांप्रदायिक सौहार्द की स्थिति बनी रही है। स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व भारत में किसी भी प्रकार की सांप्रदायिक समस्या नहीं थी। देश के प्रत्येक संप्रदाय के लोग परस्पर भईचारे की भावना में विश्वास करते थे। भारत में व्यापक सांप्रदायिक सद्भाव को ब्रिटिश शासक अपने लिए एक बहुत बड़ा खतरा मानते थे। अतः उन्होंने भारत को सदैव के लिए पराधीन बनाये रखने के लिए ‘फूट डालो तथा राज करो’ की नीति का अनुसरण किया। इसके लिए उन्होंने विभिन्न धर्मों के मध्य वर्तमान सांप्रदायिक सद्भाव को समाप्त करने का प्रयास किया। इसके लिए उन्होंने मुस्लिम संप्रदाय के प्रतिनिधियों को हिन्दू संप्रदाय के प्रतिनिधियों के विरूद्ध भड़काकर देश को विभाजित करने का षड्यंत्र रचा। दुर्भाग्यवश कुछ मुस्लिम नेता उनके बहकावे में आ गए, जिससे देश में हिन्दू-मुस्लिम दंगे भड़क उठे तथा हमारा राष्ट्र स्वतंत्र होने से पूर्व-पाकिस्तान तथा हिन्दुस्तान- दो भागों में विभाजित हो गया। हमात्मा गाँधी यद्यपि देश के इस विभाजन के विरूद्ध थे परंतु देश में व्याप्त सांप्रदायिक दंगों को देखते हुए, उन्हें देश के विभाजन को स्वीकार करना पड़ा। इस राष्ट्रघाती विभाजन के समय, जहाँ एक ओर दोनों देशों में जोर-शोर से स्वतंत्रता का उत्सव मनाया जा रहा था वहीं दूसरीं ओर हिन्दू-मुस्लिम दंगों तथा विभाजन से प्रभावित लाखों परिवार लूट, आगजनी, हत्या तथा बलात्कार के शिकार होकर देशों के कोने-कोने में शरण के लिए भटक रहे थे।
इस प्रकार धार्मिक असहिष्णुत या सांप्रदायिकता की भीषणतम लपटों में हमारी राष्ट्रीय एकता सदैव के लिए स्वाहा हो गयी, परंतु भारत विभाजन के पश्चात् भी देश में सांप्रदायिक समस्या पूर्णतया समाप्त नहीं हो पायी। भारत के स्वतंत्र होने के पश्चात् देश में सांप्रदायिक समस्या फिर से उभरने लगी। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् देश के मुसलमानांे ने फिर से उसी मुस्लिम लीग को जो भारत-विभाजन के लिए उत्तरदायी थी, जीवित किया। भारत में मुस्लिम लीग के पुनर्गठन का यह परिणाम हुआ कि हिन्दुओं में भी जागृति उत्पन्न हुई, जिससे देश के कई भागों में हिन्दू-मुस्लिम संघर्ष हुए।
भारत में स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात्, न केवल हिन्दू-मुस्लिम सांप्रदायिकता की समस्या ही उत्पन्न हुई, बल्कि हिन्दू-ईसाई संप्रदायों के मध्य भी संघर्ष की स्थिति पैदा हुई। देश के करेल, त्रिपुरा, असम तथा पूर्वी सीमांत प्रदेशों में ईसाई पादरियों के द्वारा हिन्दुओं की एक बहुत बड़ी संख्या के धर्म-परिवर्तन के कारण सांप्रदायिक संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो गयी थी।
हमारे संविधान में भारत को एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र घोषित करके सांप्रदायिकता को सदैव-सदैव के लिए समाप्त करने का प्रयास किया गया है। हमारा संविधान किसी धर्म विशेष को प्रश्रय नहीं देता हैं परंतु फिर भी हमारे देश के ऐसे भ्रष्ट राजनीतिज्ञ तो सत्ता में बने रहने के लिए संप्रदायवाद इत्यादि का पोषण करते हैं।
हमारे देश की प्रगति के मार्ग में बाधक प्रमुख समस्या सांप्रदायिकता की समस्या है एवं इस समस्या का यथाशीघ्र राष्ट्रीय स्तर पर समाधान किया जाना अनिवार्य है, अन्यथा कहीं ऐसा न हो कि देश को पृथकतावाद एवं विघटन के दुष्परिणाम देखने पड़ें।