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Hindi Essay, Paragraph, Speech on “Rashtra Bhasha Hindi”, ”राष्ट्र भाषा हिन्दी” Complete Hindi Essay for Class 8, 9, 10, Class 12 and Graduation and other classes.

Essay No. 1

राष्ट्रभाषा हिन्दी

निज भाषा उन्नति अहै सब उन्नति को मूल ।

बिन निज भाषा ज्ञान के मिटै न हिय को सूल ॥”

वस्तुतः वह भाषा ही है जो मन के भावों को प्रकट कर चित्त को शान्ति देती है। यही कारण है कि किसी भी देश में अधिकतर आबादी द्वारा दैनिक जीवन में बोली जाने वाली भाषा को ही राष्ट्रभाषा का सम्मान प्राप्त होता है। भारत में इसी लिहाज से ‘हिन्दी’ को ‘राष्ट्रभाषा’ की उपाधि से अलंकृत किया गया है।

राष्ट्रभाषा के रूप में हिन्दी के महत्त्व को समझते हुए इसको विकसित करना सरकार का धर्म हैं। हिन्दी के साहित्य को समृद्ध करना साहित्यकारों का दायित्व है। दैनिक जीवन में अधिकाधिक रूप में हिन्दी का प्रयोग करना जनता का कर्त्तव्य है। ईमानदारी से हिन्दी-ज्ञान का वितरण, विस्तार और हिन्दी को एकरूपता प्रदान करना हिन्दी के माध्यम से रोटी कमाने वालों का नैतिक दायित्व है। स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व भारतवर्ष की पवित्र भूमि विदेशियों से पदाक्रांत थी। उन्हीं के रीति-रिवाज तथा उन्हीं की सभ्यता को प्रधानता दी जाती थी। तब भारतीय अंग्रेजी भाषा पढ़ने, लिखने और बोलने में अपना गौरव समझते थे। राज्य के समस्त कार्यों की भाषा अंग्रेजी ही थी। हिन्दी भाषा को कहीं कोई स्थान नहीं था। हिन्दी में लिखे गए प्रार्थना पत्रों तक को फाड़ कर रद्दी की टोकरी में डाल दिया जाता था। बेचारे भारतीय विवश होकर अच्छी नौकरी की लालसा से अंग्रेजी पढ़ते थे।

भारत राजनीतिक रूप से गुलाम था। तो दुष्परिणाम यह भी हुआ कि यह आर्थिक गुलामी में भी फंसा था और भाषाई गुलामी से भी इसे निजात नहीं मिल पा रहा था। लेकिन भारतवर्ष के भाग्य ने पलटा खाया। 15 अगस्त 1947 को भारत को स्वाधीनता मिली। देश में, अंग्रेजों के जाने के पश्चात् यह आवश्यक नहीं था कि देश के सारे राजकीय कार्य अंग्रेजी में हो। अन्त में जब देश का संविधान बनने लगा तो देश की राष्ट्रभाषा पर विचार होने लगा। क्योंकि बिना राष्ट्रभाषा के कोई भी देश स्वतंत्र होने का दावा नहीं कर सकता। राष्ट्रभाषा समूचे राष्ट्र की आत्मा को शक्ति सम्पन्न बनाती है। रूस, अमेरिका, जापान, ब्रिटेन आदि सभी स्वतंत्र देशों में अपनी-अपनी राष्ट्रभाषाएँ हैं।

भारतवर्ष की राष्ट्रभाषा हिन्दी के सिवा कोई भाषा नहीं हो सकती है क्योंकि इसके बोलने-लिखने, पढ़ने-समझने वाले लोगों की संख्या इस देश में सर्वाधिक है। कई बड़े-बड़े प्रदेश तो हिन्दी भाषी प्रदेश कहलाते है। लेकिन इनके बावजूद कुछ लोगों ने राष्ट्रभाषा के रूप में हिन्दी का घोर विरोध किया। इस विचारधारा के पीछे क्षुद्र स्वार्थ था। भारतवर्ष में लगभग सौ से अधिक भाषाएँ हैं जिनमें हिन्दी, उर्दू, मराठी, पंजाबी, बंगाली, तमिल, तेलगु, आदि प्रमुख हैं। बहुत वाद-विवाद के उपरान्त हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने पर विचार किया जाने लगा। इसके पक्ष में अनेक तर्क दिए गए-सर्वप्रथम तो यह एक भारतीय भाषा है, दूसरी बात कि जितनी संख्या हिन्दी भाषा-भाषियों की इस देश में है, उतनी किसी अन्य प्रान्तीय भाषा की नहीं। तीसरी बात यह कि हिन्दी बोलने वाले चाहे जितने ही हों समझने वाले बहुत अधिक संख्या में है। चौथी बात यह है कि हिन्दी भाषा अन्य भारतीय भाषाओं की तुलना में सरल है। यह दो तीन महीनों में सीखी व समझी जा सकती है। पांचवी विशेषता यह है कि इसकी लिपि वैज्ञानिक है और सुबोध है। यह जैसी बोली जाती है, वैसी ही लिखी जाती है इसकी सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि इसमें राजनीतिक, सांस्कृतिक, धार्मिक तथा शैक्षिणक सभी प्रकार के कार्य-व्यवहारों के संचालन की पूर्ण क्षमता है। इन्हीं विशेषताओं के आधार पर हिन्दी को भारत की राष्ट्रभाषा तथा देवनागरी लिपि को राष्ट्रलिपि बनाने का निश्चय किया गया। कालान्तर में ‘हिन्दी’ राष्ट्र की भाषा निश्चित हो गई ।

संविधान में यह पारित हो गया कि समस्त भारत को एक सूत्र में बाँधने के लिए तथा राष्ट्र में एकता स्थापित करने के लिए यह आवश्यक है कि राष्ट्र की अपनी एक भाषा हो और वह भाषा है ‘हिन्दी’ । हिन्दी संविधान द्वारा राष्ट्रभाषा के रूप में स्वीकृत है। इतना होने पर भी आज तक उसको उसका उचित स्थान नहीं मिल सका है। आज राष्ट्रभाषा हिन्दी को लेकर पूरा देश एकमत नहीं है। इसमें दक्षिण भारत का सहयोग नहीं मिल रहा है। दक्षिण भारत का जनमानस ऐसा सोचने लगता है कि भाषा उस पर थोपी जा रही है। इस भ्रांति को दूर करने के लिए हिन्दी के साहित्यकारों तथा पत्रकारों का अहिन्दी भाषियों के साथ घनिष्ठ सम्पर्क स्थापित करने का सक्रिय प्रयास करना चाहिए। यदि अहिन्दी भाषियों के मन में हिन्दी के प्रति राग-द्वेष तथा भाषाई प्रतिस्पर्धा को समाप्त किया जा सके तो राष्ट्रभाषा का मान-सम्मान तथा क्षेत्र-विस्तार अवश्य बढ़ेगा। हिन्दी भाषी दक्षिण की भाषा पढ़ें, अहिन्दी भाषी हिन्दी को अपनाएं, तो सभी समस्याएं स्वयं हल हो जाएंगी तथा हिन्दी पूरे राष्ट्र की भाषा बन जाएगी।

हिन्दी भाषा की उन्नति के लिए यह परमावश्यक है कि हिन्दी को मौलिकता के आधार पर गौरवान्वित किया जाए। हिन्दी कानून से आगे नहीं बढ़ सकती। इसके विकास के लिए हमें सरकार, साहित्यकारों, जनता, हिन्दी प्रेमियों के सहयोग की आवश्यकता है। हिन्दी की प्रगति तभी होगी जब हिन्दी भाषी तथा हिन्दी के विद्वान् हिन्दी के प्रति सेवा-भाव से काम करेंगे तथा उनके मन में हिन्दी के प्रति पूर्ण श्रद्धा होगी। राष्ट्रभाषा के उचित विकास का एक मात्र साधन है उसका सशक्त साहित्य। हिन्दी भाषा में सशक्त साहित्य की कमी भी नहीं है, कमी है तो एक बात की कि हिन्दी को लोग गंवारों की भाषा मानते हैं, हिन्दी बोलने में अपमान का अनुभव करते हैं। फैशनपरस्ती और पाश्चात्य प्रभाव का यह भीषण दुष्परिणाम जिससे हमें बचना होगा।

राष्ट्रभाषा की उन्नति के लिए यह आवश्यक है कि हिन्दी में हो रहे अव्यावहारिक तथा गलत प्रयोग पर कड़ा अंकुश लगाया जाए। हिन्दी में अन्य भाषाओं के शब्द अपनाकर हिन्दी का शब्दकोष और समृद्ध करने की आवश्यकता है। हिन्दी में अन्य भाषाओं के शब्दों का समावेश करके उसकी समस्त शक्ति को बढ़ाया जा सकता है। ऐसा होने पर हिन्दी विश्व-भाषा का रूप ग्रहण कर सकती है। हिन्दी के विकास में यह अनुमान किया जाता है कि अध्यापक, प्राध्यापक, हिन्दी अधिकारी, पत्र-पत्रिकाओं के लेखक व सम्पादक- यही वर्ग हिन्दी के विकास में सर्वाधिक योगदान कर सकते हैं।

अहिन्दी भाषी प्रान्तों से पत्र-व्यवहार मात्र हिन्दी में हो-इतना अवश्य किया जाए। अहिन्दी भाषी प्रान्तों तथा विश्व के राष्ट्रों में महत्त्वपूर्ण हिन्दी पुस्तकें तथा पत्र-पत्रिकाएं सैकड़ों की संख्या में निःशुल्क भेजी जाएं-यह भी ध्यान रखा जाना चाहिए। कार्यालयों तथा अधिकारियों के नामपट्ट अवश्य हिन्दी में ही हों। विभाग, संस्था तथा अभिकरणों (एजेंसीज) के नाम हिन्दी में हों, जैसे- टेलिफोन के बदले ‘दूरभाष’ रेडियो के बदले, ‘आकाशवाणी’ इत्यादि।

आशा है राष्ट्रभाषा हिन्दी सदस्य देश को एक सूत्र में आबद्ध कर नए राष्ट्र के निर्माण में अपना पूर्ण सहयोग प्रदान कर सकेगी। परन्तु दुर्भाग्य है कि भारतवासियों के हृदय में हिन्दी के प्रति जो प्रेम सन् 1947 से पहले था वह आज नहीं है। अतः समय तथा राष्ट्र की आवश्यकता को पहचान कर राष्ट्रभाषा हिन्दी को विकसित करने का हर सम्भव प्रयत्न करना चाहिए। जनता तथा सत्ता, दोनों मिलकर जब हिन्दी को सच्चे हृदय से अपनाएंगे, राजनीति के छल-कपट से दूर रखेंगे, तो निश्चय ही हिन्दी का विकास द्रुतगति से होगा और माँ-भारती का सुन्दर शृगार होगा।

Essay No. 2

राष्ट्र भाषा हिन्दी

Rashtra Bhasha Hindi

 

संसार के सभी स्वतंत्र एवं आत्माभिमानी देशों की अपनी राष्ट्र भाषा होती है। सभी स्वतंत्र राष्ट्र अपने देश का कार्य अपनी राष्ट्र भाषा में ही करते हैं। किसी भी देश की राष्ट्र भाषा उस देश की राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक विचार धाराओं की वाहिनी होती है। बिना अपनी राष्ट्रभाषा के कोई भी देश न तो विकास कर सकता है न ही जीवित रह सकता है।

जिस प्रकार चीन की राष्ट्र भाषा चीनी है, फ्रांस की फ्रैंच है, इंग्लैण्ड की अंग्रेजी है, जापान की जापानी है, उसी प्रकार भारत की राष्ट्रभाषा भी। इस देश की ही भाषा हो सकती है। राष्ट्र भाषा वही भाषा बनसकती है, जो देशमें सर्वाधिक व्यापक हो।

भारत एक विशाल देश है। यहाँ अनेकों सशक्त एवं समर्थ भाषाएँ हैं। लोकतंत्र में हर एक विषय का निर्णय बहुमत से होता है। भारतीय संविधान बनाते समय राष्ट्रभाषा के निर्णय पर भी विचार किया गया। सभी भाषाओं को राष्ट्र भाषा के लिए विचार करने पर कुछ तथ्य सामने आए। कुछ लोगों के विचार से अंग्रेजी को ही राष्ट्र भाषा मानना उचित था पर बहुमत इसके पक्ष में न था। किसी विदेशी भाषा को देश की राष्ट्रभाषा मानना देश का अपमान था। भारत जैसे विशाल जनसंख्या वाले देश में उस समय एक करोड़ जनता भी अंग्रेजी से परिचित नहीं थी।

उस समय हिन्दी को ही राष्ट्र भाषा चुना गया। हिन्दी के पक्ष में कई बातें थी। अन्य प्रान्तीय भाषा बोलने और समझने वालों की संख्या सीमिति थी। उस भाषा का अपने प्रान्त के अतिरिक्त अन्यप्रदेश में प्रचलन नहीं था। हिन्दी को क्षेत्र व्यापक है। उस भाषा को मातृभाषा मानने वालों की संख्या उस समय 15 करोड़ थी, जो सभी प्रान्तीय भाषा जानने वालों की संख्या सेभी बहुत अधिक थी। इसके अतिरिक्त प्राय सभी प्रान्तों में इसको समझने वालों की संख्या भी पर्याप्त थी।

हिन्दी का संबंध देश की सभी प्रान्तीय भाषाओं से होने के कारण इसको सरलता से सीखा जा सकता हैं। सभी भाषाओं की मूल संस्कृत होने के कारण हिन्दी के शब्दों का पर्याप्त प्रतिशत भारतीय भाषाओं में पाया जाता है। इसकी लिपि देवनागरी है जो भारत की अधिकांश प्रान्तीय भाषाओं की भी है।

हिन्दी में भारतीय राजनीति, धार्मिक, सांस्कृतिक एवं शैक्षणिक सभी प्रकार के कार्य व्यवहार की संचालन क्षमता हैं। संविधान में उपरोक्त कारणों को ध्यान में रखते हुए हिन्दी को राष्ट्र भाषा का गौरव प्रदान किया गया।

कोई भाषा एकाएक ही प्रयोग नहीं की जा सकती। उसके लिए तैयारी की आवश्यकता होती है। अतएवं 15 वर्षों का समय दिया गया ताकि कर्मचारी इस समय में भाषा सीख कर अपने कार्य में कुशल बन जाए। 1965 से हिन्दी को अंग्रेजी का स्थान दे देने की योजना थी।

इसके लिए सरकार ने केन्द्रीय कार्यालयों के कर्मचारियों को हिन्दी में काम करने के लिए हिन्दी के वर्ग चलाए। उनको अनेक पारितोषिक देकर हिन्दी सीखने की रुचि बढ़ाई। हिन्दी का विकास करने की योजनाएँ भी चलाई। हिन्दी का पारिभाषिक शब्द कोश तैयार किया गया, हिन्दी को समृद्ध बनाने के लिए उसमें प्रादेशिक भाषाओं के शब्दों को भी ग्रहण किया गया।

केन्द्रीय सरकार ने हिन्दी निदेशालय खोलकर हिन्दी के विकास कार्य को आगे बढ़ाया है। केन्द्रीय सरकार के कार्यालयों में अब तक पर्याप्त कार्य हिन्दी में होने लगा है। हिन्दी भाषी प्रान्तों में तो सरकारी कार्य लगभग पूर्ण रूप से हिन्दी में ही होने लगा है। हिन्दी में टंकन यंत्र, आशुलिपि का भी चलन हो चुका है। कम्प्यूटर भी हिन्दी में आ चुके हैं।

दक्षिण भारत में कुछ राजनीतिक कारणों से हिन्दी को राष्ट्र भाषा के रूप में प्रयोग करने का विरोध, सामने आरहा है। यह देश की एकता एवं उन्नति में बाधक है। दक्षिण भारतीय अंग्रेजी को ही पकड़े हुए हैं। उनका विचार है कि अंग्रेजी अंतर्राष्ट्रीय भाषा है। सभी देश इसका उपयोग करते है। अतएव हिन्दी के स्थान पर अंग्रेजी का प्रयोग जारी रखा जाए। पर उनका तर्क कसौटी पर खरा नहीं उतरता। क्या चीन, जापान, रूस, जर्मनी आदि उन्नत देश अंग्रेजी के द्वारा ही समृद्ध हुए हैं। नहीं, वे अपनी ही भाषा को प्रयोग में लाते हैं।

हम कह सकते हैं कि इन वर्षों में हिन्दी ने लगातार उन्नति की है। यद्यपि उसकी गति धीमी है पर देश को साथ लेकर चलना ही श्रेयस्कर है। आगामी वर्षों में हिन्दी राष्ट्र भाषा के रूप में अधिकाधिक प्रयोग में आएगी, उसका भविष्य उज्वल है।

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commentscomments

  1. mike testing says:

    hiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiii

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