Hindi Essay/Paragraph/Speech on “Raksha-Bandhan”, “रक्षा-बन्धन” Complete Essay, Speech for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.
रक्षा-बन्धन
Raksha-Bandhan
प्राचीन काल से चली आ रही इस परम्परा में आजकल किंचित परिवर्तन आ गया है कि पहले यह बन्धन किसी और मकसद से दिया जाता था, आज किसी और मकसद से। पहले यज्ञों एवं अन्य धार्मिक अनुष्ठानों की पूर्णहुति के उपरान्त इसमें सम्मिलित लोगों की कलाइयों पर मन्त्रों से पवित्र किया हुआ सूत्र बांधा जाता था। सूत्रों को यज्ञ-शक्ति से सूत्र धारक की रक्षा होगी। कालान्तर मंे इसी रक्षा-सूत्र का नाम रक्षा-बन्धन पड़ गया।
वर्तमान में रक्षा-बन्धन मुख्यतः भाई और बहिन के प्रेम-त्योहार के रूप मंे मनाया जाने लगा है। यह प्रत्येक साल सावन पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस दिन बहिन सुबह ही स्नान कर तैयार हो जाती है। इसके बाद वह थाली मंे आरती का सामान सजाकर भाइ्र की आरती उतारती है और भाई के माथे पर तिलक लगाकर उसके दाहिने हाथ की कलाई पर राखी बांध देती है। साथ ही बहिन भाई का मुंह मिठाइयों से भर देती हैं। भाई भी बदले में बहिन को रूपये एवं अन्य उपहार देता है। भाई को राखी बांधते समय बहिन की यह कामना रहती है कि मेरा भाई सुखी एवं ऐश्वर्यशाली बने। इस दिन ब्राह्मण लोग अपने-अपने यजमानों को राखी बांधते हैं। बदले मे यजमान भी ब्राह्मणों को दक्षिणा देते हैं। राखी बांधते समय ब्राह्मण यह मन्त्र बोलते हैं-
’’येन बन्धो बली राजा दानवद्रो महाबलः।
तेन त्वां प्रतिबघ्नामि रक्षे मा चल मा चल।।’’
उक्त मन्त्र से सम्बन्धित पुराण की एक कथा है। भगवान् विष्णु वामन रूप धारण कर दानवों के शक्तिशाली राजा बलि का सर्वस्व हर लेते हैं। इतने पर भी राजा बलि को धर्मच्युत हुआ न देख भगवान् प्रसन्न हो उसे स्वर्गलोक प्रदान कर देते हैं और स्वयं उसके यहां द्वारपाल बन जाते हैं। लक्ष्मीजी अपने पति को न पाकर चिन्तित हो उठती हैं। नारदजी लक्ष्मीजी के इस संकट का निवारण करते हैं। लक्ष्मीजी अपने पति को पाकर चिन्तित हो उठती हैं। नारदजी लक्ष्मीजी के इस संकट का निवारण करते हैं। तदनुसार लक्ष्मीजी वहां से चले देती हैं। वहां लक्ष्मीजी राजा बलि से अपने पतिदेव विष्णु भगवान् को मांगती हैं। राजा बलि राखी के बन्धन से बंधकर विष्णु भगवान् को द्वारपाल के पाप से मुक्त कर देता है। यह है रक्षा-बन्धन का पौराणिक महत्व।
रक्षा-बन्धन से सम्बन्धित एक दूसरी घटना भी है, जो मुगलकालीन है। बहादुरशाह ने मेवाड़ पर आक्रमण कर दिया। मेवाड़ की रानी कर्मवती निस्सहाय थी। कर्मवती ने मन-ही-मन मुगल बादशाह हुमायूं को अपना भाई मान अपनी रक्षा हेतु उसके पास राखी भेज दी। फिर क्या था। राखी के बन्धन में बंधकर हुमायूं युद्धक्षेत्र में कूद पड़ा और राखी की लाज रख ली। यह है रक्षा-बन्धन का पवित्र भाव। हमारी समझ में इसी दिन से बहिन द्वारा भाई को राखी बांधने की परम्परा चल पड़ी।
लेकिन वर्तमान में यह त्योहार व्यवसाय का रूप लेता जा रहा है। कुछ बहिनें रक्षा-बन्धन में भाव के बदल धन का प्रदर्शन करती हैं। कीमती राखी खरीदकर अपने भाई की कलाई पर बांधती हैं और बदले में उसी के अनुरूप भाई से अधिक धन की आशा रखती हैं। ऐसी परिस्थिति में रक्षा-बन्धन की पवित्रता गौण पड़ जाती है। उन्हें तो यह स्मरण रखना चाहिए कि रक्षा-बन्धन व्यवसाय का बन्धन नहीं है। यह तो मानवीय भावों का बन्धन है। यह प्रेम, त्याग और कर्तव्य का बन्धन है। इस बन्धन में एक बार भी बंध जाने पर इसे तोड़ना बड़ा कठिन है। इन धागों में इतनी शक्ति है, जितनी लोहे की जंजीर में भी नहीं है। जिस प्रकार हुमायूं ने इसी धागे से बंधे होने के कारण बहादुरशाह से युद्ध किया था, ठीक उसी प्रकार इस दिन हर भाई को यह प्रतिज्ञा करनी चाहिए कि वह अपने प्राणो ंकी बाजी लगाकर भी बहिन की रक्षा करेगा या दूसरे शब्दों में, कमजोरों की रक्षा करना ही शक्तिशाली का कर्तव्य होता है। यही रक्षा-बन्धन पर्व का महान् सन्देश है।