Hindi Essay, Paragraph, Speech on “Pustkalaya ”, ”पुस्तकालय” Complete Hindi Anuched for Class 8, 9, 10, Class 12 and Graduation Classes
पुस्तकालय
Pustkalaya
Essay No. 01
पुस्तकें ज्ञान का भण्डार होती हैं। हर प्रकार का ज्ञान आज के युग में पुस्तकों के रूप में उपलब्ध है। आज प्रायःसभी लोग ज्ञान की प्राप्ति के प्रयत्न करते रहते हैं। पुस्तकें ज्ञान भी देती है मनोरंजन भी करती हैं। पुस्तकें मनुष्य की सच्ची मित्र हैं। उनको पढ़ने से ज्ञान भी मिलता है, समय का सदुपयोग भी हो जाता है।
कोई व्यक्ति कितना भी धनवान क्यों न हो सभी पुस्तकें खरीद कर अपने पास नहीं रख सकता। दूसरे किसी पुस्तक को एक बार पढ़ लेने पर उसकी उपयोगिता उस व्यक्ति के लिए समाप्त हो जाती है। खरीद कर पढ़ी गई पुस्तक घर में व्यर्थ ही पड़ी रहती है। इस समस्या को सुलझाने के लिए ही पुस्तकालयों की आवश्यकता हुई।
पुस्तकालय किसी सार्वजनिक स्थानों पर भवनों में खोल दिए जाते हैं। इनकी व्यवस्था किसी सभा या व्यक्ति द्वारा की जाती है। इसमें सभी विषय साहित्य, विज्ञान, राजनीति, दर्शन, वास्तु आदि की पुस्तकों का संग्रह किया जाता है। हम अपनी आवश्यक पुस्तक कुछ दिनों के लिए वहाँ से घर लेजा सकते हैं। उसे पढ़कर वापस कर देते हैं। किसी और को आवश्यकता होने पर वही पुस्तक वह भी ले जा सकता है। इस प्रकार एक ही पुस्तक हजारों लोगों को पढ़ने के लिए मिल सकती है। पुस्तक का भरपूर उपयोग होता है।
पुस्तकालय में संदर्भ ग्रंथ भी रखे जाते हैं। इन ग्रंथों को कोई घर नहीं ले जा सकता। शब्द कोश आदि वहाँ रहते हैं। जिज्ञासु लोग वहीं उनको देखकर अपनी ज्ञानपिपासा शान्त कर लेते हैं।
पुस्तकालय कई प्रकार के होते हैं। हर पुस्तकालय में सुविधाएँ उसको सामर्थ्य के अनुसार उपलब्ध होती है। बड़े समृद्धिशाली पुस्तकालयों में पुस्तकों के अतिरिक्त पत्रिकाएँ एवं समाचार पत्र भी उपलब्ध रहते हैं। ये वाचनालयों से जुड़े होते हैं। वाचनालयों में बैठकर हम समाचार पत्र पढ़ सकते हैं, पत्रिकाएँ पढ़ सकते हैं। कोई कोई पुस्तकालय एक दो कमरों तक ही सीमित होते हैं। उनमें पुस्तकों की संख्या भी सीमित रहती है।
सभी पाठशालाओं एवं कालिजों में भी पुस्तकालय रहते हैं। इनमें भी दो भाग कर दिए जाते हैं। एक भाग विशाल होता है। जहाँ बड़ी बड़ी पुस्तकें रखी जाती है और इसका लाभ अध्यापक एवं विद्यार्थी दोनों उठा सकते हैं। दूसरे भाग में कक्षा पुस्तकालय होता है। इसमें सरल और छोटी पुस्तकें कक्षा के स्तर के अनुसार सीमित संख्या में रखी जाती हैं। ये बहुधा कक्षा अध्यापक के पास रहती हैं। अध्यापक सप्ताह में एक दिन विद्यार्थीयों को पुस्तकें देते लेते हैं।
फुरसत का समय पुस्तकालय में बिताना लाभकारी है। महान लेखकों की कृतियाँ पढ़कर मनुष्य को ज्ञान तो मिलता ही है, मनोरंजन भी कम नहीं होता। देश विदेश का साहित्य पढ़ने से उनमें जागति आती है। उन्हें नई दृष्टि मिलती है। इस प्रकार पुस्तकालय समाज और देश के लिए हितकारी हैं।
आज हर नगर और गाँव में पुस्तकालय की आवश्यकता है। पुस्तकालय का सदस्यता शुल्क ऐसा निर्धारित होना चाहिए जो सर्व साधारण को सुलभ हो। अधिक से अधिक लोग उससे लाभ उठा सकें। उसके कार्य का समय ऐसा हो कि उस समय सभी को फुर्सत रहे।
कुछ लोगों में पुस्तकालय के दुरुपयोग की प्रवृत्ति ने जन्म ले लिया है। बहुधा पुस्तकालय की पुस्तकों के पृष्ठ अंदर से फाड़ लिए जाते हैं। जिससे पुस्तक का महत्व ही नष्ट हो जाता है। आवश्यक ज्ञान के पृष्ठ पाठक फाड़ लेते हैं। उनको चाहिए कि आवश्यक अंशों को नोट करलें, पुस्तकों को नष्ट करके ऐसे व्यक्ति कितने ज्ञान पिपासुओं की आशाओं पर पानी फेर देते हैं।
कुछ नवयुवक पुस्तक के पन्नों में अपशब्द, अश्लील बातें आदि लिखकर अपनी दूषित मनोवृत्ति को प्रकट करते हैं। इससे किसी को कोई लाभ तो होता नहीं पुस्तक विकृत हो जाती है। सचमुच पुस्तकालय ज्ञान के दीपक है। इनसे प्रकाश पाकर ही हमारा समाज ज्ञान का प्रकाश प्राप्त कर सकता है।
पुस्तकालय
Library
Essay No. 02
पुस्तकालय शब्द ‘पुस्तक’ और ‘आलय’ दो शब्दों के मेल से बना है। पुस्तकालय का शाब्दिक अर्थ है पुस्तकों या किताबों का घर। जहाँ सामूहिक और व्यवस्थित ढंग से पढ़ने के लिए पुस्तकें रखी रहती हैं, उस स्थान को ‘पुस्तकालय’ कहा जाता है। प्रत्येक विद्यालय में पुस्तकालय का होना आवश्यक है। मेरे विद्यालय में भी पुस्तकालय है। पुस्तकालय में ज्ञानवर्धक और लाभदायक पुस्तकें होनी चाहिए।
कोई भी व्यक्ति अपनी ज़रूरत की सारी किताबें शायद खरीद नहीं सकता है इसलिए पुस्तकालय से पुस्तकें लेकर छात्र-छात्राएँ अपनी आवश्यकता पूरी करते हैं। पुस्तकालय से पाठ्यक्रम के अतिरिक्त अपनी रुचि की पुस्तकें भी प्राप्त की जा सकती हैं। यहाँ से कोई भी विद्यार्थी एक निश्चित समय के लिए पुस्तकें प्राप्त कर सकता है। पुस्तकालय केवल विद्यालय में ही नहीं बल्कि गाँवों और शहरों में भी होते हैं। आम आदमी उनसे लाभ उठाता है।
हमारे विद्यालय में एक शिक्षक पुस्तकालय के प्रभारी हैं। छात्र-संघ के प्रधानमंत्री की सहायता से प्रत्येक वर्ग के छात्रों को पुस्तकें देते हैं। प्रत्येक विद्यार्थी को सप्ताह में एक दिन पुस्तकें दी जाती हैं। उसी दिन पहले ली गई पुस्तकें लौटानी पड़ती हैं। शिक्षक छात्रों के बौद्धिक स्तर के अनुसार सुरुचिपूर्ण पुस्तकें चुनकर देते हैं।
पुस्तकालय किसी भी विद्यालय का प्राण है। इन पुस्तकों के पढ़ने से हमारे ज्ञान में वृद्धि होती है।
हमें पुस्तकालय से मनोनुकूल पुस्तकें नियमपूर्वक लेनी और पढ़नी चाहिए। इससे नियमित होकर पढ़ने की प्रवृत्ति भी जागती है। हमारे विद्यालय का पुस्तकालय काफी समृद्ध है। विद्यालयों के अलावा भी अनेक प्रकार के पुस्तकालय होते हैं जो सरकार तथा अन्य संस्थाओं द्वारा संचालित किए जाते हैं। इनकी सदस्यता लेकर कोई भी व्यक्ति पुस्तकें प्राप्त कर सकता है।