Hindi Essay/Paragraph/Speech on “Prayatan ya Deshatan ka Mahatva”, “पर्यटन या देशाटन का महत्व” Complete Essay, Speech for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.
पर्यटन या देशाटन का महत्व
Prayatan ya Deshatan ka Mahatva
और
मानव जीवन और पर्यटन
Manav Jeevan Aur Prayatan
पर्यटन मानव की स्वाभाविक प्रवृत्ति है। देश-विदेश भ्रमण की प्रवृत्ति मानव जीवन में महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है और साथ ही यह आज उसके लिए एक स्टेटस सिंबल भी बन चुका है।
पर्यटन का उद्देश्य मात्र मन की शान्ति ही नहीं है बल्कि आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक तथा शैक्षणिक लाभ के उद्देश्य पूर्ति हेतु भी किया जाता है। हम यह भी – कह सकते हैं कि आज के इस युग में पर्यटन बहुउद्देशीय बन गया है, आइए देखें कैसे- यही कारण है कि आधुनिक युग में व्यक्तिगत रूप के अतिरिक्त राजकीय अथवा राष्ट्रीय प्रतिनिधि के रूप में भी यात्रा के अवसर प्राप्त होते हैं। व्यवसायिकवाणिज्यिक संपर्क स्थापना के लिए भी आजकल यात्राएँ की जाती हैं। राजनीतिक लाभ हेतु विभिन्न राजनीतिज्ञ अथवा राष्ट्रीय प्रतिनिधि के रूप में अंतराष्ट्रीय यात्राएं की जाती हैं। विभिन्न राष्ट्रों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान के उद्देश्य से भी यात्राएँ आयोजित की जाती हैं।
कई सुगम अविष्कारों (विज्ञान) ने पर्यटन के कार्य को और भी अधिक सुगम और आनंदमयी बना दिया है। पहले के युग में पर्यटन के पूर्व यात्री को अनेक उपादानों, अपकरणों एवं साधनों की व्यवस्था करनी पड़ती थी। जिस जगह की यात्रा करनी होती थी वहाँ की भौगोलिक स्थिति एवं प्रकृति की जानकारी के लिए संबंधित मानचित्र, विवरण-पुस्तिका आदि का इंतजाम करना पड़ता था साथ ही अपने दैनिक अनुभव, जानकारियों, दिनचर्या को लिपिबद्ध करना होता था। अतः उसे सदैव अपने साथ एक डायरी रखनी पड़ती थी। पर अब सब कुछ बदल गया है। अब हमें इन सब की बजाए केवल अपने मनोरंजन पर ध्यान देना है।
पर्यटन हमारे मनोरंजन का एक महत्वपूर्ण साधन बन गया है। मानव प्रवृत्ति ही है कि अगर वह किसी एक ही स्थान पर अत्याधिक समय के लिए रूक जाए तो उसे मानसिक व शारीरिक थकान होने लगती है। यह उसके स्वभाव में शामिल हो चुका है। कि उसे नए नए क्षेत्रों का भ्रमण करना है जिससे की उसकी मानसिक स्थिति व शारीरिक स्थिति में सुधार आ सके।
पर्यटन के ही माध्यम से हम अन्य देशों व अपने ही देश के अन्य राज्यों की । वास्तविक स्थिति का पता लगा सकते हैं। यह ज्ञवृद्धि केवल पर्यटन के माध्यम से ही संभव हो सकती है। स्वास्थ्य की दृष्टि से भी पर्यटन का महत्व है। हजारों-लाखों लोग इसी दृष्टि से प्रतिदिन पर्वतीय क्षेत्र जैसे अल्मोड़ा, मसूरी, दार्जिलिंग, नैनीताल आदि में आते-जाते हैं।
भारत में तो पर्यटन की परंपरा अति प्राचीन है। पुराणों, धार्मिक ग्रंथों आदि में भी हमें इसका संदर्भ मिलता है।
महात्मा बुद्ध, भगवान महावीर, भवभूति, तुलसीदास, कबीरदास, सूरदास, शंकराचार्य, कालिदास आदि जैसे महापुरुषों ने भी तीर्थाटन-देशाटन-पर्यटन किया था जिसकी कथाएँ हमें उनसे संबंधित ग्रंथों में पढ़ने को मिलती हैं।
पहले कई परेशानियों के कारण कई लोग पर्यटन में रूचि नहीं लेते थे, आज विज्ञान ने सब कुछ आसान कर दिया फिर भी अर्थाभाव को पर्यटन का सबसे बड़ा रोड़ा कहा जा सकता है। अशिक्षा, रूढ़िवादिता ने भी देशवासियों को सदैव पर्यटन से विमुख बनाए रखा। सरकार ने इस हेतु पर्यटन मंत्रालय का गठन भी किया है। अब तो पर्यटन को उद्योग का दर्जा भी दे दिया गया है।
जैसा कि हमें ज्ञात है कि पर्यटन से राष्ट्रीयता की भावना मजबूत होती है। साथ ही हमें जो अनुभव प्राप्त होते हैं वह हमें शिक्षा देते हैं और हमारे आत्मविश्वास को बढ़ाते हैं।
पर्यटन के माध्यम से हमें कई चीजे सीखने को भी मिलती है। मानव विकास का मुख्य स्रोत पर्यटन ही बताया गया है।
पर्यटन के माध्यम से ही हमारे देश के कई राज्यों के नागरिकों की जीविका भी चलती है। इसी लिए हम यह भी कह सकते हैं कि पर्यटन के माध्यम से आर्थिक स्थिति में मजबूती भी आती है।