Hindi Essay/Paragraph/Speech on “Pradushan ki Samasya”, “प्रदूषण की समस्या” Complete Essay, Speech for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.
प्रदूषण की समस्या
Pradushan ki Samasya
प्रस्तावना : मानव-जीवन की स्वास्थ्य- रक्षा, हर प्रकार की भौतिक बीमारियों एवं दुषणों से रक्षा, सब प्रकार की प्राकृतिक एवं स्वाभाविक आवश्यकताओं की पूर्ति, दीर्घ सुरक्षित जीवन आदि के लिए ठीक प्रकार से जीने एवं शान्त सुखद जीवन व्यतीत करने के लिए सब प्रकार की स्वच्छ स्वाभाविक पावनता और निर्दोष पर्यावरण का होना बहुत ही आवश्यक है। इस सब के अभाव में मानव-जीवन का रहन-सहन, स्वास्थ्य एवं सुख-शान्ति की कल्पना सभी कुछ एक जीवित नरक बन सकता है। ऐसा न होने देने अर्थात् मानव-जीवन को जीवित नरक न बनने के लिए पर्यावरण की सुरक्षा एवं सभी प्रकार के दूषित प्रदूषण से छुटकारा पाना बहुत ही आवश्यक है ।
प्रदूषण के कारण : आज हमारा जीवन और पर्यावरण जो सब प्रकार से दूषित एवं अस्वास्थ्यकर बन कर रह गया है, इसके लिए सब से अधिक दोषी यदि कोई है, तो वह हम मनुष्यों का अपना ही निहित स्वार्थों, धन का लोभी स्वभाव एवं धन-लालसाएँ पूरी करने के लिए ही मनुष्य ने प्रकृति के विभिन्न एवं विविध रूपों के साथ खिलवाड़ करना आरम्भ किया। वनों को काट-काट कर पर्वतों को, उनकी माता धरती और प्रकृति को एकदम निर्वस्त्र कर दिया। उसका सन्तुलन बिगाड़ दिया। वनों के कटाव से नदियाँ भरने लगीं। उनकी गहराई उथली होने लगी । पर्वतों पर बर्फ कम जमने लगी । इतना ही नहीं, लोभी-स्वार्थी मनुष्यों ने अपनी धन-लालसा की पूर्ति के लिए उन वन्य-जीव-जन्तुओं का भी वध करना आरम्भ किया, उनकी जातियोंप्रजातियों को भी दुर्लभ करना शुरू कर दिया कि प्राकृतिक पर्यावरण का सन्तुलन बनाए रखने के लिए जिनका बहुतायत में रहना आवश्यक था। बढ़ती जनसंख्या भी प्रदूषण का एक बहुत बड़ा कारण है।
अभाव एवं बेकारी की समस्या की जनक उत्पादन की तुलना में बढ़ती जनसंख्या ही है। उसे बसाने के लिए हरे-भरे खेत, बाग-बागीचे काटे जाने लगे और उनके स्थान पर कंक्रीट की खेती होने लगी। कस्बों, नगरों और महानगरों के आस-पास धरती के वृक्ष पर उगे नासूर की तरह अनेक झोंपडपट्टियाँ आवश्यक सुविधाओं कीव्यवस्था न होने के कारण मानवीय गन्दगी का ढेर बन कर आस-पास के सारे वातावरण को प्रदूषित करने लगीं।
प्रदूषण फैलाव और विस्तार के अन्य कई कारण भी गिनाए जा सकते हैं। नगरों-महानगरों में बढ़ता कल-कारखानों, फैक्ट्रियों का दबाव, उनमें प्रयुक्त होने वाली रासायनिक गैसों, कोयले, उनसे जलने वाली भट्टियों की चिमनियों से निकलने वाला धुआँ और राख के कण, रसायनों की गन्ध और कचरा तथा उनसे निकल कर बहने वाला अवशिष्ट पानी भी प्रदूषण के बहुत बड़े कारण स्वीकारे जाते हैं। डीजल-घण्टियों के चीत्कार, निकलने वाला धुआँ; उस पर तरह-तरह के आणविक शस्त्रास्त्रों, बमों के अबैध परीक्षण, इस प्रकार की अप्राकृतिक गतिविधियों और स्थितियों में हमारा पर्यावरण सब तरह से प्रदूषित हुए बिना भला रह ही कैसे सकता था ?
प्रदूषण : हानियाँ : यह प्रदूषण कई प्रकार से जान-माल की हानि का कारण बन रहा है। इसके रहते आज स्वच्छ जल-वायु का कतई अभाव होता जा रहा है। यह अभाव तरह-तरह के रोगों, दमघोंटू वातावरण, अस्वास्थ्यकर स्थितियों के रूप में हर कदम पर सामने आ रहा है। प्राकृतिक वस्तुओं का अभाव होता जा रहा है। कई प्रकार की रासायनिक खादों के प्रयोग से फसलें तो भरपूर मिलने लगी हैं; लेकिन धरती का भीतरी भाग निरन्तर प्रदूषित होकर उर्वरा शक्ति से । रहित होता जा रहा है। नदियों में पानी घट गया है। मनुष्य तथा प्राणधारी जीव तो क्या प्रदूषण ऐतिहासिक महत्त्व के कलात्मक नमूनों । का अस्तित्व भी खतरे में डाल रहा है। इतना ही नहीं, कई प्रकार के । संघातक आणविक परीक्षणों से उठने वाले धुएँ के बादलों, उनके विषैले 7वों से उस ओजोन पर्त तक के फट जाने का खतरा मानवता के द्वार पर आ खड़ा हुआ है जिसका इस दृश्य जगत की रक्षा के लिए हर प्रकार से सुरक्षित रहना परम आवश्यक है। प्रदूषित पर्यावरण के कारण कई जीव-जन्तुओं की दुर्लभ प्रजातियाँ और अनेक जीवन-रक्षक दुर्लभ वनस्पतियों की जातियाँ तक समाप्त होती जा रही हैं। यदि यही स्थिति बनी रही, तो मानवता का भविष्य कैसा होगा, अनुमान कर पाना कठिन नहीं है।
पर्यावरण-रक्षा आवश्यक : मानवता के भविष्य की रक्षा के लिए प्रदूषण से मुक्ति पाकर हर सम्भव उपाय से पर्यावरण की रक्षा करना प्राथमिक स्तर का आवश्यक कार्य है। इसके लिए प्रकृति में सन्तुलन लाया जाना उतना ही जरूरी है जितना भोजन और साँस लेना प्राकृतिक सन्तुलन वनों का कटाव रोकने, सभी प्रकार की वानस्पतिक एवं प्राणी जगत्-सम्बन्धी जातियों की रक्षा करके ही लाया जा सकता है। सभी प्रकार के कल-कारखानों, रासायनिक क्रिया-प्रक्रिया वाले उद्योग-धन्धों को विकेन्द्रीकृत कर बस्तियों से दूर बंजर स्थानों पर ले जाया जाना चाहिए । डीजल-पेट्रोल के जलने से होने वाले धुएँ आदि पर काबू पाना, सभी प्रकार के आणविक परीक्षण कठोरता से प्रतिबन्धित करना, कल-कारखानों से बहने वाले प्रदूषित पानी-कचरे को इधर-उधर फैलने न देने जैसे कई तरह के उपाय किए जाने बहुत जरूरी हो गए हैं। ऐसे उपाय करके ही पर्यावरण को और अधिक दूषित होने से बचाया जा सकता है।
उपसंहार : इस सारे विवेचन-विश्लेषण के बाद भी प्रदूषण से मुक्ति पाने के लिए यदि किसी अन्य कारगर उपाय की आवश्यकता है, तो वह है मानव के लालची स्वभाव और निहित स्वार्थी मनोवृत्तियों पर काबू पाना। अन्य सभी प्रकार के सम्भव उपाय कर लिए जाने पर भी यदि इस प्रवृत्तिजन्य प्रदूषण को न रोका गया, तो सभी कुछ व्यर्थ होकर रह जाएगा, इतनी बात पूर्ण निश्चय के साथ कही जा सकती।