Hindi Essay, Paragraph, Speech on “Parishram hi Safalta ki Kunji Hai”, “परिश्रम ही सफलता की कुंजी है” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation Classes.
परिश्रम ही सफलता की कुंजी है
Parishram hi Safalta ki Kunji Hai
परिश्रम ही सफलता की कुंजी है अर्थात् सफलता प्राति के लिये व्यक्ति का परिश्रमी होना आवश्यक है। परिश्रम शब्द में जीवन का सारभूत तत्व निहित है एक परिश्रमी व्यक्ति अपने जीवन में एक न एक दिन अवश्य सफलता प्राप्त कर लेता है आज विश्व में बड़े-बड़े नगर, सुन्दर तथा उँची इमारतें, कल-कारखाने, रेल, मोटर, वायुयान, जलयान इतियादि मानव के अथक परिश्रम के ही प्रतीक है। आज के भौतिक तथा वैज्ञानिक युग में भले ही श्रम संबंधी धारणाएँ परिवर्तित क्यों न हो गयी हों। परन्तु फिर भी श्रम के महत्व में किसी भी प्रकार की कमी पैदा नही हुई, बल्कि उल्टे वृद्धि हुई है। आज भी परिश्रम ही केवल एक एसी पुंजी है जो सफलता तथा उन्नति के द्वार को खोल सकती है परिश्रम के आभाव में व्यक्ति अपनी महत्वकांक्षओं को तथा मनोरथों की पूर्ति नही कर सकता है। व्यक्ति अपने लक्ष्य की प्रप्ति केवल परिश्रम या पुरूषार्थ से ही कर सकता है। परिश्रम से तात्पर्य किसी उद्देश्य या लक्ष्य की प्राप्ति के लिए किये गये प्रयत्नों से है। दूसरे शब्दों यह कहा जा सकता है कि परिश्रम एक ऐसा शारिरीक प्रयास है जिसके माध्यम से व्यक्ति अपने लक्ष्य की पूर्ति करना चाहता है।
श्रम उत्पादक तथा अनुत्पादक दो प्रकार का होता है। श्रम जीवन में चैतन्यता लाता है अर्थात जीवन में चेतनता उत्पन्न करता है। परिश्रम से व्यक्ति का शरीर सुदृढ़ होता है। परिश्रम ही एक ऐसी शक्ति है जो निर्बल को सबल तथा रंक को राजा बना सकती है। परिश्रम के आभाव में छोटे से छोटे कार्य भी पूरा नहीं हो सकता है जबकि निरन्तर परिश्रम के द्वारा निरन्तर बडे़ से बडा़ कार्य भी आसानी से पूरा हो जाता है। इस प्रकार परिश्रम व्यक्ति की सफलता के द्वार खोल देता है। परिश्रम व्यक्ति को आर्थिक, सामाजिक तथा व्यक्तिगत क्षेत्र में प्रतिष्ठा प्रदान करता है।
परिश्रम का महत्व न केवल व्यक्ति ही, बल्कि राष्ट्र एवं जाति की उन्नति के क्षेत्र में भी कम नहीं है। व्यक्ति सामाजिक संगठन की एक महत्वपूर्ण इकाई है। अतः प्रत्येक व्यक्ति के द्वारा किये जाने के परिणामस्वरूप ही समाज एवं देश का उत्थान हो सकता है। ऐसा राष्ट्र जिसके नागरिक कठोर परिश्रम में विश्वास करते है, शीघ्र ही उन्नति के शिखर पर पहुँच जाते है। जापान, संयुक्त राज्य अमेरिका तथा ग्रेट ब्रिटेन इत्यादि के उन्नति के शिखर पर पहुँचाने का आधारभूत कारण वहाँ के नागरिकों का कठोर परिश्रम में विश्वास होना है। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान पूरी तरह से नष्ट-भ्रष्ट हुए जर्मनी तथा जापान अपने कठोर परिश्रम के बल पर ही फिर से विश्व के उन्नतिशील राष्ट्रों की श्रेणी में आ गये। एक पाश्चात्य निदान विद्वान ने परिश्रम के के महत्व को स्पष्ट करते हुए लिखा था कि, ’’कोई भी जाति तब तक उन्नति नहीं कर सकती है जब तक कि वह नहीं सीखती है कि खेत के जोतने का भी वही महत्व है जो काव्य से सृजन का है।
विश्व का इतिहास इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि विश्व के सभी महानतम कार्याें की सफलता के मूल में परिश्रम की भावना निहित थी। विश्व में अब तक जितने भी ऐश्वर्यवान, महत्वाकांक्षी तथा यशस्वी सम्राट हुए हैं उन सभी ने अपने जीवन में परिश्रम को अत्यधिक महत्व दिया था। मौर्य वंश के प्रतापी सम्रट् चन्द्रगुप्त मौर्य ने कठोर परिश्रम के आधार पर ही विशाल मौर्य साम्राज्य की स्थापना की थी। हमारे राष्ट्रपिता माहात्मा गाँधी, लोकमान्य तिलक, पंडित जवाहर लाल नेहरू, डा. राजेन्द्र प्रसाद, अब्रहम लिकंन, कार्ल मास्र्क इत्यादि का जीवन परिश्रम का ही प्रतिक था।
इस प्रकार स्पष्ट है कि व्यक्ति के जीवन निमार्ण में परिश्रम की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। ऐसे व्यक्ति जो जीवन जो जीवन में परिश्रम करते हैं, अन्य व्यक्तियों की तुलना में सबल होते हैं तथा ऐसे व्यक्तियों की सहायता स्वयं ईश्वर करता है। ऐसे व्यक्ति जो परिश्रमी होते हैं, ’’वीर भोग्या वसुंधरा’’ की उक्ति को भी चरितार्थ करते हैं।
इसीलिए यह उक्ति चरितार्थ है कि ’’परिश्रम ही सफलता की एकमात्र कुंजी है।
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